३.९ – यज्ञार्थात् कर्मणोSन्यत्र
श्री: श्रीमते शठकोपाय नमः श्रीमते रामानुजाय नमः श्रीमद्वरवरमुनये नमः अध्याय ३ << अध्याय ३ श्लोक ८ श्लोक यज्ञार्थात्कर्मणोSन्यत्र लोकोSयं कर्मबन्धनः ।तदर्थं कर्म कौन्तेय मुक्तसङ्ग: समाचर ॥ पद पदार्थ यज्ञार्थ कर्मण: अन्यत्र – केवल तब जब यज्ञ के लिए किए गए कार्यों के अलावा अन्य कार्यों में संलग्न होअयं लोक:- यह संसारकर्म बंधन:- कर्म से बंधा जाता है(इस प्रकार)हे … Read more