१७.१४ – देवद्विजगुरुप्राज्ञ

श्री: श्रीमते शठकोपाय नमः श्रीमते रामानुजाय नमः श्रीमद्वरवरमुनये नमः अध्याय १७ << अध्याय १७ श्लोक १३ श्लोक देवद्विजगुरुप्राज्ञपूजनं शौचम् आर्जवम् |ब्रह्मचर्यम् अहिंसा च शारीरं तप उच्यते || पद पदार्थ देव द्विज गुरु प्राज्ञ पूजनं – देवताओं , द्विजों(ब्राह्मणों), गुरु, विद्वानों की पूजा करनाशौचम्- ऐसे कार्य जो पवित्रता की ओर ले जाते हैं (जैसे पवित्र नदियों … Read more

१७.१३ – विधिहीनम् असृष्टान्नम्

श्री: श्रीमते शठकोपाय नमः श्रीमते रामानुजाय नमः श्रीमद्वरवरमुनये नमः अध्याय १७ << अध्याय १७ श्लोक १२ श्लोक विधिहीनम् असृष्टान्नं  मन्त्रहीनम् अदक्षिणम् |श्रद्धाविरहितं यज्ञं तामसं परिचक्षते || पद पदार्थ विधिहीनम् – (ब्राह्मणों की) अनुमति से रहितअसृष्टान्नं – अधर्म से अर्जित सामग्री से युक्तमंत्रहीनम् – उचित मंत्रों से रहितअदक्षिणम् – दक्षिणा से (ब्राह्मण आदि को) रहित श्रद्धा … Read more

१७.१२ – अभिसन्धाय तु फलम्

श्री: श्रीमते शठकोपाय नमः श्रीमते रामानुजाय नमः श्रीमद्वरवरमुनये नमः अध्याय १७ << अध्याय १७ श्लोक ११ श्लोक अभिसन्धाय तु फलं दम्भार्थं अपि चैव य: |इज्यते भरतश्रेष्ठ तं  यज्ञं विद्धि राजसम् || पद पदार्थ भरत श्रेष्ठ – हे भरत वंशजों में श्रेष्ठ!फलम् अभिसन्धाय तु – भौतिक लाभ की इच्छा सेदम्भार्थं अपि च एव – केवल दिखावे … Read more

१७.११ – अफलाकाङ्क्षिभिर् यज्ञो

श्री: श्रीमते शठकोपाय नमः श्रीमते रामानुजाय नमः श्रीमद्वरवरमुनये नमः अध्याय १७ << अध्याय १७ श्लोक १० श्लोक अफलाकाङ्क्षिभिर्यज्ञो विधिदृष्टो य इज्यते |यष्टव्यमेवेति मन: समाधाय स सात्त्विक: || पद पदार्थ अफलाकाङ्क्षिभि: – उन लोगों द्वारा जिन्हें परिणाम की कोई अपेक्षा नहीं हैविधिदृष्ट: – जैसे शास्त्र द्वारा निर्धारित हैयष्टव्यमेव इति – यह सोचकर कि यज्ञ अवश्य करना … Read more

१७.१० – यातयामं गतरसं

श्री: श्रीमते शठकोपाय नमः श्रीमते रामानुजाय नमः श्रीमद्वरवरमुनये नमः अध्याय १७ << अध्याय १७ श्लोक ९ श्लोक यातयामं गतरसं पूति पर्युषितं च यत् |उच्छिष्टमपि  चामेध्यं  भोजनं तामसप्रियम् || पद पदार्थ यात यामं – बासीगत रसं – प्राकृतिक स्वाद खो चुकापूति – बदबूदारपर्युषितं च – लंबे समय तक रखे रहने के कारण स्वाद बदल जानाउच्छिष्टम् – … Read more

१७.९ – कट्वमललवणात्युष्ण

श्री: श्रीमते शठकोपाय नमः श्रीमते रामानुजाय नमः श्रीमद्वरवरमुनये नमः अध्याय १७ << अध्याय १७ श्लोक ८ श्लोक कट्वमललवणात्युष्ण  तीक्ष्ण रूक्षविदाहिन: |आहारा  राजसस्येष्टा   दु:खशोकामयप्रदा: || पद पदार्थ कट्वमल लवण अति उष्ण तीक्ष्ण रूक्षविदाहिन: – अधिक कड़वा, खट्टा, नमकीन, अति गरम, तीखा, सूखा और जलन वालेअहारा:- खाद्य पदार्थराजसस्य इष्टा: – उन लोगों को प्रिय है जिनके … Read more

१७.८ – आयु: सत्व बलारोग्य

श्री: श्रीमते शठकोपाय नमः श्रीमते रामानुजाय नमः श्रीमद्वरवरमुनये नमः अध्याय १७ << अध्याय १७ श्लोक ७ श्लोक आयुस्सत्व  बलारोग्य सुखप्रीतिविवर्धना: |रस्या: स्निग्धा: स्थिरा  हृद्या आहारास्सात्विकप्रिया: || पद पदार्थ आयु: सत्व बलारोग्य सुखप्रीतिविवर्धना: – जीवन, ज्ञान, शक्ति, स्वास्थ्य, सुख और आनंद का पोषणरस्या: – मिठास से भरेस्निग्धा:- चिकनापन से युक्त स्थिरा: – स्थायी भलाई की ओर … Read more

१७.७ – आहारस् त्वपि सर्वस्य

श्री: श्रीमते शठकोपाय नमः श्रीमते रामानुजाय नमः श्रीमद्वरवरमुनये नमः अध्याय १७ << अध्याय १७ श्लोक ६ श्लोक आहारस्त्वपि सर्वस्य त्रिविधो भवति प्रिय: |यज्ञस्तपस्तथा  दानं तेषां  भेदमिमं श्रुणु || पद पदार्थ सर्वस्य – सभी जीवों के लिएआहार: अपि – भोजन भीत्रिविध: तु – तीन श्रेणियों (सत्व, रजस और तमस) के आधार परप्रिय: भवति – प्रिय हैतथा – … Read more

१७.६ – कर्शयन्त: शरीरस्थम् 

श्री: श्रीमते शठकोपाय नमः श्रीमते रामानुजाय नमः श्रीमद्वरवरमुनये नमः अध्याय १७ << अध्याय १७ श्लोक ५ श्लोक कर्शयन्त: शरीरस्थं भूतग्राममचेतस:  |मां चैवान्तः शरीरस्थं तान् विद्ध्यासुरनिश्चयान् || पद पदार्थ अचेतस: – अज्ञानी होने के कारणशरीरस्थं भूतग्रामम् – उनके शरीर के पाँच महान तत्वकर्शयन्त: – परेशान करने वालेअन्त: शरीरस्थं मां च एव – उस शरीर में निवास करती आत्मा जो … Read more

१७.५ – अशास्त्रविहितं घोरम्

श्री: श्रीमते शठकोपाय नमः श्रीमते रामानुजाय नमः श्रीमद्वरवरमुनये नमः अध्याय १७ << अध्याय १७ श्लोक ४ श्लोक अशास्त्रविहितं घोरं तप्यन्ते ये तपो जना: |दम्भाहङ्कारसंयुक्ता: कामरागबलान्विता: || पद पदार्थ ये जना: – वे पुरुषअशास्त्र विहितं – वह जो शास्त्र में निर्धारित नहीं हैघोरं – कठोरतप: तप्यन्ते – तपस्या और यज्ञ करते हैंदम्भ अहंकार संयुक्ता: – अभिमान और … Read more