२.५६ – दुःखेष्वनुद्विग्नमनाः

श्री: श्रीमते शठकोपाय नमः श्रीमते रामानुजाय नमः श्रीमद्वरवरमुनये नमः अध्याय २ << अध्याय २ श्लोक ५५ श्लोक दुःखेष्वनुद्विग्नमनाः सुखेषु विगतस्पृह : ।वीतरागभयक्रोधः स्थितधीर्मुनिरुच्यते ॥   पद पदार्थ दुःखेषु – जब दुखद मामलों  से पीड़ित होंअनुद्विग्नमना: – उत्तेजित नहीं होता हैसुखेषु – जब हर्षित विषयों का सामना हो,विगतस्पृह: – इच्छा रहित वीत राग भय क्रोध: – अभिलाषा, भय और … Read more

२.५५ – प्रजहाति यदा कामान्

श्री: श्रीमते शठकोपाय नमः श्रीमते रामानुजाय नमः श्रीमद्वरवरमुनये नमः अध्याय २ << अध्याय २ श्लोक ५४ श्लोक श्री भगवानुवाचप्रजहाति यदा कामान्सर्वान्पार्थ मनोगतान् ।आत्मन्येवात्मना तुष्टः स्थितप्रज्ञस्तदोच्यते ॥ पद पदार्थ श्री भगवान – भगवान (श्री कृष्ण)उवाच – बोलेपार्थ – हे पार्थ ( पृथा के पुत्र)!आत्मना – मन से  (जो आत्मा पर केंद्रित है)आत्मनि एव  – आत्मा में  … Read more

२.५४ – स्थितप्रज्ञस्य का भाषा

श्री: श्रीमते शठकोपाय नमः श्रीमते रामानुजाय नमः श्रीमद्वरवरमुनये नमः अध्याय २ << अध्याय २ श्लोक ५३ श्लोक अर्जुन उवाच स्थितप्रज्ञस्य का भाषा समाधिस्थस्य केशव ।स्थितधीः किं प्रभाषेत किमासीत व्रजेत किम् ॥ पद पदार्थ अर्जुन – अर्जुनउवाच – कहाकेशव – हे केशव!समाधिस्थस्य – समाधि में होनास्थित प्रज्ञास्य – जो ज्ञान योग में स्थित हैभाषा – शब्द जो उसे पहचान … Read more

२.५३ – श्रुतिविप्रतिपन्ना ते

श्री: श्रीमते शठकोपाय नमः श्रीमते रामानुजाय नमः श्रीमद्वरवरमुनये नमः अध्याय २ << अध्याय २ श्लोक ५२ श्लोक श्रुतिविप्रतिपन्ना ते यदा स्थास्यति निश्चला ।समाधावचला बुद्धिस्तदा योगमवाप्स्यसि ॥ पद पदार्थ श्रुति विप्रतिपन्ना – मुझसे सुनने से विशेष रूप से जाननाअचला – स्थिर ते  – तुम्हाराबुद्धिः- बुद्धिसमाधौ – मन मेंयदा  – जबनिश्चला स्थास्यति – बहुत दृढ़ हो जाता हैतदा  … Read more

२.५२ – यदा ते मोहकलिलं

श्री: श्रीमते शठकोपाय नमः श्रीमते रामानुजाय नमः श्रीमद्वरवरमुनये नमः अध्याय २ << अध्याय २ श्लोक ५१ श्लोक यदा ते मोहकलिलं  बुद्धिर्व्यतितरिष्यति ।तदा गन्तासि निर्वेदं  श्रोतव्यस्य श्रुतस्य च ॥ पद पदार्थ यदा  – जबबुद्धि: – तुम्हारा बुद्धिमोह कलिलं  – विपरीत ज्ञान से भ्रमित (गलतियां)व्यतिरिष्यति  – पार कर जाता हैतदा – उस समयश्रुतस्य – उन परिणामों आदि … Read more

