२.६० – यततो ह्यपि कौन्तेय

श्री: श्रीमते शठकोपाय नमः श्रीमते रामानुजाय नमः श्रीमद्वरवरमुनये नमः अध्याय २ << अध्याय २ श्लोक ५९ श्लोक यततो ह्यपि कौन्तेय पुरुषस्य विपश्चित : ।इन्द्रियाणि प्रमाथीनि हरन्ति प्रसभं  मनः ॥ पद पदार्थ हे कौन्तेय – हे कुंती पुत्र!विपश्चित:- भेद करने की क्षमता यतत: अपि – प्रयास करते हुए  (आत्म साक्षात्कार के लिए)पुरुषस्य – व्यक्ति का प्रमाथीनी – शक्तिशाली इन्द्रियाणि … Read more

२.५९ – विषया विनिवर्तन्ते

श्री: श्रीमते शठकोपाय नमः श्रीमते रामानुजाय नमः श्रीमद्वरवरमुनये नमः अध्याय २ << अध्याय २ श्लोक ५८ श्लोक विषया विनिवर्तन्ते निराहारस्य देहिनः ।रसवर्जं रसोSप्यस्य परं दृष्ट्वा  निवर्तते ॥ पद पदार्थ निराहारस्य देहिन: –   सांसारिक सुखों से इन्द्रियों को हटाया हुआ आत्मा के लिएविषया:- सांसारिक सुखरसवर्जं – इच्छा के अलावा  (ऐसे सुखों में)विनिवर्तन्ते – समाप्त हो जाता है … Read more

२.५८ – यदा संहरते चायम्

श्री: श्रीमते शठकोपाय नमः श्रीमते रामानुजाय नमः श्रीमद्वरवरमुनये नमः अध्याय २ << अध्याय २ श्लोक ५७ श्लोक यदा संहरते चायम् कूर्मोSङ्गानीव सर्वशः ।इन्द्रियाणीन्द्रियार्थेभ्य: तस्य प्रज्ञा प्रतिष्ठिता ॥ पद पदार्थ यदा  – जबअयम – यह व्यक्तिइन्द्रियाणी – इन्द्रियों  (जो सांसारिक सुखों तक पहुँचने का प्रयास करते हैं)कूर्म: अंङ्गानी इव – कछुए के अंगों की तरह (जो अंदर … Read more

२.५७ – यः सर्वत्रानभिस्नेहस्

श्री: श्रीमते शठकोपाय नमः श्रीमते रामानुजाय नमः श्रीमद्वरवरमुनये नमः अध्याय २ << अध्याय २ श्लोक ५६ श्लोक यः सर्वत्रानभिस्नेहस्तत्तत्प्राप्य शुभाशुभम् ।नाभिनन्दति न द्वेष्टि तस्य प्रज्ञा प्रतिष्ठिता ॥ पद पदार्थ यः- जो सर्वत्र – सभी (पसंद करने योग्य विषय )अनाभिस्नेह: – बिना किसी  लगाव तत् तत् सुभाशुभम्   – वह वह  शुभ और अशुभ हालात प्राप्य – प्राप्त करने के बाद भीन … Read more

२.५६ – दुःखेष्वनुद्विग्नमनाः

श्री: श्रीमते शठकोपाय नमः श्रीमते रामानुजाय नमः श्रीमद्वरवरमुनये नमः अध्याय २ << अध्याय २ श्लोक ५५ श्लोक दुःखेष्वनुद्विग्नमनाः सुखेषु विगतस्पृह : ।वीतरागभयक्रोधः स्थितधीर्मुनिरुच्यते ॥   पद पदार्थ दुःखेषु – जब दुखद मामलों  से पीड़ित होंअनुद्विग्नमना: – उत्तेजित नहीं होता हैसुखेषु – जब हर्षित विषयों का सामना हो,विगतस्पृह: – इच्छा रहित वीत राग भय क्रोध: – अभिलाषा, भय और … Read more

