శ్రీ భగవత్ గీతా సారమ్ – అధ్యాయం 6 (అభ్యాస యోగం)

శ్రీః  శ్రీమతే శఠకోపాయ నమః  శ్రీమతే రామానుజాయ నమః  శ్రీమత్ వరవరమునయే నమః శ్రీ భగవద్ గీతా సారం << అధ్యాయం 5 గీతార్థ సంగ్రహం లోని 10వ శ్లోకం లో, ఆళవందార్లు ఆరవ అధ్యాయం యొక్క సారాంశం వివరిస్తూ “ఈ ఆరవ అధ్యాయంలో యోగం(ఆత్మ సాక్షాత్కారం పొందే) అనుసరించే పద్ధతి, నాలుగు రాకాల యోగములు, అభ్యాసం, మరియు తన పట్ల చేసే భక్తి యోగం యొక్క గొప్పతనం చెప్పబడ్డాయి.” ముఖ్యమైన శ్లోకాలు శ్లోకం 1 శ్రీ … Read more

६.४७ – योगिनामपि सर्वेषाम्

श्री: श्रीमते शठकोपाय नमः श्रीमते रामानुजाय नमः श्रीमद्वरवरमुनये नमः अध्याय ६ << अध्याय ६ श्लोक ४६ श्लोक योगिनामपि सर्वेषां मद्गतेनान्तरात्मना ।श्रद्धावान्भजते यो मां स मे युक्ततमो मतः ॥ पद पदार्थ योगिनां – पहले बताए गए योगियों से भी महानअपि सर्वेषां – और अन्य सभी जैसे तपस्वियोंमद्गतेन अंतरात्मना – मुझमें लगे मन सेश्रद्धावान् – इच्छा रखना … Read more

६.४६ – तपस्विभ्योऽधिको योगी

श्री: श्रीमते शठकोपाय नमः श्रीमते रामानुजाय नमः श्रीमद्वरवरमुनये नमः अध्याय ६ << अध्याय ६ श्लोक ४५ श्लोक तपस्विभ्योऽधिको योगी ज्ञानिभ्योऽपि मतोऽधिकः।कर्मिभ्यश्चाधिको योगी तस्माद्योगी भवार्जुन ॥           पद पदार्थ योगी – योग अभ्यासीतपस्विभ्य: अधिक: (मत: ) – उन लोगों से भी बड़ा माना जाता है जो केवल तपस्या में लगे रहते हैं;(योगी … Read more

६.४५ – प्रयत्नाद्यतमानस्तु

श्री: श्रीमते शठकोपाय नमः श्रीमते रामानुजाय नमः श्रीमद्वरवरमुनये नमः अध्याय ६ << अध्याय ६ श्लोक ४४ श्लोक प्रयत्नाद्यतमानस्तु योगी संशुद्धकिल्बिष :।अनेकजन्मसंसिद्धस्ततो  याति परां गतिम् ॥ पद पदार्थ तत: – इस प्रकारसंशुद्ध किल्बिष: -पापों से मुक्त होनाअनेक जन्म संसिद्ध: – पिछले कई जन्मों के पुण्यों से, योग को अच्छी तरह से पूरा करने के योग्य होनाप्रयत्नात् … Read more

६.४४ – जिज्ञासुरपि योगस्य

श्री: श्रीमते शठकोपाय नमः श्रीमते रामानुजाय नमः श्रीमद्वरवरमुनये नमः अध्याय ६ << अध्याय ६ श्लोक ४३.५ श्लोक जिज्ञासुरपि योगस्य शब्दब्रह्मातिवर्तते || पद पदार्थ योगस्य जिज्ञासु: अपि – जो योग सीखने और अभ्यास करने की इच्छा रखता है (योग के मार्ग से भटकने के बाद भी, योग की महिमा से, जैसे कि पहले बताया गया है, … Read more

६.४३.५ – पूर्वभ्यासेन तेनैव

श्री: श्रीमते शठकोपाय नमः श्रीमते रामानुजाय नमः श्रीमद्वरवरमुनये नमः अध्याय ६ << अध्याय ६ श्लोक ४३ श्लोक पूर्वभ्यासेन तेनैव ह्रियते ह्यवशोऽपि स: | पद पदार्थ तेन पूर्वभ्यासेन एव – पिछले जन्म में किए गए योगाभ्यास के परिणामस्वरूपस:- वहअवशा: अपि – अनायासह्रियते – आकर्षित हो जाता है (योग की ओर) सरल अनुवाद पिछले जन्म में किए … Read more

६.४३ – तत्र तम् बुद्दि संयोगम्

श्री: श्रीमते शठकोपाय नमः श्रीमते रामानुजाय नमः श्रीमद्वरवरमुनये नमः अध्याय ६ << अध्याय ६ श्लोक ४२ श्लोक तत्र तं  बुद्धिसंयोगं  लभते पौर्वदैहिकम् ।यतते च ततो भूयः संसिद्धौ  कुरुनन्दन ॥ पद पदार्थ तत्र – उन जन्मों मेंपौर्वदैहिकं – पिछले जन्म सेतं बुद्धि संयोगं – बुद्धि (योग से संबंधित)लभते – प्राप्त करता हैकुरु नन्दन – हे कुरु … Read more

६.४२ – अथवा योगिनामेव

श्री: श्रीमते शठकोपाय नमः श्रीमते रामानुजाय नमः श्रीमद्वरवरमुनये नमः अध्याय ६ << अध्याय ६ श्लोक ४१ श्लोक अथवा योगिनामेव कुले महति [भवति] धीमताम् ।एतद्धि दुर्लभतरं लोके जन्म यदीदृशम् ॥ पद पदार्थ अथवा – वैकल्पिक रूप से (यदि वह योग अभ्यास में अच्छी तरह से उन्नत होने के बाद फिसल गया)धीमताम् – बहुत बुद्धिमानयोगिनां येव – … Read more

६.४१ – प्राप्य पुण्यकृताम् लोकान्

श्री: श्रीमते शठकोपाय नमः श्रीमते रामानुजाय नमः श्रीमद्वरवरमुनये नमः अध्याय ६ << अध्याय ६ श्लोक ४० श्लोक प्राप्य पुण्यकृतां लोकानुषित्वा शाश्वतीः समाः ।शुचीनां श्रीमतां गेहे योगभ्रष्टोऽभिजायते ॥ पद पदार्थ योगभ्रष्टा: – जो योगाभ्यास शुरू करने के बाद फिसल गया/लड़खड़ा गया (ऐसे योग की महिमा से)पुण्यकृतांलोकान् प्राप्य: – उस परमलोक को प्राप्त करता है जहाँ अत्यंत … Read more

६.४० – पार्थ नैवेह नामुत्र

श्री: श्रीमते शठकोपाय नमः श्रीमते रामानुजाय नमः श्रीमद्वरवरमुनये नमः अध्याय ६ << अध्याय ६ श्लोक ३९ श्लोक श्री भगवान उवाचपार्थ नैवेह नामुत्र विनाशस्तस्य विद्यते ।न हि कल्याणकृत्कश्चिद्दुर्गतिं तात गच्छति ॥ पद पदार्थ श्री भगवान उवाच – श्री कृष्ण बोलेपार्थ – हे कुन्तीपुत्र!तस्य – उस व्यक्ति के लिए जिसने योग करना शुरू किया, लेकिन बाद में … Read more