१४.२० – गुणान् एतान् अतीत्य त्रीन्

श्री: श्रीमते शठकोपाय नमः श्रीमते रामानुजाय नमः श्रीमद्वरवरमुनये नमः अध्याय १४ << अध्याय १४ श्लोक १९ श्लोक गुणान् एतान् अतीत्य त्रीन् देही देहसमुद्भवान्   |जन्ममृत्युजरादु:खै: विमुक्तोऽमृतम् अश्नुते  || पद पदार्थ देही – यह आत्मा जो शरीर के साथ हैदेह समुद्भवान् – शरीर जो प्रकृति (पदार्थ) का रूपांतर हैएतान् – येत्रीन् – तीन गुणअतीत्य – पार … Read more

१४.१९ – नान्यं गुणेभ्य: कर्तारम्

श्री: श्रीमते शठकोपाय नमः श्रीमते रामानुजाय नमः श्रीमद्वरवरमुनये नमः अध्याय १४ << अध्याय १४ श्लोक १८ श्लोक नान्यं गुणेभ्यः कर्तारं यदा द्रष्टाऽनुपश्यति |गुणेभ्यश्च परं वेत्ति मद्भावं सोऽधिगच्छति || पद पदार्थ द्रष्टा – वह जो सत्वगुण में स्थापित है और जिसे आत्म-साक्षात्कार हैगुणेभ्य: अन्यम् – अपनी आत्मा जो सत्व आदि गुणों से भिन्न हैकर्तारं न अनुपश्यति … Read more

१४.१८ – ऊर्ध्वं गच्छन्ति सत्त्वस्था:

श्री: श्रीमते शठकोपाय नमः श्रीमते रामानुजाय नमः श्रीमद्वरवरमुनये नमः अध्याय १४ << अध्याय १४ श्लोक १७ श्लोक ऊर्ध्वं गच्छन्ति सत्त्वस्था: मध्ये तिष्ठन्ति राजसा: |जघन्यगुणवृत्तिस्था: अधो गच्छन्ति तामसा: || पद पदार्थ सत्त्वस्था: – जिनके पास सत्वगुण की प्रचुरता हैउर्ध्वं गच्छन्ति – (अंततः) मोक्ष (मुक्ति) की उच्च स्थिति तक पहुँचते ;राजसा: – जिनके पास रजोगुण की प्रचुरता … Read more

१४.१७ – सत्त्वात् संजायते ज्ञानम्

श्री: श्रीमते शठकोपाय नमः श्रीमते रामानुजाय नमः श्रीमद्वरवरमुनये नमः अध्याय १४ << अध्याय १४ श्लोक १६ श्लोक सत्त्वात् संजायते ज्ञानं रजसो लोभ एव च ​​|प्रमादमोहौ तमसो भवतोऽज्ञानमेव च ​​|| पद पदार्थ सत्त्वात् – केवल (प्रचुर मात्रा में) सत्वगुण द्वाराज्ञानं – ज्ञान (आत्म-साक्षात्कार सहित)संजायते – अच्छी तरह से निर्मित होता हैरजस: – केवल (प्रचुर मात्रा में) … Read more

१४.१६ – कर्मण: सुकृतस्याहु:

श्री: श्रीमते शठकोपाय नमः श्रीमते रामानुजाय नमः श्रीमद्वरवरमुनये नमः अध्याय १४ << अध्याय १४ श्लोक १५ श्लोक कर्मण: सुकृतस्याहु: सात्त्विकं निर्मलं फलम् |रजसस्तु फलं दुःखमज्ञानं तमस: फलम् || पद पदार्थ सुकृतस्य कर्मण:- जो कर्म, फल की आसक्ति के बिना (ज्ञानी कुल में जन्म लेने वाले व्यक्ति द्वारा) किए जाते हैंसात्त्विकं फलम् – सत्व गुण का … Read more

१४.१५ – रजसि प्रलयं गत्वा

श्री: श्रीमते शठकोपाय नमः श्रीमते रामानुजाय नमः श्रीमद्वरवरमुनये नमः अध्याय १४ << अध्याय १४ श्लोक १४ श्लोक रजसि प्रलयं गत्वा कर्मसङ्गिषु जायते |तथा प्रलीनस्तमसि मूढयोनिषु जायते || पद पदार्थ रजसी (प्रवृद्धे) – जब रजोगुण बढ़ रहा होप्रलयं गत्वा – यदि आत्मा अपना शरीर त्याग देती हैकर्म संगीशु – उन लोगों के कुल में जो सांसारिक … Read more

१४.१४ – यदा सत्त्वे प्रवृद्धे तु

श्री: श्रीमते शठकोपाय नमः श्रीमते रामानुजाय नमः श्रीमद्वरवरमुनये नमः अध्याय १४ << अध्याय १४ श्लोक १३ श्लोक यदा सत्त्वे प्रवृद्धे तु प्रलयं याति देहभृत्  |तदोत्तमविदां  लोकान् अमलान्  प्रतिपद्यते || पद पदार्थ देहभृत् – शरीर में निवास करती आत्मायदा सत्त्वे प्रवृद्धे तु – जब सत्वगुण बढ़ रहा होप्रलयं याति (चेत्) – यदि वह अपना शरीर त्याग … Read more

श्री भगवद्गीता का सारतत्व – अध्याय ११ (विश्वरूप दर्शन योग)

श्री: श्रीमते शठकोपाय नमः श्रीमते रामानुजाय नमः श्रीमद्वरवरमुनये नमः श्री भगवद्गीता – प्रस्तावना << अध्याय १० गीतार्थ संग्रह के पन्द्रहवें श्लोक में, आळवन्दार ग्यारहवें अध्याय का सारांश समझाते हुए कहते हैं, “ग्यारहवें अध्याय में, यह कहा गया है कि भगवान को वास्तव में देखने के लिए दिव्य आँखें (कृष्ण द्वारा अर्जुन को) दी गई थीं। … Read more

१३.१७ – ज्योतिषाम् अपि तत् ज्योति:

श्री: श्रीमते शठकोपाय नमः श्रीमते रामानुजाय नमः श्रीमद्वरवरमुनये नमः अध्याय १३ << अध्याय १३ श्लोक १६ श्लोक ज्योतिषाम् अपि तज्ज्योति: तमस: परमुच्यते |ज्ञानं ज्ञेयं ज्ञानगम्य हृदि  सर्वस्य विष्ठितम् || पद पदार्थ तत् – वह आत्माज्योतिषाम् अपि – चमकदार वस्तुओं (जैसे दीपक, सूर्य) के लिएज्योति: – प्रकाश है (उन्हें पहचानने के लिए);तमस: -आदि पदार्थपरं – से … Read more

१३.१६ – अविभक्तं च भूतेषु

श्री: श्रीमते शठकोपाय नमः श्रीमते रामानुजाय नमः श्रीमद्वरवरमुनये नमः अध्याय १३ << अध्याय १३ श्लोक १५ श्लोक अविभक्तं च भूतेषु विभक्तमिव च स्थितम् |भूतभर्तृ च तज्ज्ञेयं  ग्रसिष्णु प्रभविष्णु च || पद पदार्थ तत् – वह आत्माभूतेषु च – (यद्यपि उपस्थित) सभी शरीरों में (जैसे देव ,मनुष्य, तिर्यक (पशु), स्थावर (पौधा)अविभक्तं – अविभाजित रहता है; (फिर … Read more