२.५१ – कर्मजं बुध्दियुक्ता हि

श्री: श्रीमते शठकोपाय नमः श्रीमते रामानुजाय नमः श्रीमद्वरवरमुनये नमः अध्याय २ << अध्याय २ श्लोक ५० श्लोक कर्मजं  बुध्दियुक्ता  हि फलं  त्यक्त्वा मनीषिणः ।जन्मबन्ध विनिर्मुक्ताः पदं  गच्छन्त्यनामयम्   ॥ पद पदार्थ मनीषीणः – बुद्धिमान व्यक्ति बुद्धि युक्ता: – बुद्धि के साथ (पहले समझाया गया)कर्मजं  – कर्म के कारणफलं – परिणाम ( स्वर्ग आदि)त्यक्त्वा – त्याग  देना … Read more

२.५० – बुद्धियुक्तो जहातीह

श्री: श्रीमते शठकोपाय नमः श्रीमते रामानुजाय नमः श्रीमद्वरवरमुनये नमः अध्याय २ << अध्याय २ श्लोक ४९ श्लोक बुद्धियुक्तो जहातीह उभे सुकृतदुष्कृते ।तस्माद्योगाय युज्यस्व योगः कर्मसु कौशलम् ॥ पद पदार्थ इह – कर्म करते हुएबुद्धियुक्त: – बुद्धिमान (जो पहले समझाया गया )उभे सुकृत दुष्कृते – पुण्य और पाप दोनों कोजहाति – त्याग देता हैतस्मात्  – इस प्रकारयोगाय … Read more

२.४९ – दूरेण ह्यवरम् कर्म

श्री: श्रीमते शठकोपाय नमः श्रीमते रामानुजाय नमः श्रीमद्वरवरमुनये नमः अध्याय २ << अध्याय २ श्लोक ४८ श्लोक दूरेण ह्यवरं कर्म बुद्दि योगाद्धनञ्जय ।बुद्धौ शरणमन्विच्छ कृपणाः फलहेतवः ॥ पद पदार्थ धनञ्जय  – हे अर्जुन!बुद्धि योगात् –  बुद्धि के साथ किये गए कर्म (क्रिया) से भी कर्म – (उस बुद्धी के बिना किये गए )काम्य  (सांसारिक परिणामों के उद्देश्य से … Read more

२.४८ – योगस्थ: कुरु कर्माणि

श्री: श्रीमते शठकोपाय नमः श्रीमते रामानुजाय नमः श्रीमद्वरवरमुनये नमः अध्याय २ << अध्याय २ श्लोक ४७ श्लोक योगस्थ: कुरु कर्माणि सङ्गं त्यक्त्वा धनञ्जय  ।सिद्ध्यसिद्ध्यो: समो भूत्वा समत्वं  योग उच्यते ॥ पद पदार्थ धनञ्जय – हे अर्जुन!सङ्गं – लगाव (राज्य, रिश्तेदारों आदि के प्रति)त्यक्त्वा – छोड़करसिद्ध्यसिद्ध्यो: – प्राप्त करना और न प्राप्त करना (विजय आदि)सम: भूत्वा – … Read more

२.४७ – कर्मणि एवादिकारस् ते

श्री: श्रीमते शठकोपाय नमः श्रीमते रामानुजाय नमः श्रीमद्वरवरमुनये नमः अध्याय २ << अध्याय २ श्लोक ४६ श्लोक कर्मण्येवाधिकारस्ते मा फलेशु कदाचन ।मा कर्मफलहेतुर्भू: मा ते सङ्गोSस्त्वकर्मणि ॥ पद पदार्थ ते – तुम , जो मुमुक्षु होकर्मणि इव  – केवल  नित्य (दैनिक) नैमित्तिक  (नियत काल ) कर्मों के लिएअधिकार: –  इच्छा कर सकते हो ;फलेषु – नीच … Read more