श्रीभगवद्गीता का सारतत्व – अध्याय १५ (पुराण पुरुषोत्तम योग)

श्री: श्रीमते शठकोपाय नमः श्रीमते रामानुजाय नमः श्रीमद्वरवरमुनये नमः श्री भगवद्गीता – प्रस्तावना << अध्याय १४ गीतार्थ संग्रह के उन्नीसवें श्लोक में, आळवन्दार पन्द्रहवें अध्याय का सारांश समझाते हुए कहते हैं, “पन्द्रहवें अध्याय में – श्रीमन्नारायण, जो पुरूषोत्तम हैं, के बारे में बताया गया है। वे बध्द जीवात्मा से बेहतर हैं जो अचित (भौतिक शरीर) से … Read more

श्रीभगवद्गीता का सारतत्व – अध्याय १३ (क्षेत्र क्षेत्रज्ञ विभाग योग)

श्री: श्रीमते शठकोपाय नमः श्रीमते रामानुजाय नमः श्रीमद्वरवरमुनये नमः श्री भगवद्गीता – प्रस्तावना << अध्याय १२ गीतार्थ संग्रह के सत्रहवें श्लोक में, आलवन्दार तेरहवें अध्याय का सारांश समझाते हुए कहते हैं, “तेरहवें अध्याय में – शरीर की प्रकृति, जीवात्मा की प्रकृति को प्राप्त करने का साधन, (आत्मा का अचित (शरीर) के साथ) बंधन का कारण … Read more

१८.७८ – यत्र योगेश्वर: कृष्णो

श्रीमते शठकोपाय नमः श्रीमते रामानुजाय नमः श्रीमद्वरवरमुनये नमः अध्याय १८ << अध्याय १८ श्लोक ७७ श्लोक यत्र योगेश्वर: कृष्णो यत्र पार्थो धनुर्धर: |तत्र श्रीर्विजयो भूतिर्ध्रुवा नीतिर्मतिर्मम || पद पदार्थ यत्र – जहाँयोगेश्वर: – समस्त महिमाओं का नियन्त्रक हैंकृष्ण: – कृष्ण (उपस्थित हैं)यत्र – जहाँधनुर्धर: – धनुष धारण किए हुएपार्थ: – अर्जुन (उपस्थित हैं)तत्र – वहाँश्री: – … Read more

१८.७७ – तच्च संस्मृत्य संस्मृत्य

श्रीमते शठकोपाय नमः श्रीमते रामानुजाय नमः श्रीमद्वरवरमुनये नमः अध्याय १८ << अध्याय १८ श्लोक ७६ श्लोक तच्च संस्मृत्य संस्मृत्य रूपमत्यद्भुतं हरे: |विस्मयो मे महान् राजन्हृष्यामि च पुन: पुन: || पद पदार्थ राजन् – हे राजा धृतराष्ट्र!हरे: तत् अद्भुतम् रूपम् – कृष्ण का अद्भुत विश्वरूपसंस्मृत्य संस्मृत्य च – जब जब इसके बारे में सोचता हूँमैं- मुझेमहान् विस्मय:- … Read more

१८.७६ – राजन् संस्मृत्य संस्मृत्य

श्रीमते शठकोपाय नमः श्रीमते रामानुजाय नमः श्रीमद्वरवरमुनये नमः अध्याय १८ << अध्याय १८ श्लोक ७५ श्लोक राजन्संस्मृत्य संस्मृत्य संवादमिममद्भुतम् |केशवार्जुनयो: पुण्यं हृष्यामि च मुहुर्मुहु: || पद पदार्थ राजन् – हे राजा धृतराष्ट्र!केशवार्जुनयो: – केशव और अर्जुन के बीच हुएइमं पुण्यं अद्भुतं संवादं – इस पवित्र, अद्भुत संवादसंस्मृत्य संस्मृत्य – जब जब इसके बारे में सोचता हूँमुहुः मुहुः- … Read more

