७.२१ – यो यो यां यां तनुं भक्तः

श्री: श्रीमते शठकोपाय नमः श्रीमते रामानुजाय नमः श्रीमद्वरवरमुनये नमः अध्याय ७ << अध्याय ७ श्लोक २० श्लोक यो यो यां यां तनुं भक्तः श्रद्धयार्चितुमिच्छति ।तस्य तस्याचलां श्रद्धां तामेव विदधाम्यहम् ॥ पद पदार्थ य: य: भक्त: – उन देवतांतरों ( अन्य देवता ) के जो भी भक्तयां यां तनुं – जिस देवता को भी , जो … Read more

७.२० – कामै: तै: तै: हृतज्ञानाः

श्री: श्रीमते शठकोपाय नमः श्रीमते रामानुजाय नमः श्रीमद्वरवरमुनये नमः अध्याय ७ << अध्याय ७ श्लोक १९ श्लोक कामैस्तैस्तैहृतज्ञानाः प्रपद्यन्तेऽन्यदेवताः ।तं तं नियममास्थाय प्रकृत्या नियताः स्वया ॥ पद पदार्थ (इस दुनिया में कई करोड़ लोग)स्वया प्रकृत्या – अनादि-आदि प्रवृत्तिनियताः – सदैव साथ रहने के कारणतै: तै: – वो ( प्रवृत्ति )कामै: – सांसारिक वस्तुओं ( जो … Read more

७.१९ – बहूनां जन्मनामन्ते

श्री: श्रीमते शठकोपाय नमः श्रीमते रामानुजाय नमः श्रीमद्वरवरमुनये नमः अध्याय ७ << अध्याय ७ श्लोक १८ श्लोक बहूनां जन्मनामन्ते ज्ञानवान्मां प्रपद्यते।वासुदेवः सर्वमिति स महात्मा सुदुर्लभः ॥ पद पदार्थ बहूनां जन्मनामन्ते – कई पुण्य जन्मों के बादज्ञानवान् – ज्ञानी जिसका ज्ञान परिपक्व हैवासुदेवः सर्वम् इति – सोचता है कि ” वासुदेव ही मेरा परम प्राप्य (अंतिम … Read more

७.१८ – उदाराः सर्व एवैते

श्री: श्रीमते शठकोपाय नमः श्रीमते रामानुजाय नमः श्रीमद्वरवरमुनये नमः अध्याय ७ << अध्याय ७ श्लोक १७ श्लोक उदाराः सर्व एवैते ज्ञानी त्वात्मैव मे मतम् ।आस्थितः स हि युक्तात्मा मामेवानुत्तमां गतिम् ॥ पद पदार्थ एते सर्वे एव – ये सभीउदाराः – उदार हैंज्ञानी तु – मगर ज्ञानी( मे ) आत्मा एव – ( मुझे ) थामता … Read more

७.१७ – तेषां ज्ञानी नित्ययुक्त

श्री: श्रीमते शठकोपाय नमः श्रीमते रामानुजाय नमः श्रीमद्वरवरमुनये नमः अध्याय ७ << अध्याय ७ श्लोक १६ श्लोक तेषां ज्ञानी नित्ययुक्त एकभक्तिर्विशिष्यते ।प्रियो हि ज्ञानिनोऽत्यर्थम् अहं स च मम प्रियः ॥ पद पदार्थ तेषां – इन चारों मेंनित्य युक्त: – जो हमेशा मेरे साथ एकजुट रहता हