१४.२७ – ब्रह्मणो हि प्रतिष्ठाहम्

श्री: श्रीमते शठकोपाय नमः श्रीमते रामानुजाय नमः श्रीमद्वरवरमुनये नमः अध्याय १४ << अध्याय १४ श्लोक २६ श्लोक ब्रह्मणो हि प्रतिष्ठाहम् अमृतस्याव्ययस्य  च |शाश्वतस्य च धर्मस्य सुखस्यैकान्तिकस्य च || पद पदार्थ हि – ऐसा इसलिए है, क्योंकिअहम् – मैंअमृताय – अमरअव्ययस्य च – अविनाशीब्रह्मण: – आत्म-साक्षात्कार काप्रतिष्ठिता – साधन;शाश्वतस्य धर्मस्य च (प्रतिष्ठा) – साथ ही, मैं … Read more

१४.२६ – माम् च योऽव्याभिचारेण

श्री: श्रीमते शठकोपाय नमः श्रीमते रामानुजाय नमः श्रीमद्वरवरमुनये नमः अध्याय १४ << अध्याय १४ श्लोक २५ श्लोक माम् च योऽव्यभिचारेण भक्तियोगेन सेवते |स गुणान्  समतीत्यैतान्  ब्रह्मभूयाय कल्पते || पद पदार्थ य:- जो व्यक्तिमां – मुझेअव्यभिचारेण भक्ति योगेन च – अन्य देवताओं और लाभों पर ध्यान केंद्रित न करते (अंगों सहित) भक्ति योग सेसेवते – पूजा … Read more

१४.२५ – मानावमानयो: तुल्य:

श्री: श्रीमते शठकोपाय नमः श्रीमते रामानुजाय नमः श्रीमद्वरवरमुनये नमः अध्याय १४ << अध्याय १४ श्लोक २४ श्लोक मानावमानयो: तुल्य: तुल्यो मित्रारिपक्षयो: |सर्वारम्भपरित्यागी  गुणातीत: स उच्यते || पद पदार्थ मानावमानयो: तुल्य: – जब अन्य लोग सम्मान और अपमान करें तो समान व्यवहार करता हैमित्र अरि पक्षयो: तुल्य: – मित्रों और शत्रुओं के साथ समान व्यवहार करता … Read more

१४.२४ – समदु: खसुख: स्वस्थ:

श्री: श्रीमते शठकोपाय नमः श्रीमते रामानुजाय नमः श्रीमद्वरवरमुनये नमः अध्याय १४ << अध्याय १४ श्लोक २३ श्लोक समदु:खसुख: स्वस्थ: समलोष्टाश्मकाञ्चन: |तुल्यप्रियाप्रियो धीर: तुल्यनिन्दात्मसंस्तुति: || पद पदार्थ सम दु:ख सुख:- (वह) जो दुःख और सुख को समान समझता हैस्वस्थ:- जो केवल आत्मा (स्वयं) में ही लगा हुआ हैसम लोष्टाश्म काञ्चन: – जो मिट्टी, पत्थर या सोने … Read more

१४.२३ – उदासीनवदासीनो

श्री: श्रीमते शठकोपाय नमः श्रीमते रामानुजाय नमः श्रीमद्वरवरमुनये नमः अध्याय १४ << अध्याय १४ श्लोक २० श्लोक उदासीनवदासीनो  गुणैर्यो न विचाल्यते  |गुणा  वर्तन्त  इत्येव योऽवतिष्ठति नेङ्गते  || पद पदार्थ य:- जो कोई भीउदासीनवत् आसीन: – उदासीन रहता (आत्मा के अलावा अन्य विषयों पर जैसे कि पहले बताया गया है)गुणै: – तीन गुणों सेन विचाल्यते – … Read more

१४.२२ – प्रकाशं च प्रवृत्तिं च

श्री: श्रीमते शठकोपाय नमः श्रीमते रामानुजाय नमः श्रीमद्वरवरमुनये नमः अध्याय १४ << अध्याय १४ श्लोक २० श्लोक श्री भगवान् उवाच प्रकाशं  च प्रवृत्तिं  च मोहमेव च पाण्डव  |न द्वेष्टि संप्रवृत्तानि न निवृत्तानि काङ्क्षति  || पद पदार्थ श्री भगवान् उवाच – श्री भगवान बोले पाण्डव – हे पाण्डुपुत्र! (आत्मा के अलावा अन्य विषयों में )प्रकाशं च … Read more

१४.२१ – कैर् लिंगै: त्रिगुणान् एतान्

श्री: श्रीमते शठकोपाय नमः श्रीमते रामानुजाय नमः श्रीमद्वरवरमुनये नमः अध्याय १४ << अध्याय १४ श्लोक २० श्लोक अर्जुन उवाच कैर् लिंगैस्त्रिगुणान्  एतान् अतीतो भवति प्रभो |किमाचार: कथं  चैतांस्त्रीन्  गुणान् अतिवर्तते || पद पदार्थ अर्जुन उवाच – अर्जुन ने कहा प्रभो! – मेरे नाथ!एतान् त्रिगुणान् अतीत: – जो इन तीन गुणों से परे हैकै: लिंगै: भवति … Read more

१४.२० – गुणान् एतान् अतीत्य त्रीन्

श्री: श्रीमते शठकोपाय नमः श्रीमते रामानुजाय नमः श्रीमद्वरवरमुनये नमः अध्याय १४ << अध्याय १४ श्लोक १९ श्लोक गुणान् एतान् अतीत्य त्रीन् देही देहसमुद्भवान्   |जन्ममृत्युजरादु:खै: विमुक्तोऽमृतम् अश्नुते  || पद पदार्थ देही – यह आत्मा जो शरीर के साथ हैदेह समुद्भवान् – शरीर जो प्रकृति (पदार्थ) का रूपांतर हैएतान् – येत्रीन् – तीन गुणअतीत्य – पार … Read more

१४.१९ – नान्यं गुणेभ्य: कर्तारम्

श्री: श्रीमते शठकोपाय नमः श्रीमते रामानुजाय नमः श्रीमद्वरवरमुनये नमः अध्याय १४ << अध्याय १४ श्लोक १८ श्लोक नान्यं गुणेभ्यः कर्तारं यदा द्रष्टाऽनुपश्यति |गुणेभ्यश्च परं वेत्ति मद्भावं सोऽधिगच्छति || पद पदार्थ द्रष्टा – वह जो सत्वगुण में स्थापित है और जिसे आत्म-साक्षात्कार हैगुणेभ्य: अन्यम् – अपनी आत्मा जो सत्व आदि गुणों से भिन्न हैकर्तारं न अनुपश्यति … Read more

१४.१८ – ऊर्ध्वं गच्छन्ति सत्त्वस्था:

श्री: श्रीमते शठकोपाय नमः श्रीमते रामानुजाय नमः श्रीमद्वरवरमुनये नमः अध्याय १४ << अध्याय १४ श्लोक १७ श्लोक ऊर्ध्वं गच्छन्ति सत्त्वस्था: मध्ये तिष्ठन्ति राजसा: |जघन्यगुणवृत्तिस्था: अधो गच्छन्ति तामसा: || पद पदार्थ सत्त्वस्था: – जिनके पास सत्वगुण की प्रचुरता हैउर्ध्वं गच्छन्ति – (अंततः) मोक्ष (मुक्ति) की उच्च स्थिति तक पहुँचते ;राजसा: – जिनके पास रजोगुण की प्रचुरता … Read more