३.३६ – अथ केन प्रयुक्तोऽयं

श्री: श्रीमते शठकोपाय नमः श्रीमते रामानुजाय नमः श्रीमद्वरवरमुनये नमः अध्याय ३ << अध्याय ३ श्लोक ३५ श्लोक अर्जुन उवाचअथ केन प्रयुक्तोऽयं पापं चरति पूरुषः।अनिच्छन्नपि वार्ष्णेय बलादिव नियोजितः॥ पद पदार्थ अर्जुन उवाच – अर्जुन कहावार्ष्णेय – हे कृष्ण , वृष्णिवंशी !अयं – वह मनुष्य जो ज्ञान योग करने का प्रयत्न करता हैअनिच्छन्नपि – लौकिक सुखों में … Read more

३.३५ – श्रेयान्स्वधर्मो विगुणः

श्री: श्रीमते शठकोपाय नमः श्रीमते रामानुजाय नमः श्रीमद्वरवरमुनये नमः अध्याय ३ << अध्याय ३ श्लोक ३४ श्लोक श्रेयान्स्वधर्मो विगुणः परधर्मात् स्वनुष्ठितात्‌ ।स्वधर्मे निधनं श्रेयः परधर्मो भयावहः ॥ पद पदार्थ स्वधर्म: – ( वो मनुष्य जो अचित तत्व / शरीर से जुड़ा हो ) कर्म योग जो स्वाभाविक माध्यम हैविगुणः ( अपि ) – दोष से … Read more

३.३४ – तयोर्न वशमागच्छेत्

श्री: श्रीमते शठकोपाय नमः श्रीमते रामानुजाय नमः श्रीमद्वरवरमुनये नमः अध्याय ३ << अध्याय ३ श्लोक ३३.५ श्लोक तयोर्न वशमागच्छेत् तौ ह्यस्य परिपन्थिनौ पद पदार्थ तयो: – प्रेम और क्रोधवशं न आगच्छेत् – कोई भी वशीभूत नहीं होना चाहिएतौ – वो प्रेम और क्रोधअस्य – मुमुक्षु के लिए , जो कि ज्ञान योग का अनुयायी होपरिपन्थिनौ … Read more

३.३३.५ – इन्द्रियस्येन्द्रियस्यार्थे

श्री: श्रीमते शठकोपाय नमः श्रीमते रामानुजाय नमः श्रीमद्वरवरमुनये नमः अध्याय ३ << अध्याय ३ श्लोक ३३ श्लोक इन्द्रियस्येन्द्रियस्यार्थे रागद्वेषौ व्यवस्थितौ पद पदार्थ इन्द्रियस्य – ज्ञानेन्द्रिय ( ज्ञान के इन्द्रियों – जो ज्ञान इकट्ठा करने में लगे रहते हैं जैसे कान )इन्द्रियस्य – कर्मेन्द्रिय ( कर्म के इन्द्रियों – जो कर्म करने में लगे रहते हैं … Read more

३.३३ – सदृशं चेष्टते स्वस्याः

श्री: श्रीमते शठकोपाय नमः श्रीमते रामानुजाय नमः श्रीमद्वरवरमुनये नमः अध्याय ३ << अध्याय ३ श्लोक ३२ श्लोक सदृशं चेष्टते स्वस्याः प्रकृतेर्ज्ञानवानपि ।प्रकृतिं यान्ति भूतानि निग्रहः किं करिष्यति ॥ पद पदार्थ ज्ञानवान अपि – ज्ञानी भी ( शास्त्र से अभिगृहित सत्य प्राप्त करके भी )स्वस्याः प्रकृते सदृशं – लौकिक आनंद के प्रति अपने अनन्तकाल अनुराग के … Read more

३.३२ – ये त्वेतदभ्यसूयन्तो

श्री: श्रीमते शठकोपाय नमः श्रीमते रामानुजाय नमः श्रीमद्वरवरमुनये नमः अध्याय ३ << अध्याय ३ श्लोक ३१ श्लोक ये त्वेतदभ्यसूयन्तो नानुतिष्ठन्ति मे मतम्‌ ।सर्वज्ञानविमूढांस्तान् विद्धि नष्टान् अचेतसः ॥ पद पदार्थ ये तु – वो लोगएतत – इसमे मतं – मेरे सिद्धांतन अनुतिष्ठन्ति – अभ्यास नहीं करते हैं ( और जो इस सिद्धांत में भरोसेमंद नहीं हो … Read more

३.३१ – ये मे मतमिदं नित्यं

श्री: श्रीमते शठकोपाय नमः श्रीमते रामानुजाय नमः श्रीमद्वरवरमुनये नमः अध्याय ३ << अध्याय ३ श्लोक ३० श्लोक ये मे मतमिदं नित्यमनुतिष्ठन्ति मानवाः ।श्रद्धावन्तोऽनसूयन्तो मुच्यन्ते तेऽपि कर्मभिः ॥ पद पदार्थ ये मानवाः – वो गुण संपन्न लोगइदं – इसमे मतं – मेरे सिद्धांतनित्यं अनुतिष्ठन्ति – हमेशा अभ्यास करते हैंये श्रद्धावन्ता: – (अभ्यास न करे फिर भी) … Read more

३.३० – मयि सर्वाणि कर्माणि

श्री: श्रीमते शठकोपाय नमः श्रीमते रामानुजाय नमः श्रीमद्वरवरमुनये नमः अध्याय ३ << अध्याय ३ श्लोक २९ श्लोक मयि सर्वाणि कर्माणि सन्नयस्याध्यात्मचेतसा ।निराशीर्निर्ममो भूत्वा युध्यस्व विगतज्वरः ॥ पद पदार्थ आध्यात्म चेतसा – आत्मा के बारे में परिपूर्ण ज्ञान के साथसर्वाणि कर्माणि – सारे कर्तव्यमयि – मुझमे ( मैं जो सबका अन्तर्यामी हूँ )संन्यस्य – अच्छी तरह … Read more

३.२९ – प्रकृतेर्गुण सम्मूढ़ाः

अध्याय ३ << अध्याय ३ श्लोक २८ श्लोक प्रकृतेर्गुण सम्मूढ़ाः सज्जन्ते गुण कर्मसु ।तानकृत्स्नविदो मन्दान्कृत्स्नविन्न विचालयेत्‌ ॥ पद पदार्थ प्रकृते: – मूल प्रकृति ( जो शरीर में परिवर्तन हो चुका हो )गुण सम्मूढ़ाः – जो लोग तीन गुणों ( सत्व , रजस और तमस ) से प्रभावित हैं और आत्मा के बारे में अस्पष्ट और … Read more

३.२८ – तत्त्ववित्तु महाबाहो

अध्याय ३ << अध्याय ३ श्लोक २७ श्लोक तत्त्ववित्तु महाबाहो गुण कर्म विभागयोः ।गुणा गुणेषु वर्तन्त इति मत्वा न सज्जते ॥ पद पदार्थ महाबाहो – हे बलिष्ठ भुजाओं वाला !गुण कर्म विभागयोः तत्त्ववित्तु – जो कर्म तथा गुण के वर्णीकरण को समझेगुणा: – तीन गुण – सत्व , रजस , तमसगुणेषु – अपने कर्तव्यों मेंवर्तन्ते … Read more