६.३२ – आत्मौपम्येन सर्वत्र

श्री: श्रीमते शठकोपाय नमः श्रीमते रामानुजाय नमः श्रीमद्वरवरमुनये नमः अध्याय ६ << अध्याय ६ श्लोक ३१ श्लोक आत्मौपम्येन सर्वत्र  समं  पश्यति योऽर्जुन ।सुखं  वा यदि वा दु:खं  स योगी परमो मतः ॥ पद पदार्थ अर्जुन – हे अर्जुन!सर्वत्र –  सभी जगह मेंआत्मौपम्येन – क्योंकि  आत्मा में समानता है (जैसे कि पहले बताया गया है)सर्वत्र – … Read more

६.३१ – सर्वभूतस्थितम् यो माम् 

श्री: श्रीमते शठकोपाय नमः श्रीमते रामानुजाय नमः श्रीमद्वरवरमुनये नमः अध्याय ६ << अध्याय ६ श्लोक ३० श्लोक सर्वभूतस्थितं  यो मां भजत्येकत्वमास्थितः ।सर्वथा वर्तमानोऽपि स योगी मयि वर्तते ॥ पद पदार्थ सर्व भूत स्थितं मां – मैं जो सभी आत्माओं में उपस्थित हूँ  (पहले बताए गए योग की स्थिति में समानता को देखते हुए)एकत्वं  आत्स्थितः – … Read more

६.३० – यो माम् पश्यति सर्वत्र

श्री: श्रीमते शठकोपाय नमः श्रीमते रामानुजाय नमः श्रीमद्वरवरमुनये नमः अध्याय ६ << अध्याय ६ श्लोक २९ श्लोक यो मां पश्यति सर्वत्र सर्वं च मयि पश्यति ।तस्याहं  न प्रणश्यामि स च मे न प्रणश्यति ॥ पद पदार्थ य: – जो कोई मां  -मुझेसर्वत्र पश्यति – सभी आत्माओं में (मेरे गुणों को) देखता हैसर्वं  च – सभी आत्माओं कोमयि … Read more

६.२९ – सर्वभूतस्थम् आत्मानम्

श्री: श्रीमते शठकोपाय नमः श्रीमते रामानुजाय नमः श्रीमद्वरवरमुनये नमः अध्याय ६ << अध्याय ६ श्लोक २८ श्लोक सर्वभूतस्थमात्मानं सर्वभूतानि चात्मनि ।ईक्षते योगयुक्तात्मा सर्वत्र समदर्शनः ॥ पद पदार्थ योग युक्तात्मा – जिसका मन योग अभ्यास में लगा हैसर्वत्र – सभी आत्माओं में (आत्मा जो विषयों से संबंधित नहीं है)समदर्शन: – समान रूप की स्थिति को देखना (ज्ञान, … Read more

६.२८ – युञ्जन् एवम् सदात्मानम्

श्री: श्रीमते शठकोपाय नमः श्रीमते रामानुजाय नमः श्रीमद्वरवरमुनये नमः अध्याय ६ << अध्याय ६ श्लोक २७ श्लोक युञ्जन्नेवं  सदात्मानं योगी विगतकल्मष:।सुखेन ब्रह्मसंस्पर्शमत्यन्तं  सुखमश्नुते ॥ पद पदार्थ एवं – जैसा कि पहले उल्लेख किया गया हैआत्मानं युञ्जन् – आत्मा में लगे रहनाविगत कल्मष: – (उसके परिणामस्वरूप) सभी पापों से मुक्ति पाकरयोगी – वह जो आत्म-साक्षात्कार का … Read more

६.२७ – प्रशान्तमनसम् ह्येनम्

श्री: श्रीमते शठकोपाय नमः श्रीमते रामानुजाय नमः श्रीमद्वरवरमुनये नमः अध्याय ६ << अध्याय ६ श्लोक २६ श्लोक प्रशान्तमनसं  ह्येनं  योगिनं  सुखं  उत्तमम् ।उपैति शान्तरजसं ब्रह्मभूतमकल्मषम् ॥ पद पदार्थ प्रशान्त मनसं – मन को स्थिर रखना (जैसा पिछले श्लोक में कहा गया है, आत्मा में)अकल्मषम् – (उसके परिणामस्वरूप) पापों से मुक्त होनाशान्त रजसं – (उसके परिणामस्वरूप) … Read more

६.२६ – यतो यतो निश्चरति

श्री: श्रीमते शठकोपाय नमः श्रीमते रामानुजाय नमः श्रीमद्वरवरमुनये नमः अध्याय ६ << अध्याय ६ श्लोक २५ श्लोक यतो यतो निश्चरति मनश्चञ्चलमस्थिरम् ।ततस्ततो नियम्यैतदात्मन्येव वशं नयेत् ॥ पद पदार्थ चञ्चलं  – स्वाभाविक रूप से चंचल अस्थिरम् – दृढ़ता से संलग्न नहीं होना (आत्मा  से संबंधित विषयों)मन: – मनयत: यत: – उन पहलुओं (सांसारिक इच्छाओं) में आसक्ति के … Read more

६.२५ – शनैः शनैरुपरमेद् बुद्ध्या

श्री: श्रीमते शठकोपाय नमः श्रीमते रामानुजाय नमः श्रीमद्वरवरमुनये नमः अध्याय ६ << अध्याय ६ श्लोक २४ श्लोक शनैः शनैरुपरमेद् बुद्ध्या धृतिगृहीतया ।आत्मसंस्थं मनः कृत्वा न किञ्चिदपि चिन्तयेत् ॥ पद पदार्थ शनैः शनै:- धीरे-धीरेधृति गृहितया – दृढ़ता से स्थिरबुद्ध्या – बुद्धि द्वाराउपरमेद् – (आत्मा को छोड़कर अन्य सभी मामलों से) हट जाएगा आत्म संस्थं – आत्मा पर … Read more

६.२४ – सङ्कल्पप्रभवान् कामांस्  त्यक्त्वा

श्री: श्रीमते शठकोपाय नमः श्रीमते रामानुजाय नमः श्रीमद्वरवरमुनये नमः अध्याय ६ << अध्याय ६ श्लोक २३ श्लोक सङ्कल्पप्रभवान् कामांस् त्यक्त्वा  सर्वानशेषतः ।मनसैवेन्द्रियग्रामं  विनियम्य समन्ततः ॥ पद पदार्थ सङ्कल्प प्रभवान्  – जो किसी के ममकार (स्वामित्व, स्वयं को स्वतंत्र मानना) के परिणामस्वरूप होता हैसर्वान् कामान् – सभी इच्छुक वस्तुएँअशेषतः (च) मनसा एव त्यक्त्वा – उन्हें पूरी … Read more

श्री भगवद्गीता का सारतत्त्व – अध्याय ४ (ज्ञान योग)

श्री: श्रीमते शठकोपाय नमः श्रीमते रामानुजाय नमः श्रीमद्वरवरमुनये नमः श्री भगवद्गीता – प्रस्तावना <<अध्याय ३ गीतार्थ संग्रह के आठवें श्लोक में, आळवन्दार चौथे अध्याय का सारांश समझाते हुए कहते हैं, “चौथे अध्याय में, कर्म योग (जिसमें ज्ञान योग भी शामिल है) जिसे ज्ञान योग के रूप में ही समझाया गया है, कर्म योग की प्रकृति … Read more