శ్రీ భగవత్ గీతా సారం – అధ్యాయం 15 (పురాణ పురుషోత్తమ యోగం)

శ్రీః  శ్రీమతే శఠకోపాయ నమః  శ్రీమతే రామానుజాయ నమః  శ్రీమత్ వరవరమునయే నమః శ్రీ భగవద్ గీతా సారం << అధ్యాయం 14 గీతార్థ సంగ్రహం లోని 19వ శ్లోకం లో, ఆళవందార్లు పదిహేనవ అధ్యాయం యొక్క సారాంశం వివరిస్తూ “పదిహేనవ అధ్యాయం లో, పురుషోత్తముడు అయిన శ్రీమన్నారాయణయుడు గురించి చెప్ప బడింది. తను అచిత్ (సంసారిక దేహం) కు వశమైన బద్ధ జీవాత్మ మరియు ప్రాకృత శరీరాన్ని త్యజించిన ముక్త జీవాత్మ కన్నా వేరు, వారిలో … Read more

१५.२० – इति गुह्यतमं शास्त्रं

श्री: श्रीमते शठकोपाय नमः श्रीमते रामानुजाय नमः श्रीमद्वरवरमुनये नमः अध्याय १५ << अध्याय १५ श्लोक १९ श्लोक इति गुह्यतमं शास्त्रमिदमुक्तं मयाऽनघ |एतद्बुद्ध्वा बुद्धिमान्स्यात्कृतकृत्यश्च भारत || पद पदार्थ अनघ – हे निष्पाप!भारत – हे भरतवंशी!इति – इस प्रकारइदं – यह पुरूषोत्तम विद्यागुह्यतमं शास्त्रं – अत्यंत गोपनीय शास्त्रमया – मेरे द्वाराउक्तं – (तुम्हें) उपदेशित की गई हैएतत् … Read more

१५.१९ – यो मामेवमसम्मूढो

श्री: श्रीमते शठकोपाय नमः श्रीमते रामानुजाय नमः श्रीमद्वरवरमुनये नमः अध्याय १५ << अध्याय १५ श्लोक १८ श्लोक यो मामेवमसम्मूढो जानाति पुरुषोत्तमम् |स सर्वविद्भजति मां सर्वभावेन भारत || पद पदार्थ भारत – हे भरतवंशी!य: – जो व्यक्तिएवं – इस प्रकारपुरुषोत्तमम् – मैं बंधी हुई आत्माओं और मुक्त आत्माओं से भी अनेक कारणों से श्रेष्ठ हूँमां – … Read more

१५.१८ – यस्मात् क्षरम् अतीतोऽहम्

श्री: श्रीमते शठकोपाय नमः श्रीमते रामानुजाय नमः श्रीमद्वरवरमुनये नमः अध्याय १५ << अध्याय १५ श्लोक १७ श्लोक यस्मात्क्षरमतीतोऽहमक्षरादपि चोत्तम: |अतोऽस्मि लोके वेदे च प्रथित: पुरुषोत्तम: || पद पदार्थ अहम् – मैंयस्मात् – चूँकिक्षरं – क्षर पुरुष (बंधे हुए जीव)अतीत: – श्रेष्ठअक्षरात् अपि – अक्षर पुरुष (मुक्त जीव) सेउत्तम: च – महान होते हुएअत: – इसलिएवेदे … Read more

१५.१७ – उत्तम: पुरुषस्त्वन्य:

श्री: श्रीमते शठकोपाय नमः श्रीमते रामानुजाय नमः श्रीमद्वरवरमुनये नमः अध्याय १५ << अध्याय १५ श्लोक १६ श्लोक उत्तम: पुरुषस्त्वन्य: परमात्मेत्युदाहृत: |यो लोकत्रयमाविश्य बिभर्त्यव्यय ईश्वर: || पद पदार्थ य: तु – वह जोलोकत्रयं – तीन प्रकार की सत्ताओं अर्थात अचित (पदार्थ), बद्ध जीवात्मा (बंधी हुई आत्माएँ) और मुक्तात्मा (मुक्त आत्माएँ)आविश्य – व्याप्तबिभर्ति – उनका समर्थन(वह) अव्यय: … Read more

