३.२८ – तत्त्ववित्तु महाबाहो

अध्याय ३ << अध्याय ३ श्लोक २७ श्लोक तत्त्ववित्तु महाबाहो गुण कर्म विभागयोः ।गुणा गुणेषु वर्तन्त इति मत्वा न सज्जते ॥ पद पदार्थ महाबाहो – हे बलिष्ठ भुजाओं वाला !गुण कर्म विभागयोः तत्त्ववित्तु – जो कर्म तथा गुण के वर्णीकरण को समझेगुणा: – तीन गुण – सत्व , रजस , तमसगुणेषु – अपने कर्तव्यों मेंवर्तन्ते … Read more

३.२७ – प्रकृतेः क्रियमाणानि

अध्याय ३ << अध्याय ३ श्लोक २६ श्लोक प्रकृतेः क्रियमाणानि गुणैः कर्माणि सर्वशः ।अहंकार विमूढात्मा कर्ताऽहमिति मन्यते ॥ पद पदार्थ अहंकार विमूढात्मा – जिसका आत्मा अहंकार ( शरीर को आत्मा समझना ) से व्यापित होप्रकृतेः गुणैः – प्रकृति के तीन गुणों ( सत्व, रजस, तमस ) के कारणसर्वशः क्रियमाणानि – किये जाने वाले ( उन … Read more

३.२६ – न बुद्धिभेदं जनयेत्

अध्याय ३ << अध्याय ३ श्लोक २५ श्लोक न बुद्धिभेदं जनयेदज्ञानां कर्मसङि्गनाम्‌ ।जोषयेत्सर्वकर्माणि विद्वान्युक्तः समाचरन्‌ ॥ पद पदार्थ अज्ञानां – आत्मा के बारे में पूरी जानकारी न होकर्मसङि्गनां – कर्म-बद्ध मुमुक्षुओं के लिएबुद्धिभेदं – बुद्धि में परिवर्तन ( कि कर्म योग के अलावा, आत्मानुभूति प्राप्त करने का कोई और रास्ता है )न जनयेत् – उत्पन्न … Read more

३.२५ – सक्ताः कर्मण्यविद्वांसो

श्री: श्रीमते शठकोपाय नमः श्रीमते रामानुजाय नमः श्रीमद्वरवरमुनये नमः अध्याय ३ << अध्याय ३ श्लोक २४ श्लोक सक्ताः कर्मण्यविद्वांसो यथा कुर्वन्ति भारत ।कुर्याद्विद्वांस्तथासक्तश् चिकीषुर्लोकसङ्ग्रहम्‌ ॥ पद पदार्थ भारत – हे भरतवंशी !कर्मणि सक्ता: – जो निस्संदेह कर्म से जुड़े हुए होअविद्वांस – जो आत्मा के यतार्थ रूप से परिचित न होयथा कुर्वन्ति – जिस प्रकार … Read more

३.२४ – उत्सीदेयुरिमे लोका

श्री: श्रीमते शठकोपाय नमः श्रीमते रामानुजाय नमः श्रीमद्वरवरमुनये नमः अध्याय ३ << अध्याय ३ श्लोक २३ श्लोक उत्सीदेयुरिमे लोका न कुर्यां कर्म चेदहम्‌ ।सङ्करस्य च कर्ता स्यामुपहन्यामिमाः प्रजाः ॥ पद पदार्थ अहम् – मैंकर्म – कर्तव्य ( मेरे कुल संबंधित कर्म )न कुर्यां चेत् – अगर नहीं करूंगाइमे लोका: – इस जगत के निवासी ( … Read more

३.२३ – यदि ह्यहं न वर्तेयं

श्री: श्रीमते शठकोपाय नमः श्रीमते रामानुजाय नमः श्रीमद्वरवरमुनये नमः अध्याय ३ << अध्याय ३ श्लोक २२ श्लोक यदि ह्यहं न वर्तेयं जातु कर्मण्यतन्द्रितः ।मम वर्त्मानुवर्तन्ते मनुष्याः पार्थ सर्वशः ॥ पद पदार्थ पार्थ – हे अर्जुन !अहं हि – मैं , सर्वेश्वरकर्मणि – इन कर्मों में ( मेरे कुल संबंधित कर्म )जातु – हमेशाअतन्द्रितः – बिना … Read more

३.२२ – न मे पार्थास्ति कर्तव्यं

श्री: श्रीमते शठकोपाय नमः श्रीमते रामानुजाय नमः श्रीमद्वरवरमुनये नमः अध्याय ३ << अध्याय ३ श्लोक २१ श्लोक न मे पार्थास्ति कर्तव्यं त्रिषु लोकेषु किंचन ।नानवाप्तमवाप्तव्यं वर्त एव च कर्मणि ॥ पद पदार्थ हे पार्थ – हे कुंतीपुत्र !त्रिषु लोकेषु – तीन प्रकार के जाती [ देव , मनुष्य और जानवर ( पाशविक) ]मे – मेरे … Read more

३.२१ – यद् यद् आचरति श्रेष्ठस्

श्री: श्रीमते शठकोपाय नमः श्रीमते रामानुजाय नमः श्रीमद्वरवरमुनये नमः अध्याय ३ << अध्याय ३ श्लोक २० श्लोक यद्यदाचरति श्रेष्ठस्तत्तदेवेतरो जनः।स यत्प्रमाणं  कुरुते लोकस्तदनुवर्तते ॥ पद पदार्थ श्रेष्ठ: – उत्तम व्यक्ति (ज्ञान और अनुष्ठान (ज्ञान के अनुप्रयोग) में)यद् यद् – जो भी कर्म आचरति  – वह पालन  करता हैतत् तत् एव – वही कर्मइतर: जन: – सामान्य … Read more

३.२० – लोकसङ्ग्रहम् एवापि

श्री: श्रीमते शठकोपाय नमः श्रीमते रामानुजाय नमः श्रीमद्वरवरमुनये नमः अध्याय ३ << अध्याय ३ श्लोक १९.५ श्लोक लोकसङ्ग्रहमेवापि सम्पश्यन्कर्तुमर्हसि ॥ पद पदार्थ लोक संग्रहम् एव – केवल [सामान्य सांसारिक] लोगों को प्रेरित करने के लिए [उनकी मदद करने के लिए]संपश्यन्  अपि – इसे ध्यान में रखते हुएकर्तुम् अर्हसि – तुम्हारे  लिए कर्म योग में संलग्न होना … Read more

३.१९.५ – कर्मणैव हि सम्सिद्धिम्

श्री: श्रीमते शठकोपाय नमः श्रीमते रामानुजाय नमः श्रीमद्वरवरमुनये नमः अध्याय ३ << अध्याय ३ श्लोक १९ श्लोक कर्मणैव हि संसिद्धिमास्थिता जनकादयः | पद पदार्थ जनकादयः:- जनक और अन्यकर्मणा एव – केवल कर्म योग के माध्यम से (ज्ञान योग से नहीं)संसिद्धिं  – आत्म-साक्षात्कार का परिणामअस्थिता: हि  – क्या उन्होंने प्राप्त नहीं किया है?   सरल अनुवाद क्या जनक … Read more