१६.१८ – अहंकारं बलं दर्पं
श्री: श्रीमते शठकोपाय नमः श्रीमते रामानुजाय नमः श्रीमद्वरवरमुनये नमः अध्याय १६ << अध्याय १६ श्लोक १७ श्लोक अहंकारं बलं दर्पं कामं क्रोधं च संश्रिता: |मामात्मपरदेहेषु प्रद्विषन्तोऽभ्यसूयकाः || पद पदार्थ अहंकारं – अहंकार (यह सोचना कि सब कुछ अपने क्षमता पर पूरा किया जा सकता है)बलं – (कि मेरी क्षमता सब कुछ प्राप्त करने के लिए … Read more