१५.१६ – द्वाविमौ पुरुषौ लोके

श्री: श्रीमते शठकोपाय नमः श्रीमते रामानुजाय नमः श्रीमद्वरवरमुनये नमः अध्याय १५ << अध्याय १५ श्लोक १५ श्लोक द्वाविमौ पुरुषौ लोके क्षरश्चाक्षर एव च |क्षर: सर्वाणि भूतानि कूटस्थोऽक्षर उच्यते || पद पदार्थ लोके – शास्त्र (पवित्र ग्रंथों) मेंक्षर: च अक्षर: च द्वौ इमौ पुरुषौ एव – दो प्रकार की आत्माएँ प्रसिद्ध हैं – क्षर – बद्ध … Read more

१५.१५ – सर्वस्य चाहं हृदि सन्निविष्टो

श्री: श्रीमते शठकोपाय नमः श्रीमते रामानुजाय नमः श्रीमद्वरवरमुनये नमः अध्याय १५ << अध्याय १५ श्लोक १४ श्लोक सर्वस्य चाहं हृदि सन्निविष्टो मत्त: स्मृतिर्ज्ञानमपोहनं च |वेदैश्च सर्वैरहमेव वेद्यो वेदान्तकृद्वेदविदेव चाहम् || पद पदार्थ अहम् – मैंसर्वस्य च – समस्त प्राणियों केहृदि – हृदय मेंसन्निविष्ट: – आत्मा के रूप में प्रवेश कर, वहीं निवास करता हूँ (सभी … Read more

१५.१४ – अहं वैश्वानरो भूत्वा

श्री: श्रीमते शठकोपाय नमः श्रीमते रामानुजाय नमः श्रीमद्वरवरमुनये नमः अध्याय १५ << अध्याय १५ श्लोक १३ श्लोक अहं वैश्वानरो भूत्वा प्राणिनां देहमाश्रित: |प्राणापानसमायुक्त: पचाम्यन्नं चतुर्विधम् || पद पदार्थ अहम् – मैंवैश्वानर: भूत्वा – जाठराग्नि (पाचन की अग्नि) होने के कारणप्राणिनां – सभी प्राणियों केदेहम् आश्रित: – शरीर में स्थित होने के कारणचतुर्विधम् अन्नं – चार … Read more

१५.१३ – गामाविश्य च भूतानि

श्री: श्रीमते शठकोपाय नमः श्रीमते रामानुजाय नमः श्रीमद्वरवरमुनये नमः अध्याय १५ << अध्याय १५ श्लोक १२ श्लोक गामाविश्य च भूतानि धारयाम्यहमोजसा |पुष्णामि चौषधी: सर्वा: सोमो भूत्वा रसात्मक: || पद पदार्थ अहम् – मैंगाम् आविश्य – पृथ्वी में व्याप्त होकरभूतानि – समस्त प्राणियोंओजसा – मेरी अजेय शक्ति सेधारयामि – धारण करता हूँरसात्मक: सोम: भूत्वा – अमृतमय … Read more

१५.१२ – यदादित्यगतं तेजो

श्री: श्रीमते शठकोपाय नमः श्रीमते रामानुजाय नमः श्रीमद्वरवरमुनये नमः अध्याय १५ << अध्याय १५ श्लोक ११ श्लोक यदादित्यगतं तेजो जगद्भासयतेऽखिलम् |यच्चन्द्रमसि यच्चाग्नौ तत्तेजो विद्धि मामकम् || पद पदार्थ आदित्य गतं – सूर्य में विद्यमानयत् तेज: – उस तेजअखिलं जगत् – समस्त लोकों कोभासयते – प्रकाशित करता हैचन्द्रमसि यत् – चंद्रमा के उस तेज (जो लोकों … Read more