१२.११ – अथैतदप्यशक्तोऽसि

श्री: श्रीमते शठकोपाय नमः श्रीमते रामानुजाय नमः श्रीमद्वरवरमुनये नमः अध्याय १२ << अध्याय १२ श्लोक १० श्लोक अथैतदप्यशक्तोऽसि कर्तुं मद्योगमाश्रित: |सर्वकर्मफलत्यागं  तत: कुरु यतात्मवान् || पद पदार्थ अथ – अबमत् योगम् आश्रित: – मेरी ओर भक्तियोग का अनुसरण करनाएतत् अपि कर्तुम् अशक्त: असि – यदि यह गतिविधि करने में असमर्थ है (जो भक्ति योग का … Read more

१२.१० – अभ्यासेऽप्यसमर्थोऽसि

श्री: श्रीमते शठकोपाय नमः श्रीमते रामानुजाय नमः श्रीमद्वरवरमुनये नमः अध्याय १२ << अध्याय १२ श्लोक ९ श्लोक अभ्यासेऽप्यसमर्थोऽसि मत्कर्मपरमो भव।मदर्थमपि कर्माणि कुर्वन् सिद्धिमवाप्स्यसि।। पद पदार्थ अभ्यासे अपि असमर्थ असि – यदि तुममें अपने मन को मुझमें लगाने की क्षमता नहीं हैमत् कर्म परम: भव – मेरे कार्यों में बड़ी निष्ठा से संलग्न रहोमदर्थं कर्माणि कुर्वन् … Read more

१२.९ – अथ चित्तं समाधातुम्

श्री: श्रीमते शठकोपाय नमः श्रीमते रामानुजाय नमः श्रीमद्वरवरमुनये नमः अध्याय १२ << अध्याय १२ श्लोक ८ श्लोक अथ चित्तं समाधातुं न शक्नोषि मयि स्थिरम्।अभ्यासयोगेन ततो मामिच्छाप्तुं धनञ्जय।। पद पदार्थ धनञ्जय – हे अर्जुन!मयि – मुझमेंअथ स्थिरं चित्तं समाधातुं न शक्नोषि – यदि तुम अपने मन को दृढ़ता से स्थापित करने में असमर्थ होतत: – तो … Read more

१२.८ – मय्येव मन आधत्स्व

श्री: श्रीमते शठकोपाय नमः श्रीमते रामानुजाय नमः श्रीमद्वरवरमुनये नमः अध्याय १२ << अध्याय १२ श्लोक ७ श्लोक मय्येव मन आधत्स्व मयि बुद्धिं निवेशय।निवसिष्यसि मय्येव अत ऊर्ध्वं न संशयः।। पद पदार्थ (इस कारण से, जिसे पहले समझाया गया था) मयि एव – केवल मुझमेंमन आधत्स्व – अपना हृदय/मन लगाओमयि – मुझमेंबुद्धिं निवेशय – (अंतिम लक्ष्य के … Read more

१२.७ – तेषामहं समुद्धर्ता

श्री: श्रीमते शठकोपाय नमः श्रीमते रामानुजाय नमः श्रीमद्वरवरमुनये नमः अध्याय १२ << अध्याय १२ श्लोक ६ श्लोक तेषामहं समुद्धर्ता मृत्युसंसारसागरात्।भवामि नचिरात्पार्थ मय्यावेशितचेतसाम्।। पद पदार्थ मयि आवेशित चेतसां तेषां – जो लोग अपना हृदय मुझमें केन्द्रित रखते हैंअहं – (मेरी प्राप्ति में बाधक होने के कारण)मृत्यु संसार सागरात् – इस भौतिक संसार से जो अज्ञान का … Read more

१२.६ – ये तु सर्वाणि कर्माणि

श्री: श्रीमते शठकोपाय नमः श्रीमते रामानुजाय नमः श्रीमद्वरवरमुनये नमः अध्याय १२ << अध्याय १२ श्लोक ५ श्लोक ये तु सर्वाणि कर्माणि मयि संन्यस्य मत्पराः।अनन्येनैव योगेन मां ध्यायन्त उपासते।। पद पदार्थ [पार्थ – हे अर्जुन !]ये तु – लेकिन जोसर्वाणि कर्माणि – सभी गतिविधियाँ (जैसे खाना, अग्नि अनुष्ठान आदि)मयि संन्यस्य – मुझे अर्पण करने के रूप … Read more

१२.५ – क्लेशोऽधिकतर: तेषाम्

श्री: श्रीमते शठकोपाय नमः श्रीमते रामानुजाय नमः श्रीमद्वरवरमुनये नमः अध्याय १२ << अध्याय १२ श्लोक ४ श्लोक क्लेशोऽधिकतरस्तेषामव्यक्तासक्तचेतसाम्।अव्यक्ता हि गतिर्दुःखं देहवद्भिरवाप्यते।। पद पदार्थ अव्यक्ता सक्त चेतसां तेषां – उन कैवल्य निष्ठाओं, जो जीवात्मा स्वरूप की प्राप्ति में लगे रहते हैंक्लेश: – कठिनाइयाँअधिकतर: – ज्ञानियों से भी अधिक होती हैअव्यक्ता गति: – आत्मा में लीन होने … Read more

१२.४ – सन्नियम्येन्द्रियग्रामम्

श्री: श्रीमते शठकोपाय नमः श्रीमते रामानुजाय नमः श्रीमद्वरवरमुनये नमः अध्याय १२ << अध्याय १२ श्लोक ३ श्लोक सन्नियम्येन्द्रियग्रामं सर्वत्र समबुद्धयः।ते प्राप्नुवन्ति मामेव सर्वभूतहिते रताः।। पद पदार्थ इन्द्रिय ग्रामं सन्नियम्य – नेत्र आदि इन्द्रियों को अपने-अपने कार्यों में लगने से रोकते हैंसर्वत्र समबुद्धयः – सम बुद्धि वाले होकर सभी शरीरों में स्थित आत्माओं को समान समझते … Read more

१२.३ – ये त्वक्षरम् अनिर्देश्यम्

श्री: श्रीमते शठकोपाय नमः श्रीमते रामानुजाय नमः श्रीमद्वरवरमुनये नमः अध्याय १२ << अध्याय १२ श्लोक २ श्लोक ये त्वक्षरमनिर्देश्यमव्यक्तं पर्युपासते।सर्वत्रगमचिन्त्यं च कूटस्थमचलं ध्रुवम्।। पद पदार्थ अनिर्देश्यं – अनिर्वचनीय है (क्योंकि वह शरीर से भिन्न है, तथा जिसे देवता, मनुष्य आदि नहीं कहा जा सकता)अव्यक्तं – अविवेचनीय है (क्योंकि वह नेत्रों आदि इन्द्रियों से नहीं देखा … Read more

१२.२ – मय्यावेश्य मनो ये मां

श्री: श्रीमते शठकोपाय नमः श्रीमते रामानुजाय नमः श्रीमद्वरवरमुनये नमः अध्याय १२ << अध्याय १२ श्लोक १ श्लोक श्री भगवानुवाच – मय्यावेश्य मनो ये मां नित्ययुक्ता उपासते।श्रद्धया परयोपेतास्ते मे युक्ततमा मताः।। पद पदार्थ श्री भगवानुवाच – भगवान ने कहामन: – उनके हृदयमयि – मुझमेंआवेश्य – रखकरपरया श्रद्धया उपासते – महान विश्वास के साथनित्य युक्ता – हमेशा … Read more