१४.१७ – सत्त्वात् संजायते ज्ञानम्

श्री: श्रीमते शठकोपाय नमः श्रीमते रामानुजाय नमः श्रीमद्वरवरमुनये नमः अध्याय १४ << अध्याय १४ श्लोक १६ श्लोक सत्त्वात् संजायते ज्ञानं रजसो लोभ एव च ​​|प्रमादमोहौ तमसो भवतोऽज्ञानमेव च ​​|| पद पदार्थ सत्त्वात् – केवल (प्रचुर मात्रा में) सत्वगुण द्वाराज्ञानं – ज्ञान (आत्म-साक्षात्कार सहित)संजायते – अच्छी तरह से निर्मित होता हैरजस: – केवल (प्रचुर मात्रा में) … Read more

१४.१६ – कर्मण: सुकृतस्याहु:

श्री: श्रीमते शठकोपाय नमः श्रीमते रामानुजाय नमः श्रीमद्वरवरमुनये नमः अध्याय १४ << अध्याय १४ श्लोक १५ श्लोक कर्मण: सुकृतस्याहु: सात्त्विकं निर्मलं फलम् |रजसस्तु फलं दुःखमज्ञानं तमस: फलम् || पद पदार्थ सुकृतस्य कर्मण:- जो कर्म, फल की आसक्ति के बिना (ज्ञानी कुल में जन्म लेने वाले व्यक्ति द्वारा) किए जाते हैंसात्त्विकं फलम् – सत्व गुण का … Read more

१४.१५ – रजसि प्रलयं गत्वा

श्री: श्रीमते शठकोपाय नमः श्रीमते रामानुजाय नमः श्रीमद्वरवरमुनये नमः अध्याय १४ << अध्याय १४ श्लोक १४ श्लोक रजसि प्रलयं गत्वा कर्मसङ्गिषु जायते |तथा प्रलीनस्तमसि मूढयोनिषु जायते || पद पदार्थ रजसी (प्रवृद्धे) – जब रजोगुण बढ़ रहा होप्रलयं गत्वा – यदि आत्मा अपना शरीर त्याग देती हैकर्म संगीशु – उन लोगों के कुल में जो सांसारिक … Read more

१४.१४ – यदा सत्त्वे प्रवृद्धे तु

श्री: श्रीमते शठकोपाय नमः श्रीमते रामानुजाय नमः श्रीमद्वरवरमुनये नमः अध्याय १४ << अध्याय १४ श्लोक १३ श्लोक यदा सत्त्वे प्रवृद्धे तु प्रलयं याति देहभृत्  |तदोत्तमविदां  लोकान् अमलान्  प्रतिपद्यते || पद पदार्थ देहभृत् – शरीर में निवास करती आत्मायदा सत्त्वे प्रवृद्धे तु – जब सत्वगुण बढ़ रहा होप्रलयं याति (चेत्) – यदि वह अपना शरीर त्याग … Read more

१४.१३ – अप्रकाशोऽप्रवृत्तिश्च

श्री: श्रीमते शठकोपाय नमः श्रीमते रामानुजाय नमः श्रीमद्वरवरमुनये नमः अध्याय १४ << अध्याय १४ श्लोक १२ श्लोक अप्रकाशोऽप्रवृत्तिश्च प्रमादो मोह एव च।तमस्येतानि जायन्ते विवृद्धे कुरुनन्दन।। पद पदार्थ कुरुनन्दन – हे कुरुवंश के वंशज!अप्रकाश: – ज्ञान का अभावअप्रवृत्ति: च – आलस्यप्रमाद: – असावधानीमोह: एव च – और विपरीत ज्ञानएतानि – ये सबतमसि विवृद्धे – जब तमोगुण … Read more

१४.१२ – लोभः प्रवृत्तिरारम्भः

श्री: श्रीमते शठकोपाय नमः श्रीमते रामानुजाय नमः श्रीमद्वरवरमुनये नमः अध्याय १४ << अध्याय १४ श्लोक ११ श्लोक लोभः प्रवृत्तिरारम्भः कर्मणामशमः स्पृहा।रजस्येतानि जायन्ते विवृद्धे भरतर्षभ।। पद पदार्थ भरतर्षभ – हे भरत के वंशजों में सर्वोत्तम!लोभः – कृपणताप्रवृत्ति: – व्यर्थ कार्यकर्मणाम् आरम्भ: – विशेष रूप से लक्ष्य पर केन्द्रित होकर कार्य आरम्भ करनाअशमः – इन्द्रियों पर नियंत्रण … Read more

१४.११ – सर्वद्वारेषु देहेऽस्मिन्

श्री: श्रीमते शठकोपाय नमः श्रीमते रामानुजाय नमः श्रीमद्वरवरमुनये नमः अध्याय १४ << अध्याय १४ श्लोक १० श्लोक सर्वद्वारेषु देहेऽस्मिन् प्रकाश उपजायते।ज्ञानं यदा तदा विद्याद् विवृद्धं सत्त्वमित्युत।। पद पदार्थ अस्मिन् देहे – इस (भौतिक) शरीर मेंसर्व द्वारेषु – नेत्र आदि इन्द्रियों जैसे द्वारों में. जिनके द्वारा ज्ञान संचारित होता हैप्रकाश ज्ञानं – ज्ञान जो वस्तुओं के … Read more

१४.१० – रज: तम: चाभिभूय

श्री: श्रीमते शठकोपाय नमः श्रीमते रामानुजाय नमः श्रीमद्वरवरमुनये नमः अध्याय १४ << अध्याय १४ श्लोक ९ श्लोक रजस्तमश्चाभिभूय सत्त्वं भवति भारत।रजः सत्त्वं तमश्चैव तमः सत्त्वं रजस्तथा।। पद पदार्थ भारत – हे भारतवंशी! (शरीर के तीन गुणों में)रज: तम: च अभिभूय- रजोगुण और तमोगुण पर हावी होकरसत्त्वं भवति – (कभी-कभी) सत्व गुण प्रबल होता हैसत्त्वं तम: … Read more

१४.९ – सत्त्वं सुखे सञ्जयति

श्री: श्रीमते शठकोपाय नमः श्रीमते रामानुजाय नमः श्रीमद्वरवरमुनये नमः अध्याय १४ << अध्याय १४ श्लोक ८ श्लोक सत्त्वं सुखे सञ्जयति रजः कर्मणि भारत।ज्ञानमावृत्य तु तमः प्रमादे सञ्जयत्युत।। पद पदार्थ भारत – हे भरतवंशी!सत्त्वं – सत्व गुणसुखे सञ्जयति – मुख्यतः आनन्द में आसक्ति उत्पन्न करता हैरजः – रजस (राग ) की गुणवत्ताकर्मणि (सञ्जयति) – मुख्यतः कर्मों … Read more

१४.८ – तमस् त्वज्ञानजं विद्धि

श्री: श्रीमते शठकोपाय नमः श्रीमते रामानुजाय नमः श्रीमद्वरवरमुनये नमः अध्याय १४ << अध्याय १४ श्लोक ७ श्लोक तमस् त्वज्ञानजं विद्धि मोहनं सर्वदेहिनाम्।प्रमादालस्यनिद्राभिस्तन्निबध्नाति भारत।। पद पदार्थ भारत – हे भरत के वंशज!तम: तु – तमो गुण (अज्ञानता का गुण) के विषय मेंअज्ञान जं – संस्थाओं की प्रकृति को गलत समझने के कारण उत्पन्न होता हैसर्व देहिनाम् … Read more