१७.१४ – देवद्विजगुरुप्राज्ञ
श्री: श्रीमते शठकोपाय नमः श्रीमते रामानुजाय नमः श्रीमद्वरवरमुनये नमः अध्याय १७ << अध्याय १७ श्लोक १३ श्लोक देवद्विजगुरुप्राज्ञपूजनं शौचम् आर्जवम् |ब्रह्मचर्यम् अहिंसा च शारीरं तप उच्यते || पद पदार्थ देव द्विज गुरु प्राज्ञ पूजनं – देवताओं , द्विजों(ब्राह्मणों), गुरु, विद्वानों की पूजा करनाशौचम्- ऐसे कार्य जो पवित्रता की ओर ले जाते हैं (जैसे पवित्र नदियों … Read more