५.७ – योगयुक्तो विशुध्दात्मा

श्री: श्रीमते शठकोपाय नमः श्रीमते रामानुजाय नमः श्रीमद्वरवरमुनये नमः अध्याय ५ << अध्याय ५ श्लोक ६ श्लोक योगयुक्तो विशुध्दात्मा विजितात्मा जितेन्द्रियः।सर्वभूतात्म भूतात्मा कुर्वन्नपि न लिप्यते ॥ पद पदार्थ योग युक्त: – कर्म योग का अभ्यासी विशुद्धात्मा – (उसके परिणाम स्वरूप) शुद्ध हृदय से विजितात्मा – (उसके परिणाम स्वरूप) नियंत्रित मन से जितेन्द्रिय: – (उसके परिणाम स्वरूप) सभी इंद्रियों … Read more

५.६ – सन्यासस् तु महाबाहो

श्री: श्रीमते शठकोपाय नमः श्रीमते रामानुजाय नमः श्रीमद्वरवरमुनये नमः अध्याय ५ << अध्याय ५ श्लोक ५ श्लोक सन्यासस्तु महाबाहो दुःखमाप्तुमयोगतः ।योगयुक्तो मुनिर्ब्रह्म नचिरेणाधिगच्छति ॥ पद पदार्थ महाबाहो –हे शक्तिशाली भुजाओं वाला !सन्यास: तु  – ज्ञान योगअयोगतः – पहले कर्म योग किए बिनाआप्तुं  दुःखं  – प्राप्त करना कठिन;योग युक्त: – कर्म योग का अभ्यासीमुनि: – आत्मा … Read more

५.५ – यत् साङ्ख्यैः प्राप्यते स्थानं

श्री: श्रीमते शठकोपाय नमः श्रीमते रामानुजाय नमः श्रीमद्वरवरमुनये नमः अध्याय ५ << अध्याय ५ श्लोक ४ श्लोक यत्साङ्ख्यैः  प्राप्यते स्थानं तद्योगैरपि  गम्यते ।एकं  साङ्ख्यं  च योगं  च यः पश्यति स पश्यति ॥ पद पदार्थ यत् स्थानं – आत्मबोध का वह परिणामसाङ्ख्यैः – ज्ञान योग के अनुयायियों द्वाराप्राप्यते – प्राप्त होता हैतत्  – वही परिणामयोगै: अपि … Read more

५.४ – सान्ख्ययोगौ पृथग्बालाः

श्री: श्रीमते शठकोपाय नमः श्रीमते रामानुजाय नमः श्रीमद्वरवरमुनये नमः अध्याय ५ << अध्याय ५ श्लोक ३ श्लोक सान्ख्ययोगौ पृथग्बालाः प्रवदन्ति न पण्डिताः।एकमप्यास्थितः सम्यगुभयोर्विन्दते फलम् ॥ पद पदार्थ सांख्य योगौ – ज्ञान योग और कर्म योगपृथक – भिन्न (परिणामों में)बाला:- मूर्खन पंडिता:- पूर्ण ज्ञान से रहितप्रवदन्ति – कहते हैं उभयो:- दोनों मेंएकम् अपि – केवल एकसम्यक अस्थिता:- … Read more

५.३ – ज्ञेयः स नित्यसन्यासी

श्री: श्रीमते शठकोपाय नमः श्रीमते रामानुजाय नमः श्रीमद्वरवरमुनये नमः अध्याय ५ << अध्याय ५ श्लोक २ श्लोक ज्ञेयः स नित्यसन्यासी  यो न द्वेष्टि  न काङ्क्षति ।      निर्द्वन्द्वो हि महाबाहो सुखं बन्धात्प्रमुच्यते ॥ पद पदार्थ महाबाहो – हे शक्तिशाली भुजाओं वाला!य:- जो कर्मयोग करता हैन काङ्क्षति – (कामुक सुखों की) इच्छा नहीं करता है न द्वेष्टि – घृणा … Read more

