४.२६ – शब्दादीन् विषयान् अन्य

श्री: श्रीमते शठकोपाय नमः श्रीमते रामानुजाय नमः श्रीमद्वरवरमुनये नमः अध्याय ४ << अध्याय ४ श्लोक २५.५ श्लोक शब्दादीन्विषयानन्य इन्द्रियाग्निषु जुह्वति ॥ पद पदार्थ अन्ये – फिर कोई कर्मयोगीशब्दादीन् विषयान् – ध्वनि जैसी इंद्रिय-विषयइंद्रिय अग्निषु – इंद्रिय अंगों की अग्नि मेंजुह्वति – यज्ञ में संलग्न हों सरल अनुवाद फिर कोई कर्म योगी इंद्रिय विषयों जैसे ध्वनि … Read more

४.२५.५ – श्रोत्रादीनीन्द्रियाणि अन्ये

श्री: श्रीमते शठकोपाय नमः श्रीमते रामानुजाय नमः श्रीमद्वरवरमुनये नमः अध्याय ४ << अध्याय ४ श्लोक २५ श्लोक श्रोत्रादीनीन्द्रियाणि अन्ये  सम्यमाग्निषु जुह्वति । पद पदार्थ अन्ये – कुछ अन्य कर्मयोगीश्रोत्रादीनी इन्द्रियाणि – कान जैसी संवेदी  अंगसम्यमाग्निषु – इंद्रियों को नियंत्रित करने की अग्नि मेंजुह्वति – उन्हें यज्ञ में संलग्न करना सरल अनुवाद कुछ अन्य कर्म योगी … Read more

४.२५ – ब्रह्माग्नावपरे यज्ञम्

श्री: श्रीमते शठकोपाय नमः श्रीमते रामानुजाय नमः श्रीमद्वरवरमुनये नमः अध्याय ४ << अध्याय ४ श्लोक २४.५ श्लोक ब्रह्माग्नावपरे यज्ञं यज्ञेनैवोपजुह्वति ||  पद पदार्थ अपरे – अन्य कर्मयोगीब्रह्मग्नौ – ब्रह्म की अग्नि मेंयज्ञम् – हविस (प्रसाद) जो यज्ञ का उपकरण हैयज्ञेन – यज्ञ में प्रयुक्त सामग्री के साथउप जुह्वति एव – ऐसे यज्ञ करने मे पूरी … Read more

४.२४.५ – दैवम् एवापरे यज्ञम्

श्री: श्रीमते शठकोपाय नमः श्रीमते रामानुजाय नमः श्रीमद्वरवरमुनये नमः अध्याय ४ << अध्याय ४ श्लोक २४ श्लोक दैवमेवापरे यज्ञं  योगिनः पर्युपासते । पद पदार्थ अपरे योगिन: – कुछ अन्य कर्म योगीदैवम् – देवताओं की पूजा करनायज्ञं एव – केवल यज्ञ पर्युपासते – विशेष रूप से लगे हुए हैं सरल अनुवाद कुछ अन्य कर्म योगी विशेष रूप … Read more

४.२४ – ब्रह्मार्पणम् ब्रह्म हविर्

श्री: श्रीमते शठकोपाय नमः श्रीमते रामानुजाय नमः श्रीमद्वरवरमुनये नमः अध्याय ४ << अध्याय ४ श्लोक २३ श्लोक ब्रह्मार्पणं  ब्रह्म हविर्ब्रह्माग्नौ ब्रह्मणा हुतम् ।ब्रह्मैव तेन गन्तव्यं  ब्रह्मकर्मसमाधिना ॥ पद पदार्थ ब्रह्मार्पणम् – यज्ञ में अर्पित किये जाने वाले सामग्रियां  जो ब्रह्म (सर्वोच्च भगवान) के रूप हैं ब्रह्म हवि:- वह आहुति  जो ब्रह्म का स्वरूप हैब्रह्मणा – यज्ञ का … Read more

