శ్రీ భగవద్ గీతా సారం – 2 వ అధ్యాయం (సాంఖ్య యోగం)

శ్రీః  శ్రీమతే శఠకోపాయ నమః  శ్రీమతే రామానుజాయ నమః  శ్రీమత్ వరవరమునయే నమః శ్రీ భగవద్ గీతా సారం << అధ్యాయం 1 గీతార్థ సంగ్రహం లోని 6 వ శ్లోకం లో, ఆలవందార్లు రెండవ అధ్యాయం యొక్క సారాంశం వివరిస్తూ “ఆత్మ యొక్క శాశ్వతత్వం, నిష్కామం గా చెయ్యాల్సిన ధర్మమైన కర్మ, స్థితప్రజ్ఞ లో ఉండటం(నిర్ణయాలు మరియు జ్ఞానం లో స్థిరం గా ఉండటం) గమ్యం గా , తన గురించి మరియు కర్మ యోగం … Read more

श्री भगवद्गीता का सारतत्त्व – अध्याय २ (सांख्य योग)

श्री: श्रीमते शठकोपाय नमः श्रीमते रामानुजाय नमः श्रीमद्वरवरमुनये नमः श्री भगवद्गीता का सारतत्त्व << अध्याय १ गीतार्थ संग्रह के छठे श्लोक में, आळवन्दार दूसरे अध्याय का सारांश समझाते हुए कहते हैं, “ “शाश्वत आत्मा, वैराग्य के साथ धार्मिक कर्तव्य,  स्थितप्रज्ञ का अवस्था  (निर्णय और ज्ञान में दृढ़) की लक्ष्य , स्वयं और कर्म योग के … Read more

ஸ்ரீ பகவத் கீதை ஸாரம் – அத்யாயம் 2 (ஸாங்க்ய யோகம்)

ஸ்ரீ:  ஸ்ரீமதே சடகோபாய நம:  ஸ்ரீமதே ராமாநுஜாய நம:  ஸ்ரீமத் வரவரமுநயே நம: ஸ்ரீ பகவத் கீதை ஸாரம் << அத்யாயம் 1 கீதார்த்த ஸங்க்ரஹம் ஆறாம் ச்லோகத்தில், ஆளவந்தார் இரண்டாம் அத்யாயத்தின் கருத்தை “நித்யமான ஆத்மா, தார்மிகமான கடமைகளைப் பற்றில்லாமல் செய்வது, ஸ்திதப்ரஜ்ஞ நிலையைக் குறிக்கோளாகக் கொள்வது, ஆத்மாவைப் பற்றிய ஞானம் மற்றும் கர்மயோகம்” ஆகிய விஷயங்களை அர்ஜுனனின் கலக்கத்தைப் போக்குவதற்காக இரண்டாம் அத்யாயத்தில் சொல்லப்பட்டது” என்று காட்டுகிறார். முக்கிய ச்லோகங்கள் முதலில் சில ச்லோகங்களில் … Read more

Essence of SrI bhagavath gIthA – Chapter 2 (sAnkhya yOga)

SrI:  SrImathE SatakOpAya nama:  SrImathE rAmAnujAya nama:  SrImath varavaramunayE nama: Essence of SrI bhagavath gIthA << Chapter 1 In the sixth SlOkam of gIthArtha sangraham, ALavandhAr explains the summary of second chapter saying “Topics such as eternal AthmA, righteous duties with detachment, having the state of sthithapragya (firm in judgement and wisdom) as the goal, … Read more

२.७२ – एषा ब्राह्मी स्तिथि: पार्थ

श्री: श्रीमते शठकोपाय नमः श्रीमते रामानुजाय नमः श्रीमद्वरवरमुनये नमः अध्याय २ << अध्याय २ श्लोक ७१ श्लोक एषा ब्राह्मी स्तिथि: पार्थ नैनां प्राप्य विमुह्यति ।स्थित्वास्यामन्तकालेSपि ब्रह्मनिर्वाणमृच्छति  ॥ पद पदार्थ हे पार्थ – हे अर्जुन!एषा स्थिति:- स्वयं का सच्चा ज्ञान प्राप्त करने के लिए असंबद्ध क्रिया में स्थित होनाब्राह्मी – (ज्ञान योग का पोषण करके) यह आत्मा को, … Read more

