శ్రీ భగవత్ గీతా సారం – అధ్యాయం 8 (అక్షర పరబ్రహ్మ యోగం)

శ్రీః  శ్రీమతే శఠకోపాయ నమః  శ్రీమతే రామానుజాయ నమః  శ్రీమత్ వరవరమునయే నమః శ్రీ భగవద్ గీతా సారం << అధ్యాయం 7 గీతార్థ సంగ్రహం లోని 12వ శ్లోకం లో, ఆళవందార్లు ఎనిమిదవ అధ్యాయం యొక్క సారాంశం వివరిస్తూ “ఈ 8వ అధ్యాయం యొక్క సారాంశం, భౌతిక సంపద ఆశించే ఐశ్వర్యార్థులు, భౌతిక దేహం త్యజించి తమని తాము అనుభవించాలి అనుకునే కైవల్యార్థులు మరియు భగవద్ పాదాలు చేరాలి అనుకునే జ్ఞానులు, తెలుసుకోవాల్సిన వివిధమైన తత్త్వాలు … Read more

श्री भगवद्गीता का सारतत्व – अध्याय ७ (विज्ञान योग)

श्री: श्रीमते शठकोपाय नमः श्रीमते रामानुजाय नमः श्रीमद्वरवरमुनये नमः श्री भगवद्गीता – प्रस्तावना << अध्याय ६ गीतार्थ संग्रह के ग्यारहवे श्लोक में स्वामी आळवन्दार् , भगवद्गीता के सातवे अध्याय की सार को दयापूर्वक समझाते हैं , ” सातवे अध्याय में , परमपुरुष का वास्तविक स्वरूप अर्थात् वही उपासना ( भक्ति ) के वस्तु हैं , … Read more

७.३० – साधिभूताधिदैवं माम्

श्री: श्रीमते शठकोपाय नमः श्रीमते रामानुजाय नमः श्रीमद्वरवरमुनये नमः अध्याय ७ << अध्याय ७ श्लोक २९ श्लोक साधिभूताधिदैवं मां साधियज्ञं च ये विदुः ।प्रयाणकालेऽपि च मां ते विदुर्युक्तचेतसः ॥ पद पदार्थ ये – ऐश्वर्यार्थी ( जो लोग सांसारिक धन की इच्छा रखते हैं )स अधिभूत अधिदैवं – अधिभूत और अधिदैव गुणों से युक्त [ इन्हें … Read more

७.२९ – जरामरणमोक्षाय

श्री: श्रीमते शठकोपाय नमः श्रीमते रामानुजाय नमः श्रीमद्वरवरमुनये नमः अध्याय ७ << अध्याय ७ श्लोक २८ श्लोक जरामरणमोक्षाय मामाश्रित्य यतन्ति ये ।ते ब्रह्य तद्विदुः कृत्स्नमध्यात्मं कर्म चाखिलम् ॥ पद पदार्थ जरा मरण मोक्षाय – आत्मानुभव रूप मोक्ष (आत्मानंद रूप मुक्ति) पाने के लिए , अस्तित्व के छह पहलुओं जैसे वृद्धावस्था, मृत्यु इत्यादि से मुक्त होने … Read more

७.२८ – येषां त्वन्तगतं पापं

श्री: श्रीमते शठकोपाय नमः श्रीमते रामानुजाय नमः श्रीमद्वरवरमुनये नमः अध्याय ७ << अध्याय ७ श्लोक २७ श्लोक येषां त्वन्तगतं पापं जनानां पुण्यकर्मणाम् ।ते द्वन्द्वमोहनिर्मुक्ता: भजन्ते मां दृढव्रताः ॥ पद पदार्थ पुण्यकर्मणां येषां तु जनानां – जिन आत्माओं ने बहुत अधिक पुण्य कर्म किये हैंपापं अन्त गतं – जब ( उनके ) पाप ( जैसे पहले … Read more

७.२७ – इच्छाद्वेषसमुत्थेन

श्री: श्रीमते शठकोपाय नमः श्रीमते रामानुजाय नमः श्रीमद्वरवरमुनये नमः अध्याय ७ << अध्याय ७ श्लोक २६ श्लोक इच्छाद्वेषसमुत्थेन द्वन्द्वमोहेन भारत ।सर्वभूतानि सम्मोहं सर्गे यान्ति परन्तप ॥ पद पदार्थ भारत – हे भरत वंशी !परन्तप – हे शत्रुओं का अत्याचारी !इच्छाद्वेष समुत्थेन – कुछ ( लौकिक विषयों ) पहलुओं के प्रति पसंद और कुछ पहलुओं के … Read more

७.२६ – वेदाहं समतीतानि

श्री: श्रीमते शठकोपाय नमः श्रीमते रामानुजाय नमः श्रीमद्वरवरमुनये नमः अध्याय ७ << अध्याय ७ श्लोक २५ श्लोक वेदाहं समतीतानि वर्तमानानि चार्जुन ।भविष्याणि च भूतानि मां तु वेद न कश्चन ॥ पद पदार्थ अर्जुन – हे अर्जुन !समतीतानि – भूत केवर्तमानानि – वर्तमान केभविष्याणि च – भविष्य केभूतानि – सभी बद्ध आत्माअहम् – मैंवेद – जानता … Read more

७.२५ – नाहं प्रकाशः सर्वस्य

श्री: श्रीमते शठकोपाय नमः श्रीमते रामानुजाय नमः श्रीमद्वरवरमुनये नमः अध्याय ७ << अध्याय ७ श्लोक २४ श्लोक नाहं प्रकाशः सर्वस्य योगमायासमावृतः ।मूढोऽयं नाभिजानाति लोको मामजमव्ययम् ॥ पद पदार्थ योगमाया समावृतः अहम् – मैं , जो मनुष्य रूप धारण किया हूँ , माया ( अद्भुत सामर्थ्य ) से आवृतसर्वस्य – इस दुनिया में अधिकतम लोगों के … Read more

७.२४ – अव्यक्तं व्यक्तिमापन्नम्

श्री: श्रीमते शठकोपाय नमः श्रीमते रामानुजाय नमः श्रीमद्वरवरमुनये नमः अध्याय ७ << अध्याय ७ श्लोक २३ श्लोक अव्यक्तं व्यक्तिमापन्नं मन्यन्ते मामबुद्धयः ।परं भावमजानन्तो ममाव्ययमनुत्तमम् ॥ पद पदार्थ अबुद्धय – अधिकतम जीवात्मा जो मूर्ख हैंअव्ययं – अविनाशीअनुत्तमं – सर्वोच्च, बिना कोई तुलनामम परं भावं – मेरा श्रेष्ठ स्वभावअजानन्तं – बिना जानेमां – मुझेअव्यक्तं – पहले ऐसे … Read more

७.२३ – अन्तवत्तु फलं तेषाम्

श्री: श्रीमते शठकोपाय नमः श्रीमते रामानुजाय नमः श्रीमद्वरवरमुनये नमः अध्याय ७ << अध्याय ७ श्लोक २२ श्लोक अन्तवत्तु फलं तेषां तद्भवत्यल्पमेधसाम् ।देवान्देवयजो यान्ति मद्भक्ता यान्ति मामपि ॥ पद पदार्थ अल्पमेधसां तेषां – उन कम बुद्धिमान लोगों कीतत् फलं – पूजा का फलअन्तवत् तु – (महत्वहीन) और उसका अंत होता है;( क्योंकि )देवयज: – जो अन्य … Read more