३.२१ – यद् यद् आचरति श्रेष्ठस्

श्री: श्रीमते शठकोपाय नमः श्रीमते रामानुजाय नमः श्रीमद्वरवरमुनये नमः अध्याय ३ << अध्याय ३ श्लोक २० श्लोक यद्यदाचरति श्रेष्ठस्तत्तदेवेतरो जनः।स यत्प्रमाणं  कुरुते लोकस्तदनुवर्तते ॥ पद पदार्थ श्रेष्ठ: – उत्तम व्यक्ति (ज्ञान और अनुष्ठान (ज्ञान के अनुप्रयोग) में)यद् यद् – जो भी कर्म आचरति  – वह पालन  करता हैतत् तत् एव – वही कर्मइतर: जन: – सामान्य … Read more

३.२० – लोकसङ्ग्रहम् एवापि

श्री: श्रीमते शठकोपाय नमः श्रीमते रामानुजाय नमः श्रीमद्वरवरमुनये नमः अध्याय ३ << अध्याय ३ श्लोक १९.५ श्लोक लोकसङ्ग्रहमेवापि सम्पश्यन्कर्तुमर्हसि ॥ पद पदार्थ लोक संग्रहम् एव – केवल [सामान्य सांसारिक] लोगों को प्रेरित करने के लिए [उनकी मदद करने के लिए]संपश्यन्  अपि – इसे ध्यान में रखते हुएकर्तुम् अर्हसि – तुम्हारे  लिए कर्म योग में संलग्न होना … Read more

३.१९.५ – कर्मणैव हि सम्सिद्धिम्

श्री: श्रीमते शठकोपाय नमः श्रीमते रामानुजाय नमः श्रीमद्वरवरमुनये नमः अध्याय ३ << अध्याय ३ श्लोक १९ श्लोक कर्मणैव हि संसिद्धिमास्थिता जनकादयः | पद पदार्थ जनकादयः:- जनक और अन्यकर्मणा एव – केवल कर्म योग के माध्यम से (ज्ञान योग से नहीं)संसिद्धिं  – आत्म-साक्षात्कार का परिणामअस्थिता: हि  – क्या उन्होंने प्राप्त नहीं किया है?   सरल अनुवाद क्या जनक … Read more

३.१९ – तस्मादसक्तः सततम्

श्री: श्रीमते शठकोपाय नमः श्रीमते रामानुजाय नमः श्रीमद्वरवरमुनये नमः अध्याय ३ << अध्याय ३ श्लोक १८ श्लोक तस्मादसक्तः सततं कार्यं कर्म समाचर ।असक्तो ह्याचरन्कर्म परमाप्नोति पूरुषः ॥ पद पदार्थ तस्मात् –  इस प्रकार, इन सभी कारणों से (जो पहले बताया  गया है)असक्तः- वैराग्य सहितसततं  – बिना रुके (जब तक आत्मदृष्टि न मिले )कार्यं (इत्येव) – जो अनिवार्य … Read more

३.१८ – नैव तस्य कृतेनार्थो

श्री: श्रीमते शठकोपाय नमः श्रीमते रामानुजाय नमः श्रीमद्वरवरमुनये नमः अध्याय ३ << अध्याय ३ श्लोक १७ श्लोक नैव तस्य कृतेनार्थो नाकृतेनेह कश्चन ।न चास्य सर्वभूतेषु कश्चिदर्थव्यपाश्रयः ॥ पद पदार्थ इह – आत्मा  ज्ञान की इस अवस्था मेंतस्य – उसके लिएकृतेन  – किये गये कर्मों से अर्थ: न – कोई परिणाम नहीं हैअकृतेन – उन कर्मों से जो नहीं … Read more

