१६.३ – तेजः क्षमा धृतिः शौचम्

श्री: श्रीमते शठकोपाय नमः श्रीमते रामानुजाय नमः श्रीमद्वरवरमुनये नमः अध्याय १६ << अध्याय १६ श्लोक २ श्लोक तेजः क्षमा धृतिः शौचमद्रोहो नातिमानिता।भवन्ति सम्पदं दैवीमभिजातस्य भारत।। पद पदार्थ तेजः – (बुरे लोगों द्वारा) अपराजित रहनाक्षमा – (नुकसान पहुँचाने वालों के प्रति भी) सहनशीलता रखनाधृतिः – (भयंकर परिस्थितियों में भी) दृढ़ रहनाशौचं – (शास्त्र में बताए गए) … Read more

१६.२ – अहिंसा सत्यम् अक्रोध:

श्री: श्रीमते शठकोपाय नमः श्रीमते रामानुजाय नमः श्रीमद्वरवरमुनये नमः अध्याय १६ << अध्याय १६ श्लोक १ श्लोक अहिंसा सत्यमक्रोधस्त्यागः शान्तिरपैशुनम्।दया भूतेष्वलोलुप्त्वं मार्दवं ह्रीरचापलम्।। पद पदार्थ अहिंसा – किसी भी प्राणी को कष्ट न पहुँचानासत्यं – सत्य बोलना जिससे सभी प्राणियों का कल्याण होअक्रोध: – क्रोध (जिससे दूसरों को हानि पहुँचती है) न करनात्याग: – त्यागना … Read more

१६.१ – अभयं सत्त्वसंशुद्धिः

श्री: श्रीमते शठकोपाय नमः श्रीमते रामानुजाय नमः श्रीमद्वरवरमुनये नमः अध्याय १६ << अध्याय १५ श्लोक २० श्लोक श्री भगवानुवाच अभयं सत्त्वसंशुद्धिः ज्ञानयोगव्यवस्थितिः।दानं दमश्च यज्ञश्च स्वाध्यायस्तप आर्जवम्।। पद पदार्थ श्री भगवानुवाच – भगवान श्री कृष्ण ने कहाअभयं – निर्भयतासत्त्व संशुद्धिः – हृदय की पवित्रताज्ञान योग व्यवस्थितिः – आत्मा (जो पदार्थ से भिन्न है) पर ध्यान केन्द्रित … Read more

अध्याय १६ – दैवासुर सम्पत् विभागयोगः या ईश्वरीय और अधार्मिक प्रकृति की पुस्तक

श्री: श्रीमते शठकोपाय नमः श्रीमते रामानुजाय नमः श्रीमद्वरवरमुनये नमः अध्याय १५ << अध्याय १५ श्लोक २० आधार – http://githa.koyil.org/index.php/16/ संगृहीत – http://githa.koyil.org प्रमेय (लक्ष्य) – http://koyil.orgप्रमाण (शास्त्र) – http://granthams.koyil.orgप्रमाता (आचार्य) – http://acharyas.koyil.orgश्रीवैष्णव शिक्षा/बालकों का पोर्टल – http://pillai.koyil.org

१५.२० – इति गुह्यतमं शास्त्रं

श्री: श्रीमते शठकोपाय नमः श्रीमते रामानुजाय नमः श्रीमद्वरवरमुनये नमः अध्याय १५ << अध्याय १५ श्लोक १९ श्लोक इति गुह्यतमं शास्त्रमिदमुक्तं मयाऽनघ |एतद्बुद्ध्वा बुद्धिमान्स्यात्कृतकृत्यश्च भारत || पद पदार्थ अनघ – हे निष्पाप!भारत – हे भरतवंशी!इति – इस प्रकारइदं – यह पुरूषोत्तम विद्यागुह्यतमं शास्त्रं – अत्यंत गोपनीय शास्त्रमया – मेरे द्वाराउक्तं – (तुम्हें) उपदेशित की गई हैएतत् … Read more

