श्री भगवद्गीता का सारतत्व – अध्याय ७ (विज्ञान योग)

श्री: श्रीमते शठकोपाय नमः श्रीमते रामानुजाय नमः श्रीमद्वरवरमुनये नमः श्री भगवद्गीता – प्रस्तावना << अध्याय ६ गीतार्थ संग्रह के ग्यारहवे श्लोक में स्वामी आळवन्दार् , भगवद्गीता के सातवे अध्याय की सार को दयापूर्वक समझाते हैं , ” सातवे अध्याय में , परमपुरुष का वास्तविक स्वरूप अर्थात् वही उपासना ( भक्ति ) के वस्तु हैं , … Read more

७.३० – साधिभूताधिदैवं माम्

श्री: श्रीमते शठकोपाय नमः श्रीमते रामानुजाय नमः श्रीमद्वरवरमुनये नमः अध्याय ७ << अध्याय ७ श्लोक २९ श्लोक साधिभूताधिदैवं मां साधियज्ञं च ये विदुः ।प्रयाणकालेऽपि च मां ते विदुर्युक्तचेतसः ॥ पद पदार्थ ये – ऐश्वर्यार्थी ( जो लोग सांसारिक धन की इच्छा रखते हैं )स अधिभूत अधिदैवं – अधिभूत और अधिदैव गुणों से युक्त [ इन्हें … Read more

७.२९ – जरामरणमोक्षाय

श्री: श्रीमते शठकोपाय नमः श्रीमते रामानुजाय नमः श्रीमद्वरवरमुनये नमः अध्याय ७ << अध्याय ७ श्लोक २८ श्लोक जरामरणमोक्षाय मामाश्रित्य यतन्ति ये ।ते ब्रह्य तद्विदुः कृत्स्नमध्यात्मं कर्म चाखिलम् ॥ पद पदार्थ जरा मरण मोक्षाय – आत्मानुभव रूप मोक्ष (आत्मानंद रूप मुक्ति) पाने के लिए , अस्तित्व के छह पहलुओं जैसे वृद्धावस्था, मृत्यु इत्यादि से मुक्त होने … Read more

७.२८ – येषां त्वन्तगतं पापं

श्री: श्रीमते शठकोपाय नमः श्रीमते रामानुजाय नमः श्रीमद्वरवरमुनये नमः अध्याय ७ << अध्याय ७ श्लोक २७ श्लोक येषां त्वन्तगतं पापं जनानां पुण्यकर्मणाम् ।ते द्वन्द्वमोहनिर्मुक्ता: भजन्ते मां दृढव्रताः ॥ पद पदार्थ पुण्यकर्मणां येषां तु जनानां – जिन आत्माओं ने बहुत अधिक पुण्य कर्म किये हैंपापं अन्त गतं – जब ( उनके ) पाप ( जैसे पहले … Read more

७.२७ – इच्छाद्वेषसमुत्थेन

श्री: श्रीमते शठकोपाय नमः श्रीमते रामानुजाय नमः श्रीमद्वरवरमुनये नमः अध्याय ७ << अध्याय ७ श्लोक २६ श्लोक इच्छाद्वेषसमुत्थेन द्वन्द्वमोहेन भारत ।सर्वभूतानि सम्मोहं सर्गे यान्ति परन्तप ॥ पद पदार्थ भारत – हे भरत वंशी !परन्तप – हे शत्रुओं का अत्याचारी !इच्छाद्वेष समुत्थेन – कुछ ( लौकिक विषयों ) पहलुओं के प्रति पसंद और कुछ पहलुओं के … Read more

७.२६ – वेदाहं समतीतानि

श्री: श्रीमते शठकोपाय नमः श्रीमते रामानुजाय नमः श्रीमद्वरवरमुनये नमः अध्याय ७ << अध्याय ७ श्लोक २५ श्लोक वेदाहं समतीतानि वर्तमानानि चार्जुन ।भविष्याणि च भूतानि मां तु वेद न कश्चन ॥ पद पदार्थ अर्जुन – हे अर्जुन !समतीतानि – भूत केवर्तमानानि – वर्तमान केभविष्याणि च – भविष्य केभूतानि – सभी बद्ध आत्माअहम् – मैंवेद – जानता … Read more

७.२५ – नाहं प्रकाशः सर्वस्य

श्री: श्रीमते शठकोपाय नमः श्रीमते रामानुजाय नमः श्रीमद्वरवरमुनये नमः अध्याय ७ << अध्याय ७ श्लोक २४ श्लोक नाहं प्रकाशः सर्वस्य योगमायासमावृतः ।मूढोऽयं नाभिजानाति लोको मामजमव्ययम् ॥ पद पदार्थ योगमाया समावृतः अहम् – मैं , जो मनुष्य रूप धारण किया हूँ , माया ( अद्भुत सामर्थ्य ) से आवृतसर्वस्य – इस दुनिया में अधिकतम लोगों के … Read more

७.२४ – अव्यक्तं व्यक्तिमापन्नम्

श्री: श्रीमते शठकोपाय नमः श्रीमते रामानुजाय नमः श्रीमद्वरवरमुनये नमः अध्याय ७ << अध्याय ७ श्लोक २३ श्लोक अव्यक्तं व्यक्तिमापन्नं मन्यन्ते मामबुद्धयः ।परं भावमजानन्तो ममाव्ययमनुत्तमम् ॥ पद पदार्थ अबुद्धय – अधिकतम जीवात्मा जो मूर्ख हैंअव्ययं – अविनाशीअनुत्तमं – सर्वोच्च, बिना कोई तुलनामम परं भावं – मेरा श्रेष्ठ स्वभावअजानन्तं – बिना जानेमां – मुझेअव्यक्तं – पहले ऐसे … Read more

७.२३ – अन्तवत्तु फलं तेषाम्

श्री: श्रीमते शठकोपाय नमः श्रीमते रामानुजाय नमः श्रीमद्वरवरमुनये नमः अध्याय ७ << अध्याय ७ श्लोक २२ श्लोक अन्तवत्तु फलं तेषां तद्भवत्यल्पमेधसाम् ।देवान्देवयजो यान्ति मद्भक्ता यान्ति मामपि ॥ पद पदार्थ अल्पमेधसां तेषां – उन कम बुद्धिमान लोगों कीतत् फलं – पूजा का फलअन्तवत् तु – (महत्वहीन) और उसका अंत होता है;( क्योंकि )देवयज: – जो अन्य … Read more

७.२२ – स तया श्रद्धया युक्त:

श्री: श्रीमते शठकोपाय नमः श्रीमते रामानुजाय नमः श्रीमद्वरवरमुनये नमः अध्याय ७ << अध्याय ७ श्लोक २१ श्लोक स तया श्रद्धया युक्तस्तस्याराधनमीहते ।लभते च ततः कामान्मयैव विहितान्हि तान् ॥ पद पदार्थ स: – उस देवतान्तर् [ अन्य देवता ] का भक्ततया श्रद्धया युक्त: – उस विश्वास के साथतस्य – उस देवता काआराधनम् ईहते – पूजा करने … Read more