१३.२८ – समं पश्यन् हि सर्वत्र

श्री: श्रीमते शठकोपाय नमः श्रीमते रामानुजाय नमः श्रीमद्वरवरमुनये नमः अध्याय १३ << अध्याय १३ श्लोक २७ श्लोक समं पश्यन् हि सर्वत्र समवस्थितमीश्वरम्।न हिनस्त्यात्मनात्मानं ततो याति परां गतिम्।। पद पदार्थ सर्वत्र – सभी शरीरों (जैसे कि देव , मनुष्य, तिर्यक (पशु) और स्थावर (पौधे)) मेंसमवस्थितम् ईश्वरम् – आत्मा, जो स्वामी, आधार और नियंता है (प्रत्येक शरीर … Read more

१३.२७ – समं सर्वेषु भूतेषु

श्री: श्रीमते शठकोपाय नमः श्रीमते रामानुजाय नमः श्रीमद्वरवरमुनये नमः अध्याय १३ << अध्याय १३ श्लोक २६ श्लोक समं सर्वेषु भूतेषु तिष्ठन्तं परमेश्वरम्।विनश्यत्स्वविनश्यन्तं यः पश्यति स पश्यति।। पद पदार्थ सर्वेषु भूतेषु – समस्त प्राणियों (जैसे देव , मनुष्य , तिर्यक (जानवर), स्थावर (पौधे) कोसमं – समान रूपपरमेश्वरं तिष्ठन्तं – (शरीर, मन और इन्द्रियों का) स्वामीविनश्यत्सु – … Read more

१३.२६ – यावत् सञ्जायते किञ्चित्

श्री: श्रीमते शठकोपाय नमः श्रीमते रामानुजाय नमः श्रीमद्वरवरमुनये नमः अध्याय १३ << अध्याय १३ श्लोक २५ श्लोक यावत्सञ्जायते किञ्चित्सत्त्वं स्थावरजङ्गमम्।क्षेत्रक्षेत्रज्ञसंयोगात्तद्विद्धि भरतर्षभ।। पद पदार्थ भरतर्षभ – हे भरतवंशी!किञ्चित् स्थावर जङ्गमम् – स्थावर (जैसे कि पौधा) या जंगम (जैसे कि पशु) रूप मेंयावत् सत्त्वं सञ्जायते – जितने भी प्राणी जन्म लेते हैंतत् – वे सभी प्राणीक्षेत्र क्षेत्रज्ञ … Read more

१३.२५ – अन्ये त्वेवम् अजानन्तः

श्री: श्रीमते शठकोपाय नमः श्रीमते रामानुजाय नमः श्रीमद्वरवरमुनये नमः अध्याय १३ << अध्याय १३ श्लोक २४ श्लोक अन्ये त्वेवम् अजानन्तः श्रुत्वाऽन्येभ्य उपासते।तेऽपि चातितरन्त्येव मृत्युं श्रुतिपरायणाः।। पद पदार्थ एवम् अजानन्तः – जो आत्मा को देखने के लिए पहले बताए गए तरीकों को नहीं जानते हैंअन्ये तु – कुछ अन्य लोगअन्येभ्य: – ज्ञानियों (बुद्धिमानों) सेश्रुत्वा – कर्म … Read more

१३.२४ – ध्यानेनात्मनि पश्यन्ति

श्री: श्रीमते शठकोपाय नमः श्रीमते रामानुजाय नमः श्रीमद्वरवरमुनये नमः अध्याय १३ << अध्याय १३ श्लोक २३ श्लोक ध्यानेनात्मनि पश्यन्ति केचिदात्मानमात्मना।अन्ये साङ्ख्येन योगेन कर्मयोगेन चापरे।। पद पदार्थ केचित् – कुछ लोग (जो योग में विशेषज्ञ हैं)आत्मनि – शरीर में स्थितआत्मानां – आत्मा कोआत्मना – अपने मन सेध्यानेन – [ध्यान] योग के माध्यम सेपश्यन्ति – देख रहे … Read more

१३.२३ – य एनं वेत्ति पुरुषं

श्री: श्रीमते शठकोपाय नमः श्रीमते रामानुजाय नमः श्रीमद्वरवरमुनये नमः अध्याय १३ << अध्याय १३ श्लोक २२ श्लोक य एनं वेत्ति पुरुषं प्रकृतिं च गुणैः सह।सर्वथा वर्तमानोऽपि न स भूयोऽभिजायते।। पद पदार्थ एनं पुरुषं – इस जीवात्मा जिसे पहले समझाया गया थाप्रकृतिं च – तथा प्रकृतिगुणैः सह – सत्व, रजस ,तमस आदि गुणों वालीय वेत्ति – … Read more

१३.२२ – उपद्रष्टाऽनुमन्ता च

श्री: श्रीमते शठकोपाय नमः श्रीमते रामानुजाय नमः श्रीमद्वरवरमुनये नमः अध्याय १३ << अध्याय १३ श्लोक २१ श्लोक उपद्रष्टाऽनुमन्ता च भर्ता भोक्ता महेश्वरः।परमात्मेति चाप्युक्तो देहेऽस्मिन् पुरुषः परः।। पद पदार्थ अस्मिन् देहे – इस शरीर में (वर्तमान) हैपरः पुरुषः – यह आत्मा (जिसमें अनंत ज्ञान और शक्ति है)उपद्रष्टा – (शरीर को देखकर) कार्य करने वालीअनुमन्ता – (शरीर … Read more

१३.२१ – कारणं गुणसङ्गोऽस्य

श्री: श्रीमते शठकोपाय नमः श्रीमते रामानुजाय नमः श्रीमद्वरवरमुनये नमः अध्याय १३ << अध्याय १३ श्लोक २०.५ श्लोक कारणं गुणसङ्गोऽस्य सदसद्योनिजन्मसु।। पद पदार्थ अस्य – इस पुरुष (आत्मा) के लिए सत् असत् योनि जन्मसु – उच्च योनियों (जैसे देव) और निम्न योनियों (जैसे पशु, पौधे) में जन्म लेने काकारणं – कारणगुण सङ्ग: – सुख और दुःख … Read more

१३.२०.५ – पुरुषः प्रकृतिस्थो हि

श्री: श्रीमते शठकोपाय नमः श्रीमते रामानुजाय नमः श्रीमद्वरवरमुनये नमः अध्याय १३ << अध्याय १३ श्लोक २० श्लोक पुरुषः प्रकृतिस्थो हि भुङ्क्ते प्रकृतिजान् गुणान् । पद पदार्थ प्रकृतिस्थ: – पदार्थ से संबद्ध होने के कारणपुरुषः – जीवात्माप्रकृतिजान् – ऐसे संबंध के कारण उत्पन्नगुणान् – गुणों (सत्व, रजस् और तमस्) के माध्यम से उत्पन्न होने वाले सुख/दुःखभुङ्क्ते … Read more

१३.२० – कार्यकारणकर्तृत्वे

श्री: श्रीमते शठकोपाय नमः श्रीमते रामानुजाय नमः श्रीमद्वरवरमुनये नमः अध्याय १३ << अध्याय १३ श्लोक १९ श्लोक कार्यकारणकर्तृत्वे हेतुः प्रकृतिरुच्यते।पुरुषः सुखदुःखानां भोक्तृत्वे हेतुरुच्यते।। पद पदार्थ कार्य कारण कर्तृत्वे – शरीर और ग्यारह इंद्रियों द्वारा किए जाने वाले कार्योंप्रकृति: – प्रकृति (जो जीवात्मा द्वारा व्याप्त है)हेतुः – कारण के रूप मेंउच्यते – समझाया गया हैपुरुषः – … Read more