६.४ – यदा हि नेन्द्रियार्थेषु

श्री: श्रीमते शठकोपाय नमः श्रीमते रामानुजाय नमः श्रीमद्वरवरमुनये नमः अध्याय ६ << अध्याय ६ श्लोक ३ श्लोक यदा हि नेन्द्रियार्थेषु न कर्मस्वनुषज्जते ।सर्वसङ्कल्पसंन्यासी योगारूढस्तदोच्यते ॥ पद पदार्थ ( अयं योगी ) – यह कर्म योगी निष्ट ( अभ्यासी )इंन्द्रियार्थेषु – ध्वनि जैसे इन्द्रिय वस्तुओं जिन्हे ज्ञानेंद्रियों से आनंद लिया जा सकता हैयदा – जबन अनुषज्जते … Read more

६.३ – आरुरुक्षोर्मुनेर्योगं

श्री: श्रीमते शठकोपाय नमः श्रीमते रामानुजाय नमः श्रीमद्वरवरमुनये नमः अध्याय ६ << अध्याय ६ श्लोक २ श्लोक आरुरुक्षोर्मुनेर्योगं कर्म कारणमुच्यते ।योगारूढस्य तस्यैव शमः कारणमुच्यते ॥ पद पदार्थ योगं – आत्म साक्षात्कार ( आत्म दृष्टि )आरुरुक्ष: – जो प्राप्त करना चाहता हैमुने: – उस मुमुक्षु के लिए जो आत्म तपस्या में संलग्न हैकर्म – कर्म योगकारणम् … Read more

६.२ – यं संन्यासम् इति प्राहु:

श्री: श्रीमते शठकोपाय नमः श्रीमते रामानुजाय नमः श्रीमद्वरवरमुनये नमः अध्याय ६ << अध्याय ६ श्लोक १ श्लोक यं संन्यासमिति प्राहुर्योगं तं विद्धि पाण्डव ।न ह्यसंन्यस्तसङ्कल्पो योगी भवति कश्चन ॥ पद पदार्थ पाण्डव – हे पाण्डु पुत्र !यं – जिसेसंन्यास: इति – ज्ञानप्राहु: – ( ज्ञानी) कहते हैंतं – वोयोगं विद्धि – जानो कि वह कर्म … Read more

६.१ – अनाश्रितः कर्मफलं

श्री: श्रीमते शठकोपाय नमः श्रीमते रामानुजाय नमः श्रीमद्वरवरमुनये नमः अध्याय ६ << अध्याय ५ श्लोक २९ श्लोक श्री भगवानुवाच –अनाश्रितः कर्मफलं कार्यं कर्म करोति यः ।स संन्यासी च योगी च न निरग्निर्न चाक्रियः ॥ पद पदार्थ श्री भगवानुवाच – भगवान श्री कृष्ण कहते हैंकर्म फलं – कर्म के परिणाम जैसे स्वर्ग इत्यादिअनाश्रितः – पकडे बिनाकार्यं … Read more

अध्याय ६ – अभ्यास योग (या) तपस्या-अभ्यास के नियम

श्री: श्रीमते शठकोपाय नमः श्रीमते रामानुजाय नमः श्रीमद्वरवरमुनये नमः <<अध्याय ५ >>अध्याय ७ आधार – http://githa.koyil.org/index.php/6/ संगृहीत – http://githa.koyil.org प्रमेय (लक्ष्य) – http://koyil.orgप्रमाण (शास्त्र) – http://granthams.koyil.orgप्रमाता (आचार्य) – http://acharyas.koyil.orgश्रीवैष्णव शिक्षा/बालकों का पोर्टल – http://pillai.koyil.org

५.२९ – भोक्तारं यज्ञतपसां

श्री: श्रीमते शठकोपाय नमः श्रीमते रामानुजाय नमः श्रीमद्वरवरमुनये नमः अध्याय ५ << अध्याय ५ श्लोक २८ श्लोक भोक्तारं यज्ञतपसां सर्वलोकमहेश्वरम् ।सुहृदं सर्वभूतानां ज्ञात्वा मां शान्तिमृच्छति ॥ पद पदार्थ यज्ञतपसां भोक्तारं – वो जो यज्ञ और तपस को स्वीकार करते हैंसर्व लोक महेश्वरं – सभी लोकों के सर्वेश्वरसर्वभूतानां सुहृदं – सभी जीवों के मित्रमां – मुझेज्ञात्वा … Read more

५.२८ – यतेन्द्रियमनोबुद्धि:

श्री: श्रीमते शठकोपाय नमः श्रीमते रामानुजाय नमः श्रीमद्वरवरमुनये नमः अध्याय ५ << अध्याय ५ श्लोक २७ श्लोक यतेन्द्रियमनोबुद्धिर्मुनिर्मोक्षपरायणः।विगतेच्छाभयक्रोधो यः सदा मुक्त एव सः ॥ पद पदार्थ यतेन्द्रिय मनोबुद्धि: – नियंत्रित इंद्रिय, मन और बुद्धि के साथ [ आत्म संबंधित विषयों के अलावा अन्य सभी वस्तुओं से दूर रहना ]विगतेच्छाभयक्रोध: – वासना [ उन वस्तुओं के … Read more

५.२७ – स्पर्शान्कृत्वा बहिर्बाह्यांश्

श्री: श्रीमते शठकोपाय नमः श्रीमते रामानुजाय नमः श्रीमद्वरवरमुनये नमः अध्याय ५ << अध्याय ५ श्लोक २६ श्लोक स्पर्शान्कृत्वा बहिर्बाह्यांश्चक्षुश्चैवान्तरे भ्रुवो: |प्राणापानौ समौ कृत्वा नासाभ्यन्तरचारिणौ || पद पदार्थ बाह्यां स्पर्शान् – इन्द्रिय वस्तुओं के बाहरी संपर्कबहि: कृत्वा – बंद करकेचक्षु: च – दोनों आँखों कोभ्रुवो: अन्तरे एव ( कृत्वा ) – भौंहों के बीच स्थिर रखकेनासाभ्यन्तर … Read more

५.२६ – कामक्रोधवियुक्तानां

श्री: श्रीमते शठकोपाय नमः श्रीमते रामानुजाय नमः श्रीमद्वरवरमुनये नमः अध्याय ५ << अध्याय ५ श्लोक २५ श्लोक कामक्रोधवियुक्तानां यतीनां यतचेतसाम् |अभितो ब्रह्मनिर्वाणं वर्तते विजितात्मनाम् || पद पदार्थ काम क्रोध वियुक्तानां – वासना और क्रोध से रहितयतीनां – कामुक सुख से रहितयतचेतसां – अनन्य रूप से आत्मा पर ध्यान केंद्रित होते हुएविजितात्मनां – कर्म योगी के … Read more

५.२५ – लभन्ते ब्रह्मनिर्वाणम्

श्री: श्रीमते शठकोपाय नमः श्रीमते रामानुजाय नमः श्रीमद्वरवरमुनये नमः अध्याय ५ << अध्याय ५ श्लोक २४ श्लोक लभन्ते ब्रह्मनिर्वाणम् ऋषय: क्षीणकल्मषा: |छिन्नद्वैधा यतात्मान: सर्वभूतहिते रता: || पद पदार्थ छिन्नद्वैधा – [ गर्मी – सर्दी इत्यादि ] जैसे जोड़ियों से मुक्त होकरयतात्मान: – अनन्य रूप से आत्मा पर ध्यानकेंद्रित मन के साथसर्व भूत हिते रता: – … Read more