७.१२ – ये चैव सात्विका  भावा

श्री: श्रीमते शठकोपाय नमः श्रीमते रामानुजाय नमः श्रीमद्वरवरमुनये नमः अध्याय ७ << अध्याय ७ श्लोक ११ श्लोक ये चैव सात्विका भावा राजसास्तामसाश्च ये |मत्त एवेति तान्विद्धि न त्वहं तेषु ते मयि || पद पदार्थ ये च एव सात्विका: भावा: – इस दुनिया में वे सत्ताएं जिनमें सत्वगुण प्रचुर मात्रा में है।ये च (एव) राजस: तमसा: … Read more

७.११ – बलं बलवतां चाहम्

श्री: श्रीमते शठकोपाय नमः श्रीमते रामानुजाय नमः श्रीमद्वरवरमुनये नमः अध्याय ७ << अध्याय ७ श्लोक १० श्लोक बलं बलवतां चाहं कामरागविवर्जितम् |धर्माविरुद्धो भूतेषु कामोऽस्मि भरतर्षभ || पद पदार्थ भरतर्षभ – हे भरत वंशजों में श्रेष्ठ!अहम् – मैंबलवतां – बलवान काकाम राग विवर्जितं बलम् (अस्मि) – वह शक्ति हूँ जो उन्हें वासना से दूर रखती हैभूतेषु … Read more

७.१० – भीजं मां सर्वभूतानाम्

श्री: श्रीमते शठकोपाय नमः श्रीमते रामानुजाय नमः श्रीमद्वरवरमुनये नमः अध्याय ७ << अध्याय ७ श्लोक ९ श्लोक भीजं मां सर्वभूतानां विद्धि पार्थ सनातनम् |बुद्धिर्बुद्धिमतामस्मि तेजस्तेजस्विनामहम् || पद पदार्थ पार्थ – हे कुन्तीपुत्र!सर्व भूतानाम् – उन सभी सत्ताओं में जो परिवर्तन से गुजरती हैंसनातनं बीजं माम् विद्धि – मुझे उस शाश्वत क्षमता के रूप में जानो … Read more

७.९ – पुण्यो गन्धः पृथिव्यां  च

श्री: श्रीमते शठकोपाय नमः श्रीमते रामानुजाय नमः श्रीमद्वरवरमुनये नमः अध्याय ७ << अध्याय ७ श्लोक ८ श्लोक पुण्यो गन्धः पृथिव्यां च तेजश्चास्मि विभावसौ |जीवनं सर्वभूतेषु तपश्चास्मि तपस्विषु || पद पदार्थ पृथिव्यां च – पृथ्वी मेंपुण्य: गंध: (अस्मि) – मैं सुवास हूँविभावसौ – अग्नि मेंतेज : अस्मि – मैं प्रकाश हूँसर्व भूतेषु – सभी प्राणियों मेंजीवनं … Read more

७.८ – रसोऽहम् अप्सु कौन्तेय

श्री: श्रीमते शठकोपाय नमः श्रीमते रामानुजाय नमः श्रीमद्वरवरमुनये नमः अध्याय ७ << अध्याय ७ श्लोक ७ श्लोक रसोऽहमप्सु कौन्तेय प्रभाऽस्मि शशिसूर्ययोः ।प्रणवः सर्ववेदेषु शब्दः खे पौरुषं नृषु ॥ पद पदार्थ कौन्तेय – हे कुन्ती पुत्र!अहं – मैंअप्सु – पानी मेंरस: (अस्मि) – अच्छा स्वाद हूँशशिसूर्ययो:- चन्द्रमा और सूर्य काप्रभाऽस्मि – मैं तेज हूँसर्व वेदेषु – … Read more

७.७ – मयि सर्वम् इदं प्रोतम्

श्री: श्रीमते शठकोपाय नमः श्रीमते रामानुजाय नमः श्रीमद्वरवरमुनये नमः अध्याय ७ << अध्याय ७ श्लोक ६.५ श्लोक मयि सर्वमिदं प्रोतं  सूत्रे मणिगणा इव ॥ पद पदार्थ इदं सर्वं – ये सभी सत्ताएंसूत्रे – एक डोरी  परमणिगणा इव – जैसे रत्न जड़े हुएमयि प्रोतं – मुझ पर आश्रित सरल अनुवाद जैसे  एक डोरी में रत्न जड़े … Read more

७.६ – एतद्योनीनि भूतानि

श्री: श्रीमते शठकोपाय नमः श्रीमते रामानुजाय नमः श्रीमद्वरवरमुनये नमः अध्याय ७ << अध्याय ७ श्लोक ५ श्लोक एतद्योनीनि भूतानि सर्वाणीत्युपधारय ।अहं  कृत्स्नस्य  जगतः प्रभवः प्रळयस्तथा ॥ पद पदार्थ एतद्योनीनि – चेतन और अचेतन के इस संग्रह का कारण के रूप में होनासर्वाणि भूतानि – सभी सत्ताएं (ब्रह्मा से लेकर घास के एक तिनके तक)इति – … Read more

७.५ – अपरेयं इतस् त्वन्याम्

श्री: श्रीमते शठकोपाय नमः श्रीमते रामानुजाय नमः श्रीमद्वरवरमुनये नमः अध्याय ७ << अध्याय ७ श्लोक ४ श्लोक अपरेयमितस्त्वन्यां  प्रकृतिं  विद्धि मे पराम् ।जीवभूतां  महाबाहो ययेदं  धार्यते जगत् ॥ पद पदार्थ महाबाहो – हे शक्तिशाली भुजाओं वाले!इयं – यह भौतिक प्रकृति जो अचेतन हैअपरा – हीन है;इत: – इससेअन्यां तु – भिन्नजीवभूतां – जिसे जीव कहा … Read more

७.४ – भूमि: आपोऽनलो वायुः

श्री: श्रीमते शठकोपाय नमः श्रीमते रामानुजाय नमः श्रीमद्वरवरमुनये नमः अध्याय ७ << अध्याय ७ श्लोक ३ श्लोक भूमिरापोऽनलो वायुः खं  मनो बुद्धिरेव  च ।अहङ्कार  इतीयं  मे भिन्ना प्रकृतिरष्टधा ॥ पद पदार्थ (ये पांच महान तत्व)भूमि: -पृथ्वीआप: – पानीअनल: -अग्निवायु: – हवाखं – आकाशमन: – मन (और अन्य इंद्रियाँ)बुद्धि: – महान (महान तत्व)अहङ्कार: च – और … Read more

७.३ – मनुष्याणां सहस्रेषु

श्री: श्रीमते शठकोपाय नमः श्रीमते रामानुजाय नमः श्रीमद्वरवरमुनये नमः अध्याय ७ << अध्याय ७ श्लोक २ श्लोक मनुष्याणां  सहस्रेषु कश्चिद्यतति सिद्धये ।यततामपि सिद्धानां कश्चिन्मां वेत्ति तत्वतः ॥ पद पदार्थ मनुष्याणां – उन लोगों में से जो शास्त्र सीखने के योग्य हैंसहस्रेषु – हजारों के बीचकश्चित – केवल एकसिद्धये यतति – मुक्ति प्राप्त होने तक लगातार … Read more