८.२१ – अव्यक्तोऽक्षर इत्युक्तस्

श्री: श्रीमते शठकोपाय नमः श्रीमते रामानुजाय नमः श्रीमद्वरवरमुनये नमः अध्याय ८ << अध्याय ८ श्लोक २० श्लोक अव्यक्तोऽक्षर इत्युक्तस्तमाहु: परमां  गतिम् |यं प्राप्य न निवर्तन्ते तद्धाम परमं मम || पद पदार्थ अव्यक्त: अक्षर: इत्युक्त –[उस मुक्तात्मा को] “अव्यक्त”, “अक्षर” के नाम से जाना जाता है।तम् – उसेपरमां गतिम् – अंतिम लक्ष्यआहु: – (कैवलयार्थी (आत्मानंद चाहने … Read more

८.२० – परस्तस्मात्तु भावोऽन्यो

श्री: श्रीमते शठकोपाय नमः श्रीमते रामानुजाय नमः श्रीमद्वरवरमुनये नमः अध्याय ८ << अध्याय ८ श्लोक १९ श्लोक परस्तस्मात्तु भावोऽन्योऽव्यक्तोऽव्यक्तात्सनातन : |य: स सर्वेषु भूतेषु नश्यत्सु न विनश्यति || पद पदार्थ तस्मात् अव्यक्तात् – अचेतन (असंवेदनशील) से , जिसे “अव्यक्तम्” के नाम से जाना जाता हैपर: – बड़ा होनाअन्य: – अलग होनाभाव: – पदार्थअव्यक्त: – समझ … Read more

८.१९ – भूतग्रामः स एवायम्

श्री: श्रीमते शठकोपाय नमः श्रीमते रामानुजाय नमः श्रीमद्वरवरमुनये नमः अध्याय ८ << अध्याय ८ श्लोक १८ श्लोक भूतग्रामः स एवायं भूत्वा भूत्वा प्रलीयते |रात्र्यागमेऽवश :पार्थ प्रभवत्यहरागमे || पद पदार्थ पार्थ – हे कुन्तीपुत्र!अवश: स एव अयं भूतग्राम: – उन जीवात्माओं का संग्रह जो कर्म से बंधे हैं(अहरागमे) भूत्वा भूत्वा – (प्रत्येक दिन की शुरुआत में … Read more

८.१८ – अव्यक्ताद् व्यक्तय: सर्वा:

श्री: श्रीमते शठकोपाय नमः श्रीमते रामानुजाय नमः श्रीमद्वरवरमुनये नमः अध्याय ८ << अध्याय ८ श्लोक १७ श्लोक अव्यक्ताद् व्यक्तय: सर्वा: प्रभवन्त्यहरागमे |रात्र्यागमे प्रलीयन्ते तत्रैवाव्यक्त सञ्ज्ञके || पद पदार्थ अहरागमे – जब (ब्रह्मा का) दिन शुरू होता हैसर्वा: व्यक्तय: – (दुनिया की) सभी वस्तुएँअव्यक्त – (ब्रह्मा के) अव्यक्त (शरीर) सेप्रभावन्ति – निर्मित हो जाते हैंरात्र्यागमे – … Read more

८.१७ – सहस्रयुगपर्यन्तम्

श्री: श्रीमते शठकोपाय नमः श्रीमते रामानुजाय नमः श्रीमद्वरवरमुनये नमः अध्याय ८ << अध्याय ८ श्लोक १६ श्लोक सहस्रयुगपर्यन्तम् अहर्यद् ब्रह्मणो विदु: |रात्रिं युगसहस्रान्तां तेऽहोरात्रविदो जना: || पद पदार्थ अहो रात्र विद: जना: – वे बुद्धिमान व्यक्ति जो रात और दिन (मनुष्यों से लेकर ब्रह्मा तक) को जानते हैंते – वेब्रह्मणा : अह: – ब्रह्मा का … Read more

८.१६ – आब्रह्मभुवनाल्लोका:

श्री: श्रीमते शठकोपाय नमः श्रीमते रामानुजाय नमः श्रीमद्वरवरमुनये नमः अध्याय ८ << अध्याय ८ श्लोक १५ श्लोक आब्रह्मभुवनाल्लोका :पुनरावर्तिनोऽर्जुन |मामुपेत्य तु कौन्तेय पुनर्जन्म न विद्यते || पद पदार्थ अर्जुन – हे अर्जुन!आब्रह्म भुवनान् लोका: – ब्रह्म लोक तक सभी लोक (जो ब्रह्माण्ड के भीतर हैं [14 परतों का एक अंडाकार आकार का ब्रह्मांड, जिसके शीर्ष … Read more

८.१५ – माम् उपेत्य पुनर्जन्म

श्री: श्रीमते शठकोपाय नमः श्रीमते रामानुजाय नमः श्रीमद्वरवरमुनये नमः अध्याय ८ << अध्याय ८ श्लोक १४ श्लोक मामुपेत्य पुनर्जन्म दु:खालयमशाश्वतम् |नाप्नुवन्ति महात्मान: संसिद्धिं परमां गता: || पद पदार्थ परमां संसिद्धिं गता: – जिन्होंने मुझे, परम लक्ष्य के रूप में प्राप्त कर लियामहात्मान: – ज्ञानी, जो महान आत्माएं हैंमां – मुझेउपेत्य – प्राप्त करने के बाददु:खालयम् … Read more

७.१५ – न मां दुष्कृतिनो मूढा:

श्री: श्रीमते शठकोपाय नमः श्रीमते रामानुजाय नमः श्रीमद्वरवरमुनये नमः अध्याय ७ << अध्याय ७ श्लोक १४ श्लोक न मां दुष्कृतिनो मूढा: प्रपध्यन्ते नराधमा : |माययाऽपह्रतज्ञाना आसुरं भावमाश्रिता : || पद पदार्थ मूढा: – मूर्खनराधमा: – मनुष्यों में सबसे निम्नमायया अपहृत ज्ञान: – जिनके पास (अतार्किक तर्क आदि) माया द्वारा नष्ट किया गया ज्ञानआसुरं भावं आश्रिता: … Read more

७.१४ – मामेव ये प्रपध्यन्ते

श्री: श्रीमते शठकोपाय नमः श्रीमते रामानुजाय नमः श्रीमद्वरवरमुनये नमः अध्याय ७ << अध्याय ७ श्लोक १३ श्लोक मामेव ये प्रपध्यन्ते मायामेतां तरन्ति ते ||  पद पदार्थ ये – वोमां एव – केवल मेरे प्रपध्यन्ते – समर्पणते – वेएतां मायां – यह भौतिक प्रकृति/क्षेत्रतरन्ति – पार करना सरल अनुवाद जो लोग केवल मेरे प्रति समर्पण करते … Read more

७.१३.५ – दैवी ह्येषा गुणमयी

श्री: श्रीमते शठकोपाय नमः श्रीमते रामानुजाय नमः श्रीमद्वरवरमुनये नमः अध्याय ७ << अध्याय ७ श्लोक १३ श्लोक दैवी ह्येषा गुणमयी मम माया दुरत्यया | पद पदार्थ मम – मेराएषा – यहगुणमयि – तीन गुणों से भरपूरमाया – भौतिक प्रकृति/क्षेत्रदैवी – क्योंकि मेरे द्वारा बनाया गया है जो देव (भगवान) हैदुरत्यया – पार करना कठिन है … Read more