२.४४ – भोगैश्वर्य प्रसक्तानाम्

श्री: श्रीमते शठकोपाय नमः श्रीमते रामानुजाय नमः श्रीमद्वरवरमुनये नमः अध्याय २ << अध्याय २ श्लोक ४३ श्लोक भोगैश्वर्य प्रसक्तानां तयापहृत चेतसाम् ।व्यवसायात्मिका बुद्धि: समाधौ न विधीयते ॥ पद पदार्थ भोगैश्वर्य प्रसक्तानां – उन अज्ञानियों के लिए जो स्वर्ग आदि का आनंद लेने के काम में लगे हुए हैंतया – उन शब्दों/चर्चाओं के कारणअपहृत चेतासाम् – नष्ट बुद्धि … Read more

२.४३ – कामात्मानः स्वर्गपरा

श्री: श्रीमते शठकोपाय नमः श्रीमते रामानुजाय नमः श्रीमद्वरवरमुनये नमः अध्याय २ << अध्याय २ श्लोक ४२ श्लोक कामात्मानः स्वर्गपरा जन्म कर्म फल प्रदाम् ।क्रियाविशेश्बहुलां भोगैश्वर्यगतिं  प्रति ॥ पद पदार्थ कामात्मान: – उनका मन वासनाओं से भरा हुआ हैस्वर्गपरा: – स्वर्ग को सर्वोच्च लक्ष्य माननाभोगैश्वर्यगतिं प्रति – स्वर्ग आदि का भोग प्राप्त करनाजन्म कर्म फल प्रदाम् – … Read more

२.४२ – यां इमां पुश्पितां वाचं

श्री: श्रीमते शठकोपाय नमः श्रीमते रामानुजाय नमः श्रीमद्वरवरमुनये नमः अध्याय २ << अध्याय २ श्लोक ४१ श्लोक यामिमां पुश्पितां वाचं प्रवदन्त्यविपश्चितः ।वेद वाद रताः पार्थ नान्यदस्तीति वादिनः ॥ पद पदार्थ पार्थ – हे पार्थ!वेद वाद रता: – जो लोग वेदों में कहा गया स्वर्ग आदि परिणामों के बारे में चर्चा करने में लगे हुए हैं“अन्यत् न अस्ति” इति वादिना: … Read more

२.४१ – व्यवसायात्मिका बुद्धि:

श्री: श्रीमते शठकोपाय नमः श्रीमते रामानुजाय नमः श्रीमद्वरवरमुनये नमः अध्याय २ << अध्याय २ श्लोक ४० श्लोक व्यवसायात्मिका बुद्धिरेकेह कुरु नन्दन ।बहु शाखा हि अनन्ताश्च बुध्दयोSव्यवसायिनाम् ॥ पद पदार्थ कुरु नंदन – हे अर्जुन (कुरु वंश के वंशज)!इह – कर्म योग के इस विषय मेंव्यवसायत्मिका – स्वयं के वास्तविक(आत्म) स्वरूप में दृढ़ विश्वास के साथबुद्धिः – … Read more

२.४० – नेहाभिक्रम नाशोSस्ति

श्री: श्रीमते शठकोपाय नमः श्रीमते रामानुजाय नमः श्रीमद्वरवरमुनये नमः अध्याय २ << अध्याय २ श्लोक ३९ श्लोक नेहाभिक्रम नाशोSस्ति प्रत्यवायो न विद्यते ।स्वल्पमप्यस्य धर्मस्य त्रायते महतो भयात् ॥ पद पदार्थ इह – कर्म योग मेंअभिक्रमनाश: – शुरू किए गए प्रयासों में हानिन अस्थि –  नहीं है (भले ही शुरुआत के बाद रोक दिया गया हो)प्रत्यवाय: – दोषन … Read more

२.३९ – एषा तेSभिहिता साङ्ख्ये

श्री: श्रीमते शठकोपाय नमः श्रीमते रामानुजाय नमः श्रीमद्वरवरमुनये नमः अध्याय २ << अध्याय २ श्लोक ३८ श्लोक एषा  तेSभिहिता साङ्ख्ये  बुद्धिर् योगे त्विमां  श्रुणु ।बुद्धया युक्तो यया पार्थ  कर्म बन्धं  प्रहास्यसि ॥ पद पदार्थ पार्थ! – हे पार्थ!साङ्ख्ये – आत्मा के विषय में जो जानना हैएषा बुद्धिः- यह बुद्धिते  – तुमकोअभिहित –प्रदान किया गया हैयोगेतु – बुद्धि योग … Read more

२. ३८ – सुख दुःखे समे कृत्वा

श्री: श्रीमते शठकोपाय नमः श्रीमते रामानुजाय नमः श्रीमद्वरवरमुनये नमः अध्याय २ << अध्याय २ श्लोक ३७ श्लोक सुख दुःखे समे कृत्वा लाभालाभौ जयाजयौ ।ततो युद्धाय  युज्यस्व नैवं पापं  अवाप्स्यसि ॥ पद पदार्थ सुख दुःखे – सुख और दुःख समे  – समानकृत्वा – सोचोलाभालाभौ – वांछित वस्तुओं का लाभ और हानि (जो खुशी और शोक के कारण … Read more

२.३७ – हतो वा प्राप्स्यसि स्वर्गं

श्री: श्रीमते शठकोपाय नमः श्रीमते रामानुजाय नमः श्रीमद्वरवरमुनये नमः अध्याय २ << अध्याय २ श्लोक ३६ श्लोक हतो वा प्राप्स्यसि स्वर्गं जित्वा वा भोक्ष्यसे महीम् ।तस्माद् उत्तिष्ठ  कौन्तेय युध्दाय  कृत निश्चयः ॥ पद पदार्थ कौन्तेय – हे कुंतीपुत्र!हतो वा – यदि मारे गए ( धार्मिक युद्ध में)स्वर्गं – मुक्तिप्राप्स्यसि – तुम प्राप्त करोगे;जित्वा – यदि … Read more

१.२४ – एवं उक्तो हृषीकेशो

श्रीः श्रीमते शठकोपाय नमः श्रीमते रामानुजाय नमः श्रीमद्वरवरमुनये नमः अध्याय १ < < अध्याय १  श्लोक १.२३ श्लोक सञ्जय  उवाच –एवं उक्तो हृषीकेशो गुडाकेशेन भारत ।सेनयोरुभयोर्मध्ये स्थापयित्वा रथोत्तमम्  ॥ पद पदार्थ  सञ्जय उवाच – संजय ने कहाभारत –  हे भरत वंश में जनित धृतराष्ट्र !हृषीकेश – कृष्ण जो इंद्रियों के नियंत्रक हैंगुडाकेशेन – अर्जुन  (जिसने निद्रा पर विजय … Read more

१.२३ – योत्स्यमानान् अवेक्षेSहम्

श्रीः श्रीमते शठकोपाय नमः श्रीमते रामानुजाय नमः श्रीमद्वरवरमुनये नमः अध्याय १  < < अध्याय १  श्लोक २२ श्लोक योत्स्यमानान् अवेक्षेSहं या एतेSत्र समागताः ।धार्तराष्ट्रस्य दुर्बुध्देर्युध्दे प्रियचिकीर्षवः ॥ पद पदार्थ  दुर्बुध्दे: – दुष्टचित्तधृतराष्ट्रस्य – दुर्योधन (धृतराष्ट्र के पुत्र) के लिएयुद्धे – युद्ध मेंप्रिय चिकिर्षव:- उसे प्रसन्न करने की इच्छा से अत्र  – इस युद्ध क्षेत्र मेंये एते … Read more