४.२३ – गतसङ्गस्य मुक्तस्य

श्री: श्रीमते शठकोपाय नमः श्रीमते रामानुजाय नमः श्रीमद्वरवरमुनये नमः अध्याय ४ << अध्याय ४ श्लोक २२ श्लोक गतसङ्गस्य मुक्तस्य ज्ञानावस्थितचेतसः ।यज्ञायाचरतः कर्म समग्रं प्रविलीयते ॥ पद पदार्थ ज्ञानावस्थित चेतस: – जिसका हृदय पूरी तरह से आत्मज्ञान में लगा हुआ हैगतसङ्गस्य – (उसके फल स्वरूप) ) अन्य विषयों से अलग हो जानामुक्तस्य – (उसके फल स्वरूप) … Read more

४.२२ – यदृच्छालाभसन्तुष्टो

श्री: श्रीमते शठकोपाय नमः श्रीमते रामानुजाय नमः श्रीमद्वरवरमुनये नमः अध्याय ४ << अध्याय ४ श्लोक २१ श्लोक यदृच्छालाभसन्तुष्टो द्वन्द्वातीतो विमत्सरः ।समः सिद्धावसिद्धौ च कृत्वापि न निबध्यते॥ पद पदार्थ यदृच्छा लाभ सन्तुष्ट: – जो कुछ भी उसे मिलता है उससे संतुष्ट रहना (अपने शरीर को बनाए रखने के लिए)द्वन्द्वातीता : – जोड़ियों को सहन करना (सुख-दुःख, … Read more

४.२१ – निराशीर्यतचित्तात्मा

श्री: श्रीमते शठकोपाय नमः श्रीमते रामानुजाय नमः श्रीमद्वरवरमुनये नमः अध्याय ४ << अध्याय ४ श्लोक २० श्लोक निराशीर्यतचित्तात्मा त्यक्तसर्वपरिग्रह: |शारीरं केवलं कर्म कुर्वन्नाप्नोति किल्बिषम् || पद पदार्थ निराशी: – कर्मफल के आसक्ति से मुक्तयतचित्तात्मा – मन को संयम रखते हुए ( लौकिक विषयों के प्रति )त्यक्त सर्व परिग्रह: – सामान्य वस्तुओं के स्वामित्व से मुक्त … Read more

४.२० – त्यक्त्वा कर्मफलासङ्गं

श्री: श्रीमते शठकोपाय नमः श्रीमते रामानुजाय नमः श्रीमद्वरवरमुनये नमः अध्याय ४ << अध्याय ४ श्लोक १९ श्लोक त्यक्त्वा कर्मफलासङ्गं नित्यतृप्तो निराश्रय: |कर्मण्यभिप्रवृत्तोऽपि नैव किञ्चित्करोति स: || पद पदार्थ कर्म फलासङ्गं – कर्म के परिणाम में प्रीतीत्यक्त्वा – त्यागकरनित्य तृप्त: – शाश्वत आत्मा में संतुष्ट होकरनिराश्रय: – अस्थायी देह को विश्वसनीय समझने से मुक्त होकर( जो … Read more

४.१९ – यस्य सर्वे समारम्भा:

श्री: श्रीमते शठकोपाय नमः श्रीमते रामानुजाय नमः श्रीमद्वरवरमुनये नमः अध्याय ४ << अध्याय ४ श्लोक १८ श्लोक यस्य सर्वे समारम्भा: कामसङ्कल्पवर्जिता: |ज्ञानाग्निदग्धकर्माणं तमाहु: पण्डितं बुधा: || पद पदार्थ यस्य – उस व्यक्ति के लिए ( जो मुमुक्षु है ( मोक्ष जिज्ञासु ) )सर्वे समारम्भा: – नित्य ( दैनिक ) , नैमित्तिक ( सामयिक) और काम्य … Read more