१३.१५ – बहि: अन्त: च भूतानाम्

श्री: श्रीमते शठकोपाय नमः श्रीमते रामानुजाय नमः श्रीमद्वरवरमुनये नमः अध्याय १३ << अध्याय १३ श्लोक १४ श्लोक बहिरन्तश्च भूतानाम् अचरं चरमेव च |सूक्ष्मत्वात्तदविज्ञेयं दूरस्थं चान्तिके च तत्  || पद पदार्थ भूतानां बहि: अन्त: च – [आत्मा] भूमि से शुरू होने वाले पाँच महान तत्वों के अंदर और बाहर दोनों जगहों में उपस्थित हैअचरं चरम् एव … Read more

१३.१४ – सर्वेन्द्रियगुणाभासं

श्री: श्रीमते शठकोपाय नमः श्रीमते रामानुजाय नमः श्रीमद्वरवरमुनये नमः अध्याय १३ << अध्याय १३ श्लोक १३ श्लोक सर्वेन्द्रियगुणाभासं  सर्वेन्द्रियविवर्जितम् |असक्तं सर्वभृच्चैव निर्गुणं गुणभोक्तृ च || पद पदार्थ सर्वेन्द्रिय गुणभासं – यह (आत्मा)इंद्रियों के कार्यों के द्वारा सभी विषयों को जानने में सक्षम हैसर्वेन्द्रिय विवर्जितम् – (अपनी प्राकृतिक अवस्था में) यह इंद्रियों के बिना भी सब … Read more

१३.१३ – सर्वत: पाणिपादं तत्

श्री: श्रीमते शठकोपाय नमः श्रीमते रामानुजाय नमः श्रीमद्वरवरमुनये नमः अध्याय १३ << अध्याय १३ श्लोक १२ श्लोक सर्वत: पाणिपादं तत् सर्वतोऽक्षिशिरोमुखम् |सर्वतश्श्रुतिमल्लोके सर्वमावृत्य  तिष्ठति || पद पदार्थ तत् – वह शुद्ध आत्मासर्वत: पाणिपादं – हाथों और पैरों की सभी गतिविधियाँ कर सकता हैसर्वतोऽक्षि शिरो मुखम् – आँखों, सिर और चेहरे की सभी गतिविधियाँ कर सकता … Read more

१३.१२ – ज्ञेयं यत् तत् प्रवक्ष्यामि

श्री: श्रीमते शठकोपाय नमः श्रीमते रामानुजाय नमः श्रीमद्वरवरमुनये नमः अध्याय १३ << अध्याय १३ श्लोक ११ श्लोक ज्ञेयं यत् तत् प्रवक्ष्यामि यज्ज्ञात्वाऽमृतमश्नुते |अनादि मत्परं  ब्रह्म न सत्तन्नासदुच्यते || पद पदार्थ यत् ज्ञात्वा – जिसे जानकरअमृतम् अश्नुते – (आत्मा की) अविनाशी अवस्था प्राप्त होती हैयत् तत् ज्ञेयं – जानने योग्य ऐसे आत्मा के बारे मेंप्रवक्ष्यामि – … Read more

१३.११ – अध्यात्मज्ञाननित्यत्वम्

श्री: श्रीमते शठकोपाय नमः श्रीमते रामानुजाय नमः श्रीमद्वरवरमुनये नमः अध्याय १३ << अध्याय १३ श्लोक १० श्लोक अध्यात्मज्ञाननित्यत्वं   तत्वज्ञानार्थदर्शनम् |एतत् ज्ञानमिति प्रोक्तमज्ञानं यदतोऽन्यथा || पद पदार्थ अध्यात्म ज्ञान नित्यत्वम् – आत्मा के बारे में ज्ञान की खोज में सदैव लगे रहनातत्त्व ज्ञानार्थ (दर्शनम्) चिंतनम् – सच्चा ज्ञान प्राप्त करने के लिए ध्यान करनाएतत् – … Read more