२.७१ – विहाय कामान्य: सर्वान्

श्री: श्रीमते शठकोपाय नमः श्रीमते रामानुजाय नमः श्रीमद्वरवरमुनये नमः अध्याय २ << अध्याय २ श्लोक ७० श्लोक विहाय कामान्य: सर्वान्पुमांश्चरति नि:स्पृह: ।निर्ममो निरहंकार:स शान्तिमधिगच्छति ॥ पद पदार्थ य: पुमान् – वह आदमीसर्वान् कामान् – सभी सांसारिक सुखविहाय – त्याग करकेनि:स्पृह:- इच्छा रहित होकर (उनमें)निर्मम : – ममकार (अपनापन ) से रहित होकरनिरहंकारः – अहंकार से … Read more

२.७० – आपूर्यमाणमचलप्रतिष्ठं

श्री: श्रीमते शठकोपाय नमः श्रीमते रामानुजाय नमः श्रीमद्वरवरमुनये नमः अध्याय २ << अध्याय २ श्लोक ६९ श्लोक आपूर्यमाणमचलप्रतिष्ठं समुद्रमाप: प्रविशन्ति यद्वत् । तद्वत्कामा यं प्रविशन्ति सर्वे स शान्तिमाप्नोति न कामकामी ॥ पद पदार्थ यद्वत् – जैसेआपूर्यमाणं  – स्वाभाविक रूप से पूर्णअचलप्रतिष्ठम् – गतिहीनसमुद्रम् – महासागरआप:-नदी का जलप्रविशन्ति – जैसे  प्रवेश करते हैंतदवत् – उसी  प्रकारसर्वे काम: – … Read more

२.६९ – या निशा सर्वभूतानां

श्री: श्रीमते शठकोपाय नमः श्रीमते रामानुजाय नमः श्रीमद्वरवरमुनये नमः अध्याय २ << अध्याय २ श्लोक ६८ श्लोक या निशा सर्वभूतानां तस्यां जागर्ति संयमी । यस्यां जाग्रति भूतानि सा निशा पश्यतो मुने:॥ पद पदार्थ या  – स्वयं के बारे में वह ज्ञानसर्वभूतानां – सभी प्राणियों के लिएनिशा – रात के समान अंधकारमय तस्यां – ऐसे ज्ञान के सन्दर्भ … Read more

२.६८ – तस्माद्यस्य महाबाहो

श्री: श्रीमते शठकोपाय नमः श्रीमते रामानुजाय नमः श्रीमद्वरवरमुनये नमः अध्याय २ << अध्याय २ श्लोक ६७ श्लोक तस्माद्यस्य महाबाहो निगृहीतानि सर्वशः ।इन्द्रियाणीन्द्रियार्थेभ्यस्तस्य प्रज्ञा प्रतिष्ठिता ॥ पद पदार्थ महाबाहो – हे महाबाहो!तस्मात् – इस प्रकारयस्य इन्द्रियाणी- जिनकी ज्ञानेन्द्रियाँइन्द्रियार्थेभ्य:-सांसारिक सुखों सेसर्वशः: निगृहीतानि – सभी प्रकार से खींच लिया गयातस्य – उसके लिएप्रज्ञा – ज्ञान (स्वयं के बारे में)प्रतिष्ठिता … Read more

२.६७ – इन्द्रियाणां हि चरतां

श्री: श्रीमते शठकोपाय नमः श्रीमते रामानुजाय नमः श्रीमद्वरवरमुनये नमः अध्याय २ << अध्याय २ श्लोक ६६ श्लोक इन्द्रियाणां हि चरतां यन्मनोSनुविधीयते ।तदस्य हरति प्रज्ञां वायुर्नावमिवाम्भसि ॥ पद पदार्थ चरतां – सांसारिक सुखों का (इच्छानुसार) आनंद लेना इन्द्रियाणां – इन्द्रियाँ यत् मन:- वह मन अनुविधीयते – (मनुष्य द्वारा) पालन करने के लिए बनाया गयावह – वह मनअस्य – ऐसे … Read more