१३.१० – मयि चानन्ययोगेन

श्री: श्रीमते शठकोपाय नमः श्रीमते रामानुजाय नमः श्रीमद्वरवरमुनये नमः अध्याय १३ << अध्याय १३ श्लोक ९ श्लोक मयि चानन्ययोगेन  भक्तिरव्यभिचारिणी |विविक्तदेशसेवित्वम्  अरतिर्जनसंसदि || पद पदार्थ मयि – मुझमें, जो सर्वेश्वर हूँअनन्य योगेन – किसी अन्य के साथ संलग्न न होने के कारणअव्यभिचारिणी – अत्यंत दृढ़ स्थितिभक्ति: च – भक्तिविविक्त देश सेवित्वम् – एकांत में रहनाजन संसदि … Read more

१३.९ – असक्तिर् अनभिष्वङ्ग:

श्री: श्रीमते शठकोपाय नमः श्रीमते रामानुजाय नमः श्रीमद्वरवरमुनये नमः अध्याय १३ << अध्याय १३ श्लोक ८ श्लोक असक्तिरनभिष्वङ्ग: पुत्रदारगृहादिषु |नित्यं च समचित्तत्वम्  इष्टानिष्टोपपत्तिषु || पद पदार्थ असक्ति: – आसक्ति न रखना (आत्मा के अलावा अन्य विषयों में)पुत्र दार गृहादिषु – पत्नी, बच्चों, घर आदि के प्रतिअनभिष्वङ्ग: – आसक्ति से मुक्त रहनाइष्ट अनिष्ट उपपत्तिषु – वांछनीय या … Read more

१३.८ – इन्द्रियार्थेषु वैराग्यम्

श्री: श्रीमते शठकोपाय नमः श्रीमते रामानुजाय नमः श्रीमद्वरवरमुनये नमः अध्याय १३ << अध्याय १३ श्लोक ७ श्लोक इन्द्रियार्थेषु वैराग्यमनहङ्कार  एव च |जन्ममृत्युजराव्याधिदु:खदोषानुदर्शनम् || पद पदार्थ इन्द्रियार्थेषु वैराग्यम् – इंद्रियों के माध्यम से अनुभव किए जाने वाले शब्दं (ध्वनि) आदि इंद्रिय विषयों के प्रति वैराग्यअनहङ्कार: एव च – शरीर को आत्मा न माननाजन्म मृत्यु जरा व्याधि … Read more

१३.७ – अमानित्वम् अदंभित्वम्

श्री: श्रीमते शठकोपाय नमः श्रीमते रामानुजाय नमः श्रीमद्वरवरमुनये नमः अध्याय १३ << अध्याय १३ श्लोक ६ श्लोक अमानित्वम् अदंभित्वम् अहिंसा क्षान्तिरार्जवम् |आचार्योपासनं शौचं स्थैर्यमात्म विनिग्रह: || पद पदार्थ अमानित्वम् – बड़ों का अनादर न करनाअदंभित्वम् – प्रसिद्धि के लिए दान में संलग्न न होनाअहिंसा – तीनों शक्तियों (मन, वाणी और कर्म) से किसी को नुकसान … Read more

१३.६ – इच्छा द्वेषः सुखं दुःखं

श्री: श्रीमते शठकोपाय नमः श्रीमते रामानुजाय नमः श्रीमद्वरवरमुनये नमः अध्याय १३ << अध्याय १३ श्लोक ५ श्लोक इच्छा द्वेषः सुखं दुःखं सङ्घातश्चेतना  धृति: |एतत्क्षेत्रं समासेन सविकारमुदाहृतम्   || पद पदार्थ इच्छा – इच्छाद्वेष:-घृणासुखं – आनंददु:खं – दुःखचेतना धृति: सङ्घात: – प्राणियों का संग्रह जो आत्मा को बनाए रखता है (खुशी/दुख का अनुभव करने और आनंद … Read more

१३.५ – महाभूतान्यहङ्कारो

श्री: श्रीमते शठकोपाय नमः श्रीमते रामानुजाय नमः श्रीमद्वरवरमुनये नमः अध्याय १३ << अध्याय १३ श्लोक ४ श्लोक महाभूतान्यहङ्कारो बुद्धिरव्यक्तमेव च ​​|इन्द्रियाणि दशैकं  च पञ्च चेन्द्रियगोचरा: || पद पदार्थ महाभूतानि – पाँच महान तत्वअहङ्कार: – भूतादि (जो उन तत्वों का कारण है)बुद्धि: – महान् (जो ऐसे अहङ्कार का कारण है)अव्यक्तम् एव च ​​- मूल प्रकृति (आदि … Read more

१३.४ – ऋषिभि: बहुधा गीतम्

श्री: श्रीमते शठकोपाय नमः श्रीमते रामानुजाय नमः श्रीमद्वरवरमुनये नमः अध्याय १३ << अध्याय १३ श्लोक ३ श्लोक ऋषिभिर्बहुधा गीतं छन्दोभिर्विविधैः पृथक् |ब्रह्मसूत्रपदैश्चैव हेतुमद्भिर्विनिश्चितै : || पद पदार्थ (क्षेत्र और क्षेत्रज्ञ के बारे में यह सच्चा ज्ञान जो मैं तुम्हे समझाने जा रहा हूँ ) ऋषिभि : – ऋषियों द्वारा (जैसे पराशर और अन्य)बहुधा – अनेक … Read more

१३.३ – तत् क्षेत्रं यच्च यादृक् च

श्री: श्रीमते शठकोपाय नमः श्रीमते रामानुजाय नमः श्रीमद्वरवरमुनये नमः अध्याय १३ << अध्याय १३ श्लोक २ श्लोक तत् क्षेत्रं यच्च यादृक्च यद्विकारि यतश्च यत् |स च यो यत्प्रभावश्च तत् समासेन मे श्रुणु || पद पदार्थ तत् क्षेत्रम् – वह शरीर जिसे पिछले दो श्लोकों में क्षेत्र के रूप में प्रकाश डाला गया हैयत् च – यह … Read more

१३.२ – क्षेत्रज्ञं चापि मां विद्धि 

श्री: श्रीमते शठकोपाय नमः श्रीमते रामानुजाय नमः श्रीमद्वरवरमुनये नमः अध्याय १३ << अध्याय १३ श्लोक १ श्लोक क्षेत्रज्ञं चापि मां विद्धि सर्वक्षेत्रेषु भारत |क्षेत्रक्षेत्रज्ञयोर्ज्ञानं यत्तज्ज्ञानं मतं मम || पद पदार्थ भारत – हे भरत वंश के वंशज!सर्व क्षेत्रेषु – सभी शरीरों में (जैसे कि दिव्य, मानव आदि)क्षेत्रज्ञं च अपि – (जैसे शरीर को क्षेत्र कहा जाता है) आत्मा भी … Read more

१३.१ – इदं शरीरं कौन्तेय

श्री: श्रीमते शठकोपाय नमः श्रीमते रामानुजाय नमः श्रीमद्वरवरमुनये नमः अध्याय १३ << अध्याय १२ श्लोक २० श्लोक श्री भगवानुवाचइदं शरीरं कौन्तेय क्षेत्रम् इत्यभिधीयते |एतद्यो  वेत्ति  तं प्राहु: क्षेत्रज्ञ इति तद्विद: || पद पदार्थ श्री भगवान उवाच – श्री भगवान बोलेकौन्तेय – हे अर्जुन!इदं शरीरं – यह शरीरक्षेत्रम् इति – क्षेत्र के रूप में (आत्मा के … Read more