६.२४ – सङ्कल्पप्रभवान् कामांस्  त्यक्त्वा

श्री: श्रीमते शठकोपाय नमः श्रीमते रामानुजाय नमः श्रीमद्वरवरमुनये नमः अध्याय ६ << अध्याय ६ श्लोक २३ श्लोक सङ्कल्पप्रभवान् कामांस् त्यक्त्वा  सर्वानशेषतः ।मनसैवेन्द्रियग्रामं  विनियम्य समन्ततः ॥ पद पदार्थ सङ्कल्प प्रभवान्  – जो किसी के ममकार (स्वामित्व, स्वयं को स्वतंत्र मानना) के परिणामस्वरूप होता हैसर्वान् कामान् – सभी इच्छुक वस्तुएँअशेषतः (च) मनसा एव त्यक्त्वा – उन्हें पूरी … Read more

श्री भगवद्गीता का सारतत्त्व – अध्याय ४ (ज्ञान योग)

श्री: श्रीमते शठकोपाय नमः श्रीमते रामानुजाय नमः श्रीमद्वरवरमुनये नमः श्री भगवद्गीता – प्रस्तावना <<अध्याय ३ गीतार्थ संग्रह के आठवें श्लोक में, आळवन्दार चौथे अध्याय का सारांश समझाते हुए कहते हैं, “चौथे अध्याय में, कर्म योग (जिसमें ज्ञान योग भी शामिल है) जिसे ज्ञान योग के रूप में ही समझाया गया है, कर्म योग की प्रकृति … Read more

५.१५ – नादत्ते कस्यचित् पापं

श्री: श्रीमते शठकोपाय नमः श्रीमते रामानुजाय नमः श्रीमद्वरवरमुनये नमः अध्याय ५ << अध्याय ५ श्लोक १४ श्लोक नादत्ते कस्यचित्पापं न चैव सुकृतं  विभुः ।अज्ञानेनावृतं  ज्ञानं  तेन मुह्यन्ति जन्तवः ॥ पद पदार्थ विभु: – जीवात्मा जो कई स्थानों में व्याप्त हो सकता हैकस्यचित् पापं –  (उनके  पुत्र आदि के समान प्रिय) लोगों के पाप न एव आदत्ते … Read more

५.१४ – न कर्तृत्वं न कर्माणि

श्री: श्रीमते शठकोपाय नमः श्रीमते रामानुजाय नमः श्रीमद्वरवरमुनये नमः अध्याय ५ << अध्याय ५ श्लोक १३ श्लोक न कर्तृत्वं  न कर्माणि लोकस्य सृजति प्रभुः ।न  कर्मफलसंयोगं  स्वभावस्तु प्रवर्तते ॥ पद पदार्थ प्रभु: – जीवात्मा जो वास्तविक स्वरूप में कर्म से बंधा नहीं हैलोकस्य – लोगों के विविध संग्रह के लिए [इस दुनिया में]कर्तृत्वं न सृजति … Read more

५.१३ – सर्वकर्माणि मनसा

श्री: श्रीमते शठकोपाय नमः श्रीमते रामानुजाय नमः श्रीमद्वरवरमुनये नमः अध्याय ५ << अध्याय ५ श्लोक १२ श्लोक सर्वकर्माणि मनसा सन्यस्यास्ते सुखं  वशी ।नवद्वारे पुरे देही नैव कुर्वन् न कारयन् ॥ पद पदार्थ देही – अवतरितवशी – आत्मा जो (स्वाभाविक रूप से) अपने नियंत्रण में हैनव द्वारे – शरीर के नौ द्वार वाले शहर मेंसर्व कर्माणि … Read more

५.१२ – युक्त: कर्मफलं त्यक्त्वा

श्री: श्रीमते शठकोपाय नमः श्रीमते रामानुजाय नमः श्रीमद्वरवरमुनये नमः अध्याय ५ << अध्याय ५ श्लोक ११ श्लोक युक्त: कर्मफलं त्यक्त्वा शान्तिमाप्नोति नैष्ठिकीम् ।अयुक्तः कामकारेण फले सक्तो निबध्यते ॥ पद पदार्थ युक्तः – जो अन्य मामलों में इच्छा के बिना आत्मा पर ध्यान केंद्रित हैकर्म फलं – कर्मों का परिणाम जैसे स्वर्गलोक पहुँचना आदित्यक्त्वा – त्याग … Read more

श्री भगवद्गीता का सारतत्त्व – अध्याय २ (सांख्य योग)

श्री: श्रीमते शठकोपाय नमः श्रीमते रामानुजाय नमः श्रीमद्वरवरमुनये नमः श्री भगवद्गीता का सारतत्त्व << अध्याय १ गीतार्थ संग्रह के छठे श्लोक में, आळवन्दार दूसरे अध्याय का सारांश समझाते हुए कहते हैं, “ “शाश्वत आत्मा, वैराग्य के साथ धार्मिक कर्तव्य,  स्थितप्रज्ञ का अवस्था  (निर्णय और ज्ञान में दृढ़) की लक्ष्य , स्वयं और कर्म योग के … Read more

५.११ – कायेन मनसा बुद्ध्या

श्री: श्रीमते शठकोपाय नमः श्रीमते रामानुजाय नमः श्रीमद्वरवरमुनये नमः अध्याय ५ << अध्याय ५ श्लोक १० श्लोक कायेन मनसा बुद्ध्या केवलैरिन्द्रियैरपि ।योगिनः कर्म कुर्वन्ति सङ्गं त्यक्त्वात्मशुद्धये ॥ पद पदार्थ योगिन: – कर्म योगीसङ्गं – स्वर्ग आदि के प्रति लगावत्यक्त्वा – त्याग करकेआत्म शुद्धये – आत्मा से प्राचीन कर्मों (पुण्य / पाप ) से छुटकारा पाने और … Read more

५.१० – ब्रह्मण्याधाय कर्माणि

श्री: श्रीमते शठकोपाय नमः श्रीमते रामानुजाय नमः श्रीमद्वरवरमुनये नमः अध्याय ५ << अध्याय ५ श्लोक ८ और ९ श्लोक ब्रह्मण्याधाय कर्माणि सङ्गं  त्यक्त्वा करोति यः।लिप्यते न स पापेन पद्मपत्रमिवाम्भसा ॥ पद पदार्थ यः- जो एकब्रह्मणि – इन्द्रियों जो महान प्रकृति  का प्रभाव हैंकर्माणि – देखने जैसे कर्म (जो स्वयं करता है )आधाय – (जैसा कि … Read more

५.८ और ५.९ – नैव किञ्चित् करोमीति

श्री: श्रीमते शठकोपाय नमः श्रीमते रामानुजाय नमः श्रीमद्वरवरमुनये नमः अध्याय ५ << अध्याय ५ श्लोक ७ श्लोक नैव किञ्चित् करोमीति  युक्तो मन्येत तत्त्ववित्  ।पश्यन् श्रुण्वन् स्पृशन् जिघ्रन् अश्नन्  गच्छन् स्वपन् श्वसन् ॥ प्रलपन् विसृजन् गृह्णन्नुन्मिशन् निमिशन्नपि ।इन्द्रियाणीन्द्रियार्थेषु वर्तन्त इति धारयन् ॥ पद पदार्थ तत्त्ववित् – जो आत्मा को वास्तव में  जानता हैयुक्त: – कर्मयोगीपश्यन्-आँखों से … Read more