४.१२ – काङ्क्षन्त: कर्मणां सिद्धिं
श्री: श्रीमते शठकोपाय नमः श्रीमते रामानुजाय नमः श्रीमद्वरवरमुनये नमः अध्याय ४ << अध्याय ४ श्लोक ११ श्लोक काङ्क्षन्त: कर्मणां सिद्धिं यजन्त इह देवता: |क्षिप्रं हि मानुषे लोके सिद्धिर्भवति कर्मजा || पद पदार्थ इह – (सभी) इस दुनिया मेंकर्मणां – कर्मों के ( कार्य )सिद्धिं – परिणामकाङ्क्षन्त: – के इच्छुकदेवता: – सभी देवताओं को , इंद्र … Read more