३.१७ – यस्त्वात्मरतिरेव स्याद्

श्री: श्रीमते शठकोपाय नमः श्रीमते रामानुजाय नमः श्रीमद्वरवरमुनये नमः अध्याय ३ << अध्याय ३ श्लोक १६ श्लोक यस्त्वात्मरतिरेव स्यादात्मतृप्तश्च मानवः ।आत्मन्येव च सन्तुष्टस्तस्य कार्यं  न विद्यते ॥ पद पदार्थ य: तु मानव: – वह आदमीआत्म रति: एव – केवल आत्मा में लगे रहनाआत्मतृप्त:च (एव) – केवल आत्मा से संतुष्ट होनाआत्मनि एव – आत्मा में हीसन्तुष्ट:- … Read more

३.१६ – एवम् प्रवर्तितम् चक्रम्

श्री: श्रीमते शठकोपाय नमः श्रीमते रामानुजाय नमः श्रीमद्वरवरमुनये नमः अध्याय ३ << अध्याय ३ श्लोक १५ श्लोक एवं प्रवर्तितं चक्रं नानुवर्तयतीह यः ।अघायुरिन्द्रियारामो मोघं पार्थ स जीवति ॥ पद पदार्थ पार्थ – हे कुन्तीपुत्र!एवं – इस प्रकारप्रवर्तितं  – ऐसे पहलू जो एक दूसरे पर निर्भर हैं (भगवान द्वारा व्यवस्थित)चक्रं – पहिए जैसी कारण-प्रभाव व्यवस्थाइह – जो साधन करने की … Read more

३.१५ – कर्म ब्रह्मोद्भवम् विद्धि

श्री: श्रीमते शठकोपाय नमः श्रीमते रामानुजाय नमः श्रीमद्वरवरमुनये नमः अध्याय ३ << अध्याय ३ श्लोक १४ श्लोक कर्म ब्रह्मोद्भवम् विद्धि ब्रह्माक्षरसमुद्भवम् ।तस्मात्सर्वगतं ब्रह्म नित्यं यज्ञे प्रतिष्ठितम् ॥ पद पदार्थ कर्म – कर्म (धार्मिक कार्य)ब्रह्मोद्भवम् – शरीर से उत्पन्नविद्धि –  जानोब्रह्म – शरीरअक्षरसमुद्भवम् – जीवात्मा से उत्पन्नतस्मात् – इस प्रकारसर्वगतं  – वह जो सभी के लिए उपस्थित हैब्रह्म … Read more

३.१४ – अन्नाद् भवन्ति भूतानि

श्री: श्रीमते शठकोपाय नमः श्रीमते रामानुजाय नमः श्रीमद्वरवरमुनये नमः अध्याय ३ << अध्याय ३ श्लोक १३ श्लोक अन्नाद्भवन्ति भूतानि पर्जन्यादन्नसम्भवः ।यज्ञाद्भवति पर्जन्यो यज्ञ : कर्मसमुद्भवः ॥ पद पदार्थ अन्नाद् – भोजन सेभूतानि – देव , मनुष्य  आदि सभी प्राणीभवन्ति – निर्मित;पर्जन्यात्- वर्षा सेअन्न संभव: (भवति) – भोजन का उत्पादन होता हैयज्ञात् – यज्ञ सेपर्जन्य – वर्षाभवति … Read more

३.१३ – यज्ञ शिष्टाशिनः सन्तो

श्री: श्रीमते शठकोपाय नमः श्रीमते रामानुजाय नमः श्रीमद्वरवरमुनये नमः अध्याय ३ << अध्याय ३ श्लोक १२ श्लोक यज्ञशिष्टाशिनः सन्तो मुच्यन्ते सर्वकिल्बिषैः ।भुञ्जते ते त्वघं पापा ये पचन्त्यात्मकारणात् ॥ पद पदार्थ यज्ञ शिष्टाशिनः – जो लोग यज्ञ  के अवशेष (जो भगवान की पूजा का हिस्सा है) को खाते हैंसन्त:- अच्छे लोगसर्वकिल्बिषैः – सभी पाप (जो आत्मप्राप्ति में … Read more