५.२ – सन्यासः कर्मयोगश् च

श्री: श्रीमते शठकोपाय नमः श्रीमते रामानुजाय नमः श्रीमद्वरवरमुनये नमः अध्याय ५ << अध्याय ५ श्लोक  १ श्लोक श्री भगवान् उवाचसन्यासः कर्मयोगश्च निःश्रेयसकरावुभौ ।तयोस्तु कर्मसन्यासात्कर्मयोगो विशिष्यते ॥ पद पदार्थ श्री भगवान् उवाच – श्री भगवान बोले सन्यास: – ज्ञान योगकर्म योग: च – और कर्म योगउभौ – दोनोंनि: श्रेयसकरौ – स्वतंत्र रूप से आत्म-साक्षात्कार का सर्वोत्तम … Read more

५.१ – सन्यासं कर्मणां कृष्ण

श्री: श्रीमते शठकोपाय नमः श्रीमते रामानुजाय नमः श्रीमद्वरवरमुनये नमः अध्याय ५ << अध्याय ४ श्लोक ४२ श्लोक अर्जुन उवाचसन्यासं  कर्मणां कृष्ण  पुनर्योगं  च शंससि ।यच्छ्रेय एतयोरेकं  तन्मे ब्रूहि सुनिश्चितम् ॥ पद पदार्थ अर्जुन उवाच- अर्जुन ने कहा कृष्ण – हे कृष्ण!कर्मणां संन्यासं  – कर्मयोग को त्यागकर ज्ञानयोग का पालन  करनापुन:- फिर(कर्मणां) योगं  च – कर्म योगशंससि  … Read more

अध्याय ५ – कर्म सन्यास योग

श्री: श्रीमते शठकोपाय नमः श्रीमते रामानुजाय नमः श्रीमद्वरवरमुनये नमः << अध्याय ४ आळ्वारतिरुनगरी, श्रीपेरुम्बुतूर, श्रीरंगम और तिरुनारायणपुरम में भगवत रामानुज आधार – http://githa.koyil.org/index.php/5/ संगृहीत – http://githa.koyil.org प्रमेय (लक्ष्य) – http://koyil.orgप्रमाण (शास्त्र) – http://granthams.koyil.orgप्रमाता (आचार्य) – http://acharyas.koyil.orgश्रीवैष्णव शिक्षा/बालकों का पोर्टल – http://pillai.koyil.org

४.४२ – तस्मात् अज्ञानसम्भूतम्

श्री: श्रीमते शठकोपाय नमः श्रीमते रामानुजाय नमः श्रीमद्वरवरमुनये नमः अध्याय ४ << अध्याय ४ श्लोक ४१ श्लोक तस्मादज्ञानसम्भूतं  हृत्स्थं  ज्ञानासिनात्मनः ।छित्त्वैनं  संशयं  योगमातिष्ठोत्तिष्ठ  भारत ॥ पद पदार्थ भारत – हे भरत वंश के वंशज!तस्मात् – क्यों कि पहले बताए गए कर्म योग से कोई मोक्ष प्राप्त नहीं कर सकता है [ज्ञान के बिना केवल कर्म … Read more

४.४१ – योगसन्यस्तकर्माणम्

श्री: श्रीमते शठकोपाय नमः श्रीमते रामानुजाय नमः श्रीमद्वरवरमुनये नमः अध्याय ४ << अध्याय ४ श्लोक ४० श्लोक योगसन्यस्तकर्माणं  ज्ञानसञ्छिन्नसंशयम् ।  आत्मवन्तं  न कर्माणि निबध्नन्ति धनंजय ॥ पद पदार्थ धनंजय – हे अर्जुन !योग सन्यस्त कर्माणं – जिसने पहले बताए गए बुद्धि योग को सुनकर केवल  कर्म को त्याग दिया हैज्ञान सञ्छिन्न संशयं  – जो आत्म ज्ञान … Read more