४.१२ – काङ्क्षन्त: कर्मणां सिद्धिं

श्री: श्रीमते शठकोपाय नमः श्रीमते रामानुजाय नमः श्रीमद्वरवरमुनये नमः अध्याय ४ << अध्याय ४ श्लोक ११ श्लोक काङ्क्षन्त: कर्मणां सिद्धिं यजन्त इह देवता: |क्षिप्रं हि मानुषे लोके सिद्धिर्भवति कर्मजा || पद पदार्थ इह – (सभी) इस दुनिया मेंकर्मणां – कर्मों के ( कार्य )सिद्धिं – परिणामकाङ्क्षन्त: – के इच्छुकदेवता: – सभी देवताओं को , इंद्र … Read more

४.११ – ये यथा मां प्रपद्यन्ते

श्री: श्रीमते शठकोपाय नमः श्रीमते रामानुजाय नमः श्रीमद्वरवरमुनये नमः अध्याय ४ << अध्याय ४ श्लोक १० श्लोक ये यथा मां प्रपद्यन्ते तांस्तथैव भजाम्यहम् |मम वर्त्मानुवर्तन्ते मनुष्या: पार्थ सर्वश: || पद पदार्थ ये – वेमाम् – मुझेयथा – जिस प्रकार वे कामना करते हैंप्रपद्यन्ते – मेरा आश्रयण करते हैंतथा एव – ( मैं उपलब्ध होता हूँ … Read more

४.१० – वीतरागभयक्रोधा

श्री: श्रीमते शठकोपाय नमः श्रीमते रामानुजाय नमः श्रीमद्वरवरमुनये नमः अध्याय ४ << अध्याय ४ श्लोक ९ श्लोक वीतरागभयक्रोधा मन्मया मामुपाश्रिता: |बहवो ज्ञानतपसा पूता मद्भावम् आगता: || पद पदार्थ ज्ञान तपसा पूता: – अवतार रहस्य ज्ञान ( भगवान की अवतारों का सत्य जानकर ) की तपस्या से सादन की प्राप्ति के बाधाओं को हटाकेबहव: – कईमाम् … Read more

४.९ – जन्म कर्म च मे दिव्यम्

श्री: श्रीमते शठकोपाय नमः श्रीमते रामानुजाय नमः श्रीमद्वरवरमुनये नमः अध्याय ४ << अध्याय ४ श्लोक ८ श्लोक जन्म कर्म च मे दिव्यमेवं यो वेत्ति तत्त्वत: ।त्यक्त्वा देहं पुनर्जन्म नैति मामेति सोऽर्जुन ।। पद पदार्थ अर्जुन – हे अर्जुन !मे – मेरेदिव्यं – आध्यात्मिक ( दिव्य )जन्म – अवतारकर्म – क्रियाओंय: – जो भीएवं – जैसे … Read more

४.८ – परित्राणाय साधूनां

श्री: श्रीमते शठकोपाय नमः श्रीमते रामानुजाय नमः श्रीमद्वरवरमुनये नमः अध्याय ४ << अध्याय ४ श्लोक ७ श्लोक परित्राणाय साधूनां विनाशाय च दुष्कृताम् ।धर्मसंस्थापनार्थाय सम्भवामि युगे युगे ।। पद पदार्थ साधूनां परित्राणाय – साधू संतों की रक्षा करने के लिएदुष्कृतां विनाशाय – दुष्टों की उत्पीड़न और नाश करने के लिएधर्म संस्थापनार्थाय च – और धर्म की … Read more

४.७ – यदा यदा हि धर्मस्य

श्री: श्रीमते शठकोपाय नमः श्रीमते रामानुजाय नमः श्रीमद्वरवरमुनये नमः अध्याय ४ << अध्याय ४ श्लोक ६ श्लोक यदा यदा हि धर्मस्य ग्लानिर्भवति भारत ।अभ्युत्थानमधर्मस्य तदात्मानं सृजाम्यहम् ।। पद पदार्थ भारत – हे भरतवंशी !यदा यदा हि – जब भीधर्मस्य – धर्म कीग्लानि: भवति – क्षीणता होता हैअधर्मस्य – अधर्म काअभ्युत्थानं (भवति ) – उत्थान होता … Read more

४.६ – अजोऽपि सन् अव्ययात्मा

श्री: श्रीमते शठकोपाय नमः श्रीमते रामानुजाय नमः श्रीमद्वरवरमुनये नमः अध्याय ४ << अध्याय ४ श्लोक ५ श्लोक अजोऽपि सन्नव्ययात्मा भूतानामीश्वरोऽपि सन् ।प्रकृतिं स्वामधिष्ठाय सम्भवाम्यात्ममायया ।। पद पदार्थ अज: अपि सन् – जन्महीन ( कर्मानुसार जन्म न होने के कारण )अव्ययात्मा ( अपि सन् ) – अविनाशी ( कर्म से प्रभावित मृत्यु / विनाश न होने … Read more

४.५ – बहूनि मे व्यतीतानि

श्री: श्रीमते शठकोपाय नमः श्रीमते रामानुजाय नमः श्रीमद्वरवरमुनये नमः अध्याय ४ << अध्याय ४ श्लोक ४ श्लोक श्री भगवानुवाचबहूनि मे व्यतीतानि जन्मानि तव चार्जुन ।तान्यहं वेद सर्वाणि न त्वं वेत्थ परन्तप ।। पद पदार्थ श्री भगवानुवाच – श्री कृष्ण ने जवाब दियाहे अर्जुन – हे अर्जुन !तव च – तुम्हारी तरहमे – मेरे लिए भीबहूनि … Read more

४.४ – अपरं भवतो जन्म

श्री: श्रीमते शठकोपाय नमः श्रीमते रामानुजाय नमः श्रीमद्वरवरमुनये नमः अध्याय ४ << अध्याय ४ श्लोक ३ श्लोक अर्जुन उवाचअपरं भवतो जन्म परं जन्म विवस्वत:।कथमेतद्विजानीयां त्वमादौ प्रोक्तवानिति ।। पद पदार्थ अर्जुन उवाच – अर्जुन ने कहाभवत: जन्म – तुम्हारा जन्मअपरं – बाद में ( काल के अनुसार )विवस्वत: जन्म – सूर्य के जन्मपरं – पहले है … Read more

४.३ – स एवायं मया तेऽद्य

श्री: श्रीमते शठकोपाय नमः श्रीमते रामानुजाय नमः श्रीमद्वरवरमुनये नमः अध्याय ४ << अध्याय ४ श्लोक २ श्लोक स एवायं मया तेऽद्य योग: प्रोक्त: पुरातन:।भक्तोऽसि मे सखा चेति रहस्यं ह्येतदुत्तमम् ।। पद पदार्थ पुरातन: – प्राचीनस एव अयं योग: – यह कर्म योग ( जिसे गुरुजन के उत्तरधिकारी के माध्यम से सुरक्षित रखा गया था )मे … Read more