१५.१९ – यो मामेवमसम्मूढो

श्री: श्रीमते शठकोपाय नमः श्रीमते रामानुजाय नमः श्रीमद्वरवरमुनये नमः अध्याय १५ << अध्याय १५ श्लोक १८ श्लोक यो मामेवमसम्मूढो जानाति पुरुषोत्तमम् |स सर्वविद्भजति मां सर्वभावेन भारत || पद पदार्थ भारत – हे भरतवंशी!य: – जो व्यक्तिएवं – इस प्रकारपुरुषोत्तमम् – मैं बंधी हुई आत्माओं और मुक्त आत्माओं से भी अनेक कारणों से श्रेष्ठ हूँमां – … Read more

१५.१८ – यस्मात् क्षरम् अतीतोऽहम्

श्री: श्रीमते शठकोपाय नमः श्रीमते रामानुजाय नमः श्रीमद्वरवरमुनये नमः अध्याय १५ << अध्याय १५ श्लोक १७ श्लोक यस्मात्क्षरमतीतोऽहमक्षरादपि चोत्तम: |अतोऽस्मि लोके वेदे च प्रथित: पुरुषोत्तम: || पद पदार्थ अहम् – मैंयस्मात् – चूँकिक्षरं – क्षर पुरुष (बंधे हुए जीव)अतीत: – श्रेष्ठअक्षरात् अपि – अक्षर पुरुष (मुक्त जीव) सेउत्तम: च – महान होते हुएअत: – इसलिएवेदे … Read more

१५.१७ – उत्तम: पुरुषस्त्वन्य:

श्री: श्रीमते शठकोपाय नमः श्रीमते रामानुजाय नमः श्रीमद्वरवरमुनये नमः अध्याय १५ << अध्याय १५ श्लोक १६ श्लोक उत्तम: पुरुषस्त्वन्य: परमात्मेत्युदाहृत: |यो लोकत्रयमाविश्य बिभर्त्यव्यय ईश्वर: || पद पदार्थ य: तु – वह जोलोकत्रयं – तीन प्रकार की सत्ताओं अर्थात अचित (पदार्थ), बद्ध जीवात्मा (बंधी हुई आत्माएँ) और मुक्तात्मा (मुक्त आत्माएँ)आविश्य – व्याप्तबिभर्ति – उनका समर्थन(वह) अव्यय: … Read more

१५.१६ – द्वाविमौ पुरुषौ लोके

श्री: श्रीमते शठकोपाय नमः श्रीमते रामानुजाय नमः श्रीमद्वरवरमुनये नमः अध्याय १५ << अध्याय १५ श्लोक १५ श्लोक द्वाविमौ पुरुषौ लोके क्षरश्चाक्षर एव च |क्षर: सर्वाणि भूतानि कूटस्थोऽक्षर उच्यते || पद पदार्थ लोके – शास्त्र (पवित्र ग्रंथों) मेंक्षर: च अक्षर: च द्वौ इमौ पुरुषौ एव – दो प्रकार की आत्माएँ प्रसिद्ध हैं – क्षर – बद्ध … Read more

१५.१५ – सर्वस्य चाहं हृदि सन्निविष्टो

श्री: श्रीमते शठकोपाय नमः श्रीमते रामानुजाय नमः श्रीमद्वरवरमुनये नमः अध्याय १५ << अध्याय १५ श्लोक १४ श्लोक सर्वस्य चाहं हृदि सन्निविष्टो मत्त: स्मृतिर्ज्ञानमपोहनं च |वेदैश्च सर्वैरहमेव वेद्यो वेदान्तकृद्वेदविदेव चाहम् || पद पदार्थ अहम् – मैंसर्वस्य च – समस्त प्राणियों केहृदि – हृदय मेंसन्निविष्ट: – आत्मा के रूप में प्रवेश कर, वहीं निवास करता हूँ (सभी … Read more