१३.२८ – समं पश्यन् हि सर्वत्र
श्री: श्रीमते शठकोपाय नमः श्रीमते रामानुजाय नमः श्रीमद्वरवरमुनये नमः अध्याय १३ << अध्याय १३ श्लोक २७ श्लोक समं पश्यन् हि सर्वत्र समवस्थितमीश्वरम्।न हिनस्त्यात्मनात्मानं ततो याति परां गतिम्।। पद पदार्थ सर्वत्र – सभी शरीरों (जैसे कि देव , मनुष्य, तिर्यक (पशु) और स्थावर (पौधे)) मेंसमवस्थितम् ईश्वरम् – आत्मा, जो स्वामी, आधार और नियंता है (प्रत्येक शरीर … Read more