१३.१० – मयि चानन्ययोगेन

श्री: श्रीमते शठकोपाय नमः श्रीमते रामानुजाय नमः श्रीमद्वरवरमुनये नमः अध्याय १३ << अध्याय १३ श्लोक ९ श्लोक मयि चानन्ययोगेन  भक्तिरव्यभिचारिणी |विविक्तदेशसेवित्वम्  अरतिर्जनसंसदि || पद पदार्थ मयि – मुझमें, जो सर्वेश्वर हूँअनन्य योगेन – किसी अन्य के साथ संलग्न न होने के कारणअव्यभिचारिणी – अत्यंत दृढ़ स्थितिभक्ति: च – भक्तिविविक्त देश सेवित्वम् – एकांत में रहनाजन संसदि … Read more

१३.९ – असक्तिर् अनभिष्वङ्ग:

श्री: श्रीमते शठकोपाय नमः श्रीमते रामानुजाय नमः श्रीमद्वरवरमुनये नमः अध्याय १३ << अध्याय १३ श्लोक ८ श्लोक असक्तिरनभिष्वङ्ग: पुत्रदारगृहादिषु |नित्यं च समचित्तत्वम्  इष्टानिष्टोपपत्तिषु || पद पदार्थ असक्ति: – आसक्ति न रखना (आत्मा के अलावा अन्य विषयों में)पुत्र दार गृहादिषु – पत्नी, बच्चों, घर आदि के प्रतिअनभिष्वङ्ग: – आसक्ति से मुक्त रहनाइष्ट अनिष्ट उपपत्तिषु – वांछनीय या … Read more

१३.८ – इन्द्रियार्थेषु वैराग्यम्

श्री: श्रीमते शठकोपाय नमः श्रीमते रामानुजाय नमः श्रीमद्वरवरमुनये नमः अध्याय १३ << अध्याय १३ श्लोक ७ श्लोक इन्द्रियार्थेषु वैराग्यमनहङ्कार  एव च |जन्ममृत्युजराव्याधिदु:खदोषानुदर्शनम् || पद पदार्थ इन्द्रियार्थेषु वैराग्यम् – इंद्रियों के माध्यम से अनुभव किए जाने वाले शब्दं (ध्वनि) आदि इंद्रिय विषयों के प्रति वैराग्यअनहङ्कार: एव च – शरीर को आत्मा न माननाजन्म मृत्यु जरा व्याधि … Read more

१३.७ – अमानित्वम् अदंभित्वम्

श्री: श्रीमते शठकोपाय नमः श्रीमते रामानुजाय नमः श्रीमद्वरवरमुनये नमः अध्याय १३ << अध्याय १३ श्लोक ६ श्लोक अमानित्वम् अदंभित्वम् अहिंसा क्षान्तिरार्जवम् |आचार्योपासनं शौचं स्थैर्यमात्म विनिग्रह: || पद पदार्थ अमानित्वम् – बड़ों का अनादर न करनाअदंभित्वम् – प्रसिद्धि के लिए दान में संलग्न न होनाअहिंसा – तीनों शक्तियों (मन, वाणी और कर्म) से किसी को नुकसान … Read more

१३.६ – इच्छा द्वेषः सुखं दुःखं

श्री: श्रीमते शठकोपाय नमः श्रीमते रामानुजाय नमः श्रीमद्वरवरमुनये नमः अध्याय १३ << अध्याय १३ श्लोक ५ श्लोक इच्छा द्वेषः सुखं दुःखं सङ्घातश्चेतना  धृति: |एतत्क्षेत्रं समासेन सविकारमुदाहृतम्   || पद पदार्थ इच्छा – इच्छाद्वेष:-घृणासुखं – आनंददु:खं – दुःखचेतना धृति: सङ्घात: – प्राणियों का संग्रह जो आत्मा को बनाए रखता है (खुशी/दुख का अनुभव करने और आनंद … Read more