७.४ – भूमि: आपोऽनलो वायुः

श्री: श्रीमते शठकोपाय नमः श्रीमते रामानुजाय नमः श्रीमद्वरवरमुनये नमः अध्याय ७ << अध्याय ७ श्लोक ३ श्लोक भूमिरापोऽनलो वायुः खं  मनो बुद्धिरेव  च ।अहङ्कार  इतीयं  मे भिन्ना प्रकृतिरष्टधा ॥ पद पदार्थ (ये पांच महान तत्व)भूमि: -पृथ्वीआप: – पानीअनल: -अग्निवायु: – हवाखं – आकाशमन: – मन (और अन्य इंद्रियाँ)बुद्धि: – महान (महान तत्व)अहङ्कार: च – और … Read more

७.३ – मनुष्याणां सहस्रेषु

श्री: श्रीमते शठकोपाय नमः श्रीमते रामानुजाय नमः श्रीमद्वरवरमुनये नमः अध्याय ७ << अध्याय ७ श्लोक २ श्लोक मनुष्याणां  सहस्रेषु कश्चिद्यतति सिद्धये ।यततामपि सिद्धानां कश्चिन्मां वेत्ति तत्वतः ॥ पद पदार्थ मनुष्याणां – उन लोगों में से जो शास्त्र सीखने के योग्य हैंसहस्रेषु – हजारों के बीचकश्चित – केवल एकसिद्धये यतति – मुक्ति प्राप्त होने तक लगातार … Read more

७.२ – ज्ञानं तेऽहं सविज्ञानम्

श्री: श्रीमते शठकोपाय नमः श्रीमते रामानुजाय नमः श्रीमद्वरवरमुनये नमः अध्याय ७ << अध्याय ७ श्लोक १ श्लोक ज्ञानं तेऽहं सविज्ञानमिदं वक्ष्याम्यशेषतः ।यज्ज्ञात्वा नेह भूयोन्यज्ज्ञातव्यमवशिष्यते ॥ पद पदार्थ अहं – मैंवे- तुम्हेंइदं ज्ञानं – यह ज्ञान (मेरे बारे में)सविज्ञानं – महान/विशेष ज्ञान के साथअशेषतः – पूरी तरहवक्ष्यामि – समझाते हुए;यत् – वह ज्ञानभूय: – फिरज्ञातव्यं – जो ज्ञात … Read more

७.१ – मय्यासक्तमनाः पार्थ

श्री: श्रीमते शठकोपाय नमः श्रीमते रामानुजाय नमः श्रीमद्वरवरमुनये नमः अध्याय ७ << अध्याय ६ श्लोक ४७ श्लोक श्री भगवान् उवाचमय्यासक्तमनाः पार्थ योगं  युञ्जन्मदाश्रय : ।असंशयं  समग्रं  मां  यथा  ज्ञास्यसि तच्छृणु  ॥ पद पदार्थ श्री भगवान् उवाच – भगवान श्रीकृष्ण ने कहापार्थ – हे कुन्तीपुत्र!मयि – मुझमेंआसक्तमना:- अत्यंत आसक्त मन सेमद्राश्रय: – मुझ पर आश्रय  करते … Read more

अध्याय ७ – विज्ञान योग (या ) सर्वोच्च बुद्धि

श्री: श्रीमते शठकोपाय नमः श्रीमते रामानुजाय नमः श्रीमद्वरवरमुनये नमः << अध्याय ६ नम्माळ्वार भगवद् रामानुज आळवार् तिरुनगरी में , श्रीपेरुम्बुदूर् में , श्रीरंगम् में और तिरुनारायणपुरम् में >>अध्याय ८ आधार – http://githa.koyil.org/index.php/7/ संगृहीत – http://githa.koyil.org प्रमेय (लक्ष्य) – http://koyil.orgप्रमाण (शास्त्र) – http://granthams.koyil.orgप्रमाता (आचार्य) – http://acharyas.koyil.orgश्रीवैष्णव शिक्षा/बालकों का पोर्टल – http://pillai.koyil.org

६.४७ – योगिनामपि सर्वेषाम्

श्री: श्रीमते शठकोपाय नमः श्रीमते रामानुजाय नमः श्रीमद्वरवरमुनये नमः अध्याय ६ << अध्याय ६ श्लोक ४६ श्लोक योगिनामपि सर्वेषां मद्गतेनान्तरात्मना ।श्रद्धावान्भजते यो मां स मे युक्ततमो मतः ॥ पद पदार्थ योगिनां – पहले बताए गए योगियों से भी महानअपि सर्वेषां – और अन्य सभी जैसे तपस्वियोंमद्गतेन अंतरात्मना – मुझमें लगे मन सेश्रद्धावान् – इच्छा रखना … Read more

६.४६ – तपस्विभ्योऽधिको योगी

श्री: श्रीमते शठकोपाय नमः श्रीमते रामानुजाय नमः श्रीमद्वरवरमुनये नमः अध्याय ६ << अध्याय ६ श्लोक ४५ श्लोक तपस्विभ्योऽधिको योगी ज्ञानिभ्योऽपि मतोऽधिकः।कर्मिभ्यश्चाधिको योगी तस्माद्योगी भवार्जुन ॥           पद पदार्थ योगी – योग अभ्यासीतपस्विभ्य: अधिक: (मत: ) – उन लोगों से भी बड़ा माना जाता है जो केवल तपस्या में लगे रहते हैं;(योगी … Read more

६.४५ – प्रयत्नाद्यतमानस्तु

श्री: श्रीमते शठकोपाय नमः श्रीमते रामानुजाय नमः श्रीमद्वरवरमुनये नमः अध्याय ६ << अध्याय ६ श्लोक ४४ श्लोक प्रयत्नाद्यतमानस्तु योगी संशुद्धकिल्बिष :।अनेकजन्मसंसिद्धस्ततो  याति परां गतिम् ॥ पद पदार्थ तत: – इस प्रकारसंशुद्ध किल्बिष: -पापों से मुक्त होनाअनेक जन्म संसिद्ध: – पिछले कई जन्मों के पुण्यों से, योग को अच्छी तरह से पूरा करने के योग्य होनाप्रयत्नात् … Read more

६.४४ – जिज्ञासुरपि योगस्य

श्री: श्रीमते शठकोपाय नमः श्रीमते रामानुजाय नमः श्रीमद्वरवरमुनये नमः अध्याय ६ << अध्याय ६ श्लोक ४३.५ श्लोक जिज्ञासुरपि योगस्य शब्दब्रह्मातिवर्तते || पद पदार्थ योगस्य जिज्ञासु: अपि – जो योग सीखने और अभ्यास करने की इच्छा रखता है (योग के मार्ग से भटकने के बाद भी, योग की महिमा से, जैसे कि पहले बताया गया है, … Read more

६.४३.५ – पूर्वभ्यासेन तेनैव

श्री: श्रीमते शठकोपाय नमः श्रीमते रामानुजाय नमः श्रीमद्वरवरमुनये नमः अध्याय ६ << अध्याय ६ श्लोक ४३ श्लोक पूर्वभ्यासेन तेनैव ह्रियते ह्यवशोऽपि स: | पद पदार्थ तेन पूर्वभ्यासेन एव – पिछले जन्म में किए गए योगाभ्यास के परिणामस्वरूपस:- वहअवशा: अपि – अनायासह्रियते – आकर्षित हो जाता है (योग की ओर) सरल अनुवाद पिछले जन्म में किए … Read more