६.२० – यत्रोपरमते चित्तम्
श्री: श्रीमते शठकोपाय नमः श्रीमते रामानुजाय नमः श्रीमद्वरवरमुनये नमः अध्याय ६ << अध्याय ६ श्लोक १९ श्लोक यत्रोपरमते चित्तं निरुद्धं योगसेवया |यत्र चैवात्मनात्मानं पश्यन्नात्मनि तुष्यति || पद पदार्थ योग सेवया – योग अभ्यास के कारण ( स्वयं का दर्शन )निरुद्धं – नियंत्रित ( बाहरी पहलुओं पर जाने से)चित्तं – मनयत्र – योग में ( स्वयं … Read more