७.२४ – अव्यक्तं व्यक्तिमापन्नम्

श्री: श्रीमते शठकोपाय नमः श्रीमते रामानुजाय नमः श्रीमद्वरवरमुनये नमः अध्याय ७ << अध्याय ७ श्लोक २३ श्लोक अव्यक्तं व्यक्तिमापन्नं मन्यन्ते मामबुद्धयः ।परं भावमजानन्तो ममाव्ययमनुत्तमम् ॥ पद पदार्थ अबुद्धय – अधिकतम जीवात्मा जो मूर्ख हैंअव्ययं – अविनाशीअनुत्तमं – सर्वोच्च, बिना कोई तुलनामम परं भावं – मेरा श्रेष्ठ स्वभावअजानन्तं – बिना जानेमां – मुझेअव्यक्तं – पहले ऐसे … Read more

७.२३ – अन्तवत्तु फलं तेषाम्

श्री: श्रीमते शठकोपाय नमः श्रीमते रामानुजाय नमः श्रीमद्वरवरमुनये नमः अध्याय ७ << अध्याय ७ श्लोक २२ श्लोक अन्तवत्तु फलं तेषां तद्भवत्यल्पमेधसाम् ।देवान्देवयजो यान्ति मद्भक्ता यान्ति मामपि ॥ पद पदार्थ अल्पमेधसां तेषां – उन कम बुद्धिमान लोगों कीतत् फलं – पूजा का फलअन्तवत् तु – (महत्वहीन) और उसका अंत होता है;( क्योंकि )देवयज: – जो अन्य … Read more

७.२२ – स तया श्रद्धया युक्त:

श्री: श्रीमते शठकोपाय नमः श्रीमते रामानुजाय नमः श्रीमद्वरवरमुनये नमः अध्याय ७ << अध्याय ७ श्लोक २१ श्लोक स तया श्रद्धया युक्तस्तस्याराधनमीहते ।लभते च ततः कामान्मयैव विहितान्हि तान् ॥ पद पदार्थ स: – उस देवतान्तर् [ अन्य देवता ] का भक्ततया श्रद्धया युक्त: – उस विश्वास के साथतस्य – उस देवता काआराधनम् ईहते – पूजा करने … Read more

७.२१ – यो यो यां यां तनुं भक्तः

श्री: श्रीमते शठकोपाय नमः श्रीमते रामानुजाय नमः श्रीमद्वरवरमुनये नमः अध्याय ७ << अध्याय ७ श्लोक २० श्लोक यो यो यां यां तनुं भक्तः श्रद्धयार्चितुमिच्छति ।तस्य तस्याचलां श्रद्धां तामेव विदधाम्यहम् ॥ पद पदार्थ य: य: भक्त: – उन देवतांतरों ( अन्य देवता ) के जो भी भक्तयां यां तनुं – जिस देवता को भी , जो … Read more

७.२० – कामै: तै: तै: हृतज्ञानाः

श्री: श्रीमते शठकोपाय नमः श्रीमते रामानुजाय नमः श्रीमद्वरवरमुनये नमः अध्याय ७ << अध्याय ७ श्लोक १९ श्लोक कामैस्तैस्तैहृतज्ञानाः प्रपद्यन्तेऽन्यदेवताः ।तं तं नियममास्थाय प्रकृत्या नियताः स्वया ॥ पद पदार्थ (इस दुनिया में कई करोड़ लोग)स्वया प्रकृत्या – अनादि-आदि प्रवृत्तिनियताः – सदैव साथ रहने के कारणतै: तै: – वो ( प्रवृत्ति )कामै: – सांसारिक वस्तुओं ( जो … Read more

७.१९ – बहूनां जन्मनामन्ते

श्री: श्रीमते शठकोपाय नमः श्रीमते रामानुजाय नमः श्रीमद्वरवरमुनये नमः अध्याय ७ << अध्याय ७ श्लोक १८ श्लोक बहूनां जन्मनामन्ते ज्ञानवान्मां प्रपद्यते।वासुदेवः सर्वमिति स महात्मा सुदुर्लभः ॥ पद पदार्थ बहूनां जन्मनामन्ते – कई पुण्य जन्मों के बादज्ञानवान् – ज्ञानी जिसका ज्ञान परिपक्व हैवासुदेवः सर्वम् इति – सोचता है कि ” वासुदेव ही मेरा परम प्राप्य (अंतिम … Read more

७.१८ – उदाराः सर्व एवैते

श्री: श्रीमते शठकोपाय नमः श्रीमते रामानुजाय नमः श्रीमद्वरवरमुनये नमः अध्याय ७ << अध्याय ७ श्लोक १७ श्लोक उदाराः सर्व एवैते ज्ञानी त्वात्मैव मे मतम् ।आस्थितः स हि युक्तात्मा मामेवानुत्तमां गतिम् ॥ पद पदार्थ एते सर्वे एव – ये सभीउदाराः – उदार हैंज्ञानी तु – मगर ज्ञानी( मे ) आत्मा एव – ( मुझे ) थामता … Read more

७.१७ – तेषां ज्ञानी नित्ययुक्त

श्री: श्रीमते शठकोपाय नमः श्रीमते रामानुजाय नमः श्रीमद्वरवरमुनये नमः अध्याय ७ << अध्याय ७ श्लोक १६ श्लोक तेषां ज्ञानी नित्ययुक्त एकभक्तिर्विशिष्यते ।प्रियो हि ज्ञानिनोऽत्यर्थम् अहं स च मम प्रियः ॥ पद पदार्थ तेषां – इन चारों मेंनित्य युक्त: – जो हमेशा मेरे साथ एकजुट रहता हैएकभक्ति: – विशेष रूप से मेरे प्रति समर्पित हैज्ञानी – … Read more

७.१६ – चतुर्विधा भजन्ते माम्

श्री: श्रीमते शठकोपाय नमः श्रीमते रामानुजाय नमः श्रीमद्वरवरमुनये नमः अध्याय ७ << अध्याय ७ श्लोक १५ श्लोक चतुर्विधा भजन्ते मां जनाः सुकृतिनोऽर्जुन ।आर्तो जिज्ञासुरर्थार्थी ज्ञानी च भरतर्षभ ॥ पद पदार्थ भरतर्षभ अर्जुन – हे अर्जुन ! जो भरत वंशजों में श्रेष्ठ है !आर्त: – जो दुःखी हो ( धन की हानि से )अर्थार्थी – जो … Read more

श्री भगवद्गीता का सारतत्व – अध्याय ५ (कर्म सन्यास योग)

श्री: श्रीमते शठकोपाय नमः श्रीमते रामानुजाय नमः श्रीमद्वरवरमुनये नमः श्री भगवद्गीता – प्रस्तावना <<अध्याय ४ गीतार्थ संग्रह के नौवे श्लोक में स्वामी आळवन्दार् , भगवद्गीता के पांचवे अध्याय की सार को दयापूर्वक समझाते हैं , ” पांचवे अध्याय में कर्म योग के उपयोगिता , लक्ष्य को शीघ्रता से प्राप्त करने का इसका पहलू , उसके … Read more