१८.७५ – व्यासप्रसादात् श्रुतवान्

श्रीमते शठकोपाय नमः श्रीमते रामानुजाय नमः श्रीमद्वरवरमुनये नमः अध्याय १८ << अध्याय १८ श्लोक ७४ श्लोक व्यासप्रसादात् श्रुतवान् एतद्गुह्यमहं परम् |योगं योगेश्वरात् कृष्णात् साक्षात् कथयत: स्वयम् || पद पदार्थ व्यास प्रसादात् – व्यास की कृपा से(दिव्य नेत्र और कान प्राप्त कर)एतत् – इसपरम् – परमगुह्यं योगं – योग का यह रहस्यस्वयं कथयत: योगेश्वरात् कृष्णात् – जिसे शुभ गुणों से … Read more

१८.७४ – इत्यहं वासुदेवस्य

श्रीमते शठकोपाय नमः श्रीमते रामानुजाय नमः श्रीमद्वरवरमुनये नमः अध्याय १८ << अध्याय १८ श्लोक ७३ श्लोक संजय उवाच- इत्यहं वासुदेवस्य पार्थस्य च महात्मन: |संवादमिममश्रौषमद्भुतं रोमहर्षणम् || पद पदार्थ संजय उवाच – संजय ने कहा इति – इस प्रकारवासुदेवस्य – वसुदेव के पुत्र कृष्णमहात्मन: पार्थस्य च – और एक अत्यंत बुद्धिमान अर्जुन के बीच (हुआ )इमं … Read more

१८.७३ – नष्टो मोह: स्मृतिर्लब्धा

श्रीमते शठकोपाय नमः श्रीमते रामानुजाय नमः श्रीमद्वरवरमुनये नमः अध्याय १८ << अध्याय १८ श्लोक ७२ श्लोक अर्जुन उवाच- नष्टो मोह: स्मृतिर्लब्धा त्वत् प्रसादान्मयाઽच्युत |स्थितोऽस्मि गतसन्देह: करिष्ये वचनं तव || पद पदार्थ अर्जुन उवाच – अर्जुन कहता है अच्युत – हे अच्युत!त्वत् प्रसादात् – तुम्हारी कृपा सेमोह: – (मेरा) विपरीत ज्ञाननष्ट: – नष्ट हुआस्मृति: – सच्चा … Read more

१८.७२ – कच्चिदेतच्छ्रुतं पार्थ

श्री: श्रीमते शठकोपाय नमः श्रीमते रामानुजाय नमः श्रीमद्वरवरमुनये नमः अध्याय १८ << अध्याय १८ श्लोक ७१ श्लोक कच्चिदेतच्छ्रुतं  पार्थ त्वयैकाग्रेण चेतसा |कच्चिदज्ञानसम्मोह: प्रनष्टस्ते  धनञ्जय || पद पदार्थ पार्थ – हे कुन्तीपुत्र!एतत् – यह शास्त्र (जो मेरे द्वारा समझाया गया था )त्वया – तुम सेएकाग्रेण चेतसा – एकाग्र मन सेकच्चित् श्रुतम् – सुना गया ?धनञ्जय – … Read more

१८.७१ – श्रद्धावान् अनसूयुश्च

श्री: श्रीमते शठकोपाय नमः श्रीमते रामानुजाय नमः श्रीमद्वरवरमुनये नमः अध्याय १८ << अध्याय १८ श्लोक ७० श्लोक श्रद्धावान् अनसूयुश्च श्रुणुयादपि यो नर: |सोऽपि मुक्त: शुभान् लोकान् प्राप्नुयात् पुण्य कर्मणाम् || पद पदार्थ श्रद्धावान् – सुनने की इच्छुकअनसूयु: च – ईर्ष्या से रहित होनाय: नर: – जो मनुष्यश्रुणुयात् अपि – केवल इस शास्त्र को सुनता हैस: … Read more