२.५५ – प्रजहाति यदा कामान्

श्री: श्रीमते शठकोपाय नमः श्रीमते रामानुजाय नमः श्रीमद्वरवरमुनये नमः अध्याय २ << अध्याय २ श्लोक ५४ श्लोक श्री भगवानुवाचप्रजहाति यदा कामान्सर्वान्पार्थ मनोगतान् ।आत्मन्येवात्मना तुष्टः स्थितप्रज्ञस्तदोच्यते ॥ पद पदार्थ श्री भगवान – भगवान (श्री कृष्ण)उवाच – बोलेपार्थ – हे पार्थ ( पृथा के पुत्र)!आत्मना – मन से  (जो आत्मा पर केंद्रित है)आत्मनि एव  – आत्मा में  … Read more

२.५४ – स्थितप्रज्ञस्य का भाषा

श्री: श्रीमते शठकोपाय नमः श्रीमते रामानुजाय नमः श्रीमद्वरवरमुनये नमः अध्याय २ << अध्याय २ श्लोक ५३ श्लोक अर्जुन उवाच स्थितप्रज्ञस्य का भाषा समाधिस्थस्य केशव ।स्थितधीः किं प्रभाषेत किमासीत व्रजेत किम् ॥ पद पदार्थ अर्जुन – अर्जुनउवाच – कहाकेशव – हे केशव!समाधिस्थस्य – समाधि में होनास्थित प्रज्ञास्य – जो ज्ञान योग में स्थित हैभाषा – शब्द जो उसे पहचान … Read more

२.५३ – श्रुतिविप्रतिपन्ना ते

श्री: श्रीमते शठकोपाय नमः श्रीमते रामानुजाय नमः श्रीमद्वरवरमुनये नमः अध्याय २ << अध्याय २ श्लोक ५२ श्लोक श्रुतिविप्रतिपन्ना ते यदा स्थास्यति निश्चला ।समाधावचला बुद्धिस्तदा योगमवाप्स्यसि ॥ पद पदार्थ श्रुति विप्रतिपन्ना – मुझसे सुनने से विशेष रूप से जाननाअचला – स्थिर ते  – तुम्हाराबुद्धिः- बुद्धिसमाधौ – मन मेंयदा  – जबनिश्चला स्थास्यति – बहुत दृढ़ हो जाता हैतदा  … Read more

२.५२ – यदा ते मोहकलिलं

श्री: श्रीमते शठकोपाय नमः श्रीमते रामानुजाय नमः श्रीमद्वरवरमुनये नमः अध्याय २ << अध्याय २ श्लोक ५१ श्लोक यदा ते मोहकलिलं  बुद्धिर्व्यतितरिष्यति ।तदा गन्तासि निर्वेदं  श्रोतव्यस्य श्रुतस्य च ॥ पद पदार्थ यदा  – जबबुद्धि: – तुम्हारा बुद्धिमोह कलिलं  – विपरीत ज्ञान से भ्रमित (गलतियां)व्यतिरिष्यति  – पार कर जाता हैतदा – उस समयश्रुतस्य – उन परिणामों आदि … Read more

२.५१ – कर्मजं बुध्दियुक्ता हि

श्री: श्रीमते शठकोपाय नमः श्रीमते रामानुजाय नमः श्रीमद्वरवरमुनये नमः अध्याय २ << अध्याय २ श्लोक ५० श्लोक कर्मजं  बुध्दियुक्ता  हि फलं  त्यक्त्वा मनीषिणः ।जन्मबन्ध विनिर्मुक्ताः पदं  गच्छन्त्यनामयम्   ॥ पद पदार्थ मनीषीणः – बुद्धिमान व्यक्ति बुद्धि युक्ता: – बुद्धि के साथ (पहले समझाया गया)कर्मजं  – कर्म के कारणफलं – परिणाम ( स्वर्ग आदि)त्यक्त्वा – त्याग  देना … Read more