१४.१९ – नान्यं गुणेभ्य: कर्तारम्
श्री: श्रीमते शठकोपाय नमः श्रीमते रामानुजाय नमः श्रीमद्वरवरमुनये नमः अध्याय १४ << अध्याय १४ श्लोक १८ श्लोक नान्यं गुणेभ्यः कर्तारं यदा द्रष्टाऽनुपश्यति |गुणेभ्यश्च परं वेत्ति मद्भावं सोऽधिगच्छति || पद पदार्थ द्रष्टा – वह जो सत्वगुण में स्थापित है और जिसे आत्म-साक्षात्कार हैगुणेभ्य: अन्यम् – अपनी आत्मा जो सत्व आदि गुणों से भिन्न हैकर्तारं न अनुपश्यति … Read more