७.१३.५ – दैवी ह्येषा गुणमयी

श्री: श्रीमते शठकोपाय नमः श्रीमते रामानुजाय नमः श्रीमद्वरवरमुनये नमः अध्याय ७ << अध्याय ७ श्लोक १३ श्लोक दैवी ह्येषा गुणमयी मम माया दुरत्यया | पद पदार्थ मम – मेराएषा – यहगुणमयि – तीन गुणों से भरपूरमाया – भौतिक प्रकृति/क्षेत्रदैवी – क्योंकि मेरे द्वारा बनाया गया है जो देव (भगवान) हैदुरत्यया – पार करना कठिन है … Read more

७.१३ – त्रिभि: गुणमयै: भावै:

श्री: श्रीमते शठकोपाय नमः श्रीमते रामानुजाय नमः श्रीमद्वरवरमुनये नमः अध्याय ७ << अध्याय ७ श्लोक १२ श्लोक त्रिभिर्गुणमयैर्भावैरेभिः सर्वमिदं जगत् |मोहितं नाभिजानाती मामेभ्य : परमव्ययम्  || पद पदार्थ सर्वं इदं जगत् – इस संसार में सभी जीवात्माएँएभि: त्रिभि: गुणमयै: भावै: – इन तीन गुणों (सत्व, रज, तम) से युक्त वस्तुओं द्वारामोहितं – भ्रमितएभ्य: परं – … Read more

७.१२ – ये चैव सात्विका  भावा

श्री: श्रीमते शठकोपाय नमः श्रीमते रामानुजाय नमः श्रीमद्वरवरमुनये नमः अध्याय ७ << अध्याय ७ श्लोक ११ श्लोक ये चैव सात्विका भावा राजसास्तामसाश्च ये |मत्त एवेति तान्विद्धि न त्वहं तेषु ते मयि || पद पदार्थ ये च एव सात्विका: भावा: – इस दुनिया में वे सत्ताएं जिनमें सत्वगुण प्रचुर मात्रा में है।ये च (एव) राजस: तमसा: … Read more

७.११ – बलं बलवतां चाहम्

श्री: श्रीमते शठकोपाय नमः श्रीमते रामानुजाय नमः श्रीमद्वरवरमुनये नमः अध्याय ७ << अध्याय ७ श्लोक १० श्लोक बलं बलवतां चाहं कामरागविवर्जितम् |धर्माविरुद्धो भूतेषु कामोऽस्मि भरतर्षभ || पद पदार्थ भरतर्षभ – हे भरत वंशजों में श्रेष्ठ!अहम् – मैंबलवतां – बलवान काकाम राग विवर्जितं बलम् (अस्मि) – वह शक्ति हूँ जो उन्हें वासना से दूर रखती हैभूतेषु … Read more

७.१० – भीजं मां सर्वभूतानाम्

श्री: श्रीमते शठकोपाय नमः श्रीमते रामानुजाय नमः श्रीमद्वरवरमुनये नमः अध्याय ७ << अध्याय ७ श्लोक ९ श्लोक भीजं मां सर्वभूतानां विद्धि पार्थ सनातनम् |बुद्धिर्बुद्धिमतामस्मि तेजस्तेजस्विनामहम् || पद पदार्थ पार्थ – हे कुन्तीपुत्र!सर्व भूतानाम् – उन सभी सत्ताओं में जो परिवर्तन से गुजरती हैंसनातनं बीजं माम् विद्धि – मुझे उस शाश्वत क्षमता के रूप में जानो … Read more

७.९ – पुण्यो गन्धः पृथिव्यां  च

श्री: श्रीमते शठकोपाय नमः श्रीमते रामानुजाय नमः श्रीमद्वरवरमुनये नमः अध्याय ७ << अध्याय ७ श्लोक ८ श्लोक पुण्यो गन्धः पृथिव्यां च तेजश्चास्मि विभावसौ |जीवनं सर्वभूतेषु तपश्चास्मि तपस्विषु || पद पदार्थ पृथिव्यां च – पृथ्वी मेंपुण्य: गंध: (अस्मि) – मैं सुवास हूँविभावसौ – अग्नि मेंतेज : अस्मि – मैं प्रकाश हूँसर्व भूतेषु – सभी प्राणियों मेंजीवनं … Read more

७.८ – रसोऽहम् अप्सु कौन्तेय

श्री: श्रीमते शठकोपाय नमः श्रीमते रामानुजाय नमः श्रीमद्वरवरमुनये नमः अध्याय ७ << अध्याय ७ श्लोक ७ श्लोक रसोऽहमप्सु कौन्तेय प्रभाऽस्मि शशिसूर्ययोः ।प्रणवः सर्ववेदेषु शब्दः खे पौरुषं नृषु ॥ पद पदार्थ कौन्तेय – हे कुन्ती पुत्र!अहं – मैंअप्सु – पानी मेंरस: (अस्मि) – अच्छा स्वाद हूँशशिसूर्ययो:- चन्द्रमा और सूर्य काप्रभाऽस्मि – मैं तेज हूँसर्व वेदेषु – … Read more

७.७ – मयि सर्वम् इदं प्रोतम्

श्री: श्रीमते शठकोपाय नमः श्रीमते रामानुजाय नमः श्रीमद्वरवरमुनये नमः अध्याय ७ << अध्याय ७ श्लोक ६.५ श्लोक मयि सर्वमिदं प्रोतं  सूत्रे मणिगणा इव ॥ पद पदार्थ इदं सर्वं – ये सभी सत्ताएंसूत्रे – एक डोरी  परमणिगणा इव – जैसे रत्न जड़े हुएमयि प्रोतं – मुझ पर आश्रित सरल अनुवाद जैसे  एक डोरी में रत्न जड़े … Read more

७.६.५ – मत्तः परतरं नान्यत्

श्री: श्रीमते शठकोपाय नमः श्रीमते रामानुजाय नमः श्रीमद्वरवरमुनये नमः अध्याय ७ << अध्याय ७ श्लोक ६ श्लोक मत्तः परतरं  नान्यत्किञ्चिदस्ति धनञ्जय। पद पदार्थ धनञ्जय – हे अर्जुन!मत्तः – मुझसे भी अन्यत् किञ्चित् अपि – जो कुछ भी अलग हैपरतरं नास्ति – उच्चतर कुछ भी उपस्थित नहीं है सरल अनुवाद हे अर्जुन! मुझसे बढ़कर कुछ भी … Read more

७.६ – एतद्योनीनि भूतानि

श्री: श्रीमते शठकोपाय नमः श्रीमते रामानुजाय नमः श्रीमद्वरवरमुनये नमः अध्याय ७ << अध्याय ७ श्लोक ५ श्लोक एतद्योनीनि भूतानि सर्वाणीत्युपधारय ।अहं  कृत्स्नस्य  जगतः प्रभवः प्रळयस्तथा ॥ पद पदार्थ एतद्योनीनि – चेतन और अचेतन के इस संग्रह का कारण के रूप में होनासर्वाणि भूतानि – सभी सत्ताएं (ब्रह्मा से लेकर घास के एक तिनके तक)इति – … Read more