५.२४ – योऽन्त:सुखोऽन्तरारामस्

श्री: श्रीमते शठकोपाय नमः श्रीमते रामानुजाय नमः श्रीमद्वरवरमुनये नमः अध्याय ५ << अध्याय ५ श्लोक २३ श्लोक योऽन्त: सुखोऽन्तरारामस् तथान्तर्ज्योतिरेव य: ।स योगी ब्रह्मनिर्वाणं ब्रह्मभूतोऽधिगच्छति ।। पद पदार्थ य: – वह व्यक्तिअन्त:सुख: ( एव ) – केवल आत्मानंद का आमोदय: अन्तराराम: ( एव ) – (वह व्यक्ति ) जो केवल वही आनंद का निवास स्थान … Read more

श्री भगवद्गीता का सारतत्त्व – अध्याय ४ (ज्ञान योग)

श्री: श्रीमते शठकोपाय नमः श्रीमते रामानुजाय नमः श्रीमद्वरवरमुनये नमः श्री भगवद्गीता – प्रस्तावना <<अध्याय ३ गीतार्थ संग्रह के आठवें श्लोक में, आळवन्दार चौथे अध्याय का सारांश समझाते हुए कहते हैं, “चौथे अध्याय में, कर्म योग (जिसमें ज्ञान योग भी शामिल है) जिसे ज्ञान योग के रूप में ही समझाया गया है, कर्म योग की प्रकृति … Read more

५.२३ – शक्नोतीहैव य: सोढुं

श्री: श्रीमते शठकोपाय नमः श्रीमते रामानुजाय नमः श्रीमद्वरवरमुनये नमः अध्याय ५ << अध्याय ५ श्लोक २२ श्लोक शक्नोतीहैव य: सोढुं प्राक्शरीरविमोक्षणात् |कामक्रोधोद्भवं वेगं स युक्त: स सुखी नर: || पद पदार्थ शरीर विमोक्षणात् प्राक् – शरीर को त्यागने से पहलेइह एव – इस वर्तमान समय में ही ( अर्थात साधन अभ्यास करने की इस अवस्था … Read more

५.२२ – ये हि संस्पर्शजा भोगा

श्री: श्रीमते शठकोपाय नमः श्रीमते रामानुजाय नमः श्रीमद्वरवरमुनये नमः अध्याय ५ << अध्याय ५ श्लोक २१ श्लोक ये हि संस्पर्शजा भोगा दु:ख योनय एव ते |आद्यन्तवन्त: कौन्तेय न तेषु रमते बुध: || पद पदार्थ कौन्तेय – हे कुन्तीपुत्र !ये संस्पर्शजा भोगा – उन विषयासक्त आनंद जो ज्ञानेन्द्रियों का इन्द्रिय वस्तुओं के संपर्क से होता हैते … Read more

५.२१ – बाह्यस्पर्शेष्वसक्तात्मा

श्री: श्रीमते शठकोपाय नमः श्रीमते रामानुजाय नमः श्रीमद्वरवरमुनये नमः अध्याय ५ << अध्याय ५ श्लोक २० श्लोक बाह्यस्पर्शेष्वसक्तात्मा विन्दत्यात्मनि यत्सुखम् |स ब्रह्मयोगयुक्तात्मा सुखमक्षयमश्नुते || पद पदार्थ य: – वह कर्म योगीबाह्य स्पर्शेषु – बाहरी इन्द्रिय सुखोंअसक्तात्मा – से स्वाधीनआत्मनि – आत्मा में ( जो अन्तर्निवासित है )सुखम् – आनंदविन्दति – प्राप्त करता हैस: – वहब्रह्म … Read more

५.२० – न प्रहृष्येत् प्रियं प्राप्य

श्री: श्रीमते शठकोपाय नमः श्रीमते रामानुजाय नमः श्रीमद्वरवरमुनये नमः अध्याय ५ << अध्याय ५ श्लोक १९ श्लोक न प्रहृष्येत् प्रियं प्राप्य नोद्विजेत्प्राप्य चाप्रियम् |स्थिरबुद्धिरसम्मूढो ब्रह्मविद् ब्रह्मणि स्थित: || पद पदार्थ स्थिर बुद्धि: – शाश्वत आत्मा में ध्यान केंद्रितअसम्मूढ: – इस अस्थायी शरीर को आत्मा समझ, न मोहित होकरब्रह्मविद् – ( आचार्यों के निर्देशों से ) … Read more

५.१९ – इहैव तैर्जित: सर्गो

श्री: श्रीमते शठकोपाय नमः श्रीमते रामानुजाय नमः श्रीमद्वरवरमुनये नमः अध्याय ५ << अध्याय ५ श्लोक १८ श्लोक इहैव तैर्जित: सर्गो येषां साम्ये स्थितं मन: |निर्दोषं हि समं ब्रह्म तस्माद् ब्रह्मणि ते स्थिता: || पद पदार्थ येषां मन: – वो जिनके मनसाम्ये – आत्माओं के समतुल्यता ( जैसे पिछले श्लोक में कहा गया था )स्थितं – … Read more

५.१८ – विद्या विनय सम्पन्ने

श्री: श्रीमते शठकोपाय नमः श्रीमते रामानुजाय नमः श्रीमद्वरवरमुनये नमः अध्याय ५ << अध्याय ५ श्लोक १७ श्लोक विद्या विनय सम्पन्ने ब्राह्मणे गवि हस्तिनि |शुनि चैव श्वपाके च पण्डिता: समदर्शिन: || पद पदार्थ पण्डिता: – ज्ञानीविद्या विनय सम्पन्ने ( ब्राह्मणे ) – एक ब्राह्मण में , जिसमे ज्ञान और विनम्रता हैब्राह्मणे – और उस ब्राह्मण में … Read more

५.१७ – तद्बुद्धय: तदात्मान:

श्री: श्रीमते शठकोपाय नमः श्रीमते रामानुजाय नमः श्रीमद्वरवरमुनये नमः अध्याय ५ << अध्याय ५ श्लोक १६ श्लोक तद्बुद्धयस्तदात्मानस्तन्निष्ठास्तत्परायणा: |गच्छन्त्यपुनरावृत्तिं ज्ञाननिर्धूतकल्मषा: || पद पदार्थ तद्बुद्धय: – पहले बताये गए आत्मानुभूति में दृढ़ रूप से केंद्रित होतदात्मान: – उस आत्मानुभूति में मन को पूरी तरह से संलग्न करते हुएतन्निष्ठा: – दृढ़ रूप से अनुचरण करते हुएतत्परायणा: – … Read more

५.१६ – ज्ञानेन तु तदज्ञानं

श्री: श्रीमते शठकोपाय नमः श्रीमते रामानुजाय नमः श्रीमद्वरवरमुनये नमः अध्याय ५ << अध्याय ५ श्लोक १५ श्लोक ज्ञानेन तु तदज्ञानं येषां नाशितमात्मन: |तेषामादित्यवज्ज्ञानं प्रकाशयति तत्परम् || पद पदार्थ येषां – उन जीवात्माओंआत्मन ज्ञानेन तु – स्वयं के बारे में ज्ञानतत् अज्ञानं – वो कर्म ( सद्गुण / दुर्गुण )नाशितं – विनाश होनातेषां – उनकोपरं तत् … Read more