१७.२४ – तस्मादोम् इत्युदाहृत्य

श्री: श्रीमते शठकोपाय नमः श्रीमते रामानुजाय नमः श्रीमद्वरवरमुनये नमः अध्याय १७ << अध्याय १७ श्लोक २३ श्लोक तस्मादोमित्युदाहृत्य यज्ञदानतपःक्रियाः।प्रवर्तन्ते विधानोक्ताः सततं ब्रह्मवादिनाम्।। पद पदार्थ तस्मात् – चूँकि इन तीन शब्दों सहित वैधिक कर्म (इस प्रकार, मेरे द्वारा) निर्मित किये गये हैंब्रह्मवादिनाम् – उनके [ब्राह्मण, क्षत्रिय और वैश्यों] द्वारा किये जाते हैं जो वेदों का पाठ … Read more

१७.२३ – ॐ तत् सदिति निर्देशो

श्री: श्रीमते शठकोपाय नमः श्रीमते रामानुजाय नमः श्रीमद्वरवरमुनये नमः अध्याय १७ << अध्याय १७ श्लोक २२ श्लोक ॐ तत्सदिति निर्देशो ब्रह्मणस्त्रिविधः स्मृतः।ब्राह्मणास्तेन वेदाश्च यज्ञाश्च विहिताः पुरा।। पद पदार्थ ॐ तत् सत् इति – “ॐ तत् सत्”त्रिविधः निर्देश: – तीन शब्दब्राह्मण: स्मृतः – वैधिक कर्म [अनुष्ठान] से युक्त कहे गए हैंतेन – इन तीन शब्दों से … Read more

१७.२२ – अदेशकाले यद्दानम्

श्री: श्रीमते शठकोपाय नमः श्रीमते रामानुजाय नमः श्रीमद्वरवरमुनये नमः अध्याय १७ << अध्याय १७ श्लोक २१ श्लोक अदेशकाले यद्दानमपात्रेभ्यश्च दीयते।असत्कृतमवज्ञातं तत्तामसमुदाहृतम्।। पद पदार्थ अदेशकाले – गलत स्थान और समय परअपात्रेभ्य: च – गलत पात्र कोअसत्कृतं – पात्र का अनादर करते हुएअवज्ञातं – पात्र का अपमान करते हुएयद्दानं दीयते – जो दान किया जाता हैतत् – … Read more

१७.२१ – यत् तु प्रत्युपकारार्थं

श्री: श्रीमते शठकोपाय नमः श्रीमते रामानुजाय नमः श्रीमद्वरवरमुनये नमः अध्याय १७ << अध्याय १७ श्लोक २० श्लोक यत्तु प्रत्युपकारार्थं फलमुद्दिश्य वा पुनः।दीयते च परिक्लिष्टं तद्दानं राजसमुदाहृतम्।। पद पदार्थ प्रत्युपकारार्थं – बदले में उपकार की आशा करते हुएफलम् उद्दिश्य वा पुनः – या पुरस्कार (परलोक में) की आशा करते हुएपरिक्लिष्टं – दुःखी मन सेयत्तु दीयते – … Read more

१७.२० – दातव्यम् इति यद्दानम्

श्री: श्रीमते शठकोपाय नमः श्रीमते रामानुजाय नमः श्रीमद्वरवरमुनये नमः अध्याय १७ << अध्याय १७ श्लोक १९ श्लोक दातव्यमिति यद्दानं दीयतेऽनुपकारिणे।देशे काले च पात्रे च तद्दानं सात्त्विकं स्मृतम्।। पद पदार्थ अनुपकारिणे – जिससे बदले में कुछ मिलने की आशा न की जाएदातव्यम् इति – केवल दान देने के उद्देश्य से दान दिया जाता हैदेशे – उचित … Read more

१७.१९ – मूढग्राहेणात्मनो यत्

श्री: श्रीमते शठकोपाय नमः श्रीमते रामानुजाय नमः श्रीमद्वरवरमुनये नमः अध्याय १७ << अध्याय १७ श्लोक १८ श्लोक मूढग्राहेणात्मनो यत्पीडया क्रियते तपः।परस्योत्सादनार्थं वा तत्तामसमुदाहृतम्।। पद पदार्थ मूढग्राहेण – मूर्ख व्यक्तियों की प्रबल इच्छा के कारणआत्मन: पीडया – स्वयं को कष्ट देनेपरस्य उत्सादनार्थं वा – दूसरों को कष्ट देनेयत् तपः क्रियते – जो तपस्या की जाती हैतत् … Read more

१७.१८ – सत्कार मान पूजार्थं

श्री: श्रीमते शठकोपाय नमः श्रीमते रामानुजाय नमः श्रीमद्वरवरमुनये नमः अध्याय १७ << अध्याय १७ श्लोक १७ श्लोक सत्कारमानपूजार्थं तपो दम्भेन चैव यत्।क्रियते तदिह प्रोक्तं राजसं चलमध्रुवम्।। पद पदार्थ सत्कार मान पूजार्थं – जो सम्मान, प्रशंसा और पूजा पाने के लिएदम्भेन च एव – तथा दिखावे के लिएयत् तप: क्रियते – तप किया जाता हैतत् – … Read more

१७.१७ – श्रद्धया परया तप्तं

श्री: श्रीमते शठकोपाय नमः श्रीमते रामानुजाय नमः श्रीमद्वरवरमुनये नमः अध्याय १७ << अध्याय १७ श्लोक १६ श्लोक श्रद्धया परया तप्तं तपस्तत् त्रिविधं नरैः।अफलाकाङ्क्षिभिर्युक्तैः सात्त्विकं परिचक्षते।। पद पदार्थ अफलाकाङ्क्षिभि: – जो कर्मफल से विरक्त हैंयुक्तैः – इस विचार से करते हैं कि यह परमात्मा की पूजा का ही एक अंग हैनरैः – उन पुरुषों द्वारापरया श्रद्धया … Read more

१७.१६ – मनःप्रसादः सौम्यत्वं

श्री: श्रीमते शठकोपाय नमः श्रीमते रामानुजाय नमः श्रीमद्वरवरमुनये नमः अध्याय १७ << अध्याय १७ श्लोक १५ श्लोक मनःप्रसादः सौम्यत्वं मौनमात्मविनिग्रहः।भावसंशुद्धिरित्येतत्तपो मानसमुच्यते।। पद पदार्थ मनः प्रसादः – मन को साफ और क्रोध आदि से रहित रखनासौम्यत्वं – दूसरों के हित के बारे में सोचनामौनं – मन के माध्यम से वाणी पर नियंत्रण रखनाआत्म विनिग्रहः – मन … Read more

१७.१५ – अनुद्वेगकरं वाक्यम्

श्री: श्रीमते शठकोपाय नमः श्रीमते रामानुजाय नमः श्रीमद्वरवरमुनये नमः अध्याय १७ << अध्याय १७ श्लोक १४ श्लोक अनुद्वेगकरं वाक्यं सत्यं प्रियहितं च यत्।स्वाध्यायाभ्यसनं चैव वाङ्मयं तप उच्यते।। पद पदार्थ अनुद्वेगकरं – जो दूसरों में द्वेष उत्पन्न न करेसत्यं – जो सत्य होप्रिय हितं च – जो मधुर हो तथा कल्याण करने वाले होयत् वाक्यं – … Read more