१.२३ – योत्स्यमानान् अवेक्षेSहम्

श्रीः श्रीमते शठकोपाय नमः श्रीमते रामानुजाय नमः श्रीमद्वरवरमुनये नमः अध्याय १  < < अध्याय १  श्लोक २२ श्लोक योत्स्यमानान् अवेक्षेSहं या एतेSत्र समागताः ।धार्तराष्ट्रस्य दुर्बुध्देर्युध्दे प्रियचिकीर्षवः ॥ पद पदार्थ  दुर्बुध्दे: – दुष्टचित्तधृतराष्ट्रस्य – दुर्योधन (धृतराष्ट्र के पुत्र) के लिएयुद्धे – युद्ध मेंप्रिय चिकिर्षव:- उसे प्रसन्न करने की इच्छा से अत्र  – इस युद्ध क्षेत्र मेंये एते … Read more

१.२२ – यावद् एतान् निरीक्षेSहं

श्रीः श्रीमते शठकोपाय नमः श्रीमते रामानुजाय नमः श्रीमद्वरवरमुनये नमः अध्याय १ < < अध्याय १  श्लोक २१ श्लोक यावद् एतान् निरीक्षेSहं  योद्धुकामानवस्थितान् ।कैर्मया सह योद्धव्यमस्मिन् रणसमुद्यमे ॥ पद पदार्थ  योद्धुकामान् – युद्ध लड़ने की इच्छा से अवस्थितान् – जो  सामने खड़े हैं एतान् – ये दुर्योधन और अन्ययावद् निरिक्षे – जिन्हें मैं देख सकता हूँअस्मिन रणसमुद्यमे – इस … Read more

१.२१ – हृषीकेशं तदा वाक्यं

श्रीः श्रीमते शठकोपाय नमः श्रीमते रामानुजाय नमः श्रीमद्वरवरमुनये नमः अध्याय १  < < अध्याय १  श्लोक २० श्लोक हृषीकेशं तदा वाक्यं इदमाह महीपते ।अर्जुन उवाच –सेनयोरुभयोर्मध्ये रथं स्थापय मे’च्युत ॥ पद पदार्थ महीपते  – हे पृथ्वी के नेता!हृषीकेशं – कृष्ण से ,जो हृषीकेश (इंद्रियों के नियंत्रक) के नाम से जाने जाते हैंइदं  – इस प्रकार (इस)वाक्यं  – … Read more

१.२० – अथ व्यवस्थितान् दृष्ट्वा

श्रीः श्रीमते शठकोपाय नमः श्रीमते रामानुजाय नमः श्रीमद्वरवरमुनये नमः अध्याय १ < < अध्याय १  श्लोक १९ श्लोक अथ व्यवस्थितान् दृष्ट्वा धार्तराराष्ट्रान् कपिध्वजः ।प्रवृत्ते शस्त्र सम्पाते धनुरुध्यम्य पाण्डवः ॥ पद पदार्थ  अथ – दोनों सेनाओं की गर्जना के बादकपिध्वज:- अर्जुन, जिसके ध्वज में हनुमान हैंशस्त्र सम्पाते प्रवृत्ते सति  – जब युद्ध शुरू हुआव्यवस्थितान् धृतराष्ट्र दृष्ट्वा … Read more

१.१९ – स घोषो धार्तराष्ट्राणाम्

श्रीः श्रीमते शठकोपाय नमः श्रीमते रामानुजाय नमः श्रीमद्वरवरमुनये नमः अध्याय १ < < अध्याय १  श्लोक १८ श्लोक स घोषो धार्तराष्ट्राणां ह्रुदयानि व्यदारयत् ।नभश्च पृथिवीम् चैव तुमुलो व्यनुनादयन् ॥ पद पदार्थ  नभ: च – आकाशपृथिवीम् च एव – और पूरी पृथ्वी भी व्यानुनादयन् – जिससे गूँज उठा तुमुल: सघोषा: – शंखों की ध्वनि जो एक साथ बजेधार्तराष्ट्राणाम् … Read more

१.१८ – द्रुपदो द्रौपदेयाश्च

श्रीः श्रीमते शठकोपाय नमः श्रीमते रामानुजाय नमः श्रीमद्वरवरमुनये नमः अध्याय १  < < अध्याय १ श्लोक १७ श्लोक द्रुपदो द्रौपदेयाश्च सर्वतः पृथिवीपते ।सौभद्रश्च महाबाहुः शङ्खान् दध्मुः पृथक् पृथक् ॥ पद पदार्थ पृथिवीपते – हे पृथिवी के स्वामी [राजा ध्रुतराष्ट्र]!द्रुपदो – द्रुपद [पांचाल के राजा]द्रौपदेया: च – और द्रौपदि के पुत्रमहाबाहु:- लंबे हाथ वालेसौभद्र: – सुभद्रा के पुत्र … Read more

१.१७ – काश्यश्च

श्रीः श्रीमते शठकोपाय नमः श्रीमते रामानुजाय नमः श्रीमद्वरवरमुनये नमः अध्याय १ < < अध्याय १  श्लोक १६ श्लोक काश्यश्च परमेष्वास : शिखण्डी च महारथः ।धृष्टध्युम्नो विराटश्च सात्यकिश्चापराजितः ॥ पद पदार्थ  परमेष्वास: – महान धनुर्धरकाश्य: च – काशी के राजामहारथ: – महान सारथीशिखण्डी च – और शिखण्डीधृष्टध्युम्न: – और धृष्टध्युम्न विराट: च  – और विराट के राजाअपराजिता – … Read more

१.१६ – अनन्तविजयं

श्रीः श्रीमते शठकोपाय नमः श्रीमते रामानुजाय नमः श्रीमद्वरवरमुनये नमः अध्याय १ < < अध्याय १  श्लोक १५  श्लोक अनन्तविजयं राजा कुन्तीपुत्रो युधिष्ठिर :।नकुलः सहदेवश्च सुघोषमणिपुष्पकौ ॥ पद पदार्थ कुन्ती पुत्र: – कुन्ती का पुत्रराजा – और राजायुधिष्ठर: – धर्मपुत्रअनन्तविजयं – अनन्तविजयं [नाम का शंख बजाया]नकुल: सहदेवश्च – (माद्री के पुत्र) नकुल और सहदेवसुघोषमणिपुष्पकौ – क्रमशः सुघोषं और … Read more

१.१५ – पाञ्चजन्यं हृषीकेशो

श्रीः श्रीमते शठकोपाय नमः श्रीमते रामानुजाय नमः श्रीमद्वरवरमुनये नमः अध्याय १ < < अध्याय १  श्लोक १४  श्लोकपाञ्चजन्यं हृषीकेशो देवदत्तं धनञ्जय : ।पौण्ड्रं दध्मौ महाशङ्खं भीमकर्मा वृकोदरः ॥ पद पदार्थऋषिकेश: – कृष्ण, इंद्रियों के नियंत्रकपाञ्चजन्यं महाशङ्खं – पाञ्चजन्य नामक महान शंखदध्मौ – बजाये धनञ्जय:- अर्जुन (धन को जीतने वाला)देवदत्तं – देवदत्तं नामक महान शंख बजायाभीमकर्मा – भयानक कार्य करने … Read more

१.१४ – ततः श्वेतै:

श्रीः श्रीमते शठकोपाय नमः श्रीमते रामानुजाय नमः श्रीमद्वरवरमुनये नमः अध्याय १ < < अध्याय १ श्लोक १३ श्लोकततः श्वेतै:हयैर्युक्ते महति स्यन्दने स्थितौ ।माधवः पाण्डवश्चैव दिव्यौ शङ्खौ प्रदध्मतुः ॥  पद पदार्थ तत :- उसके बादमाधव: – कृष्ण जो श्री महालक्ष्मी के दिव्य पति हैंपाण्डव: च एव  – और पाण्डु पुत्र अर्जुन भीश्वेतै: हयै:युक्ते – सफेद घोड़ों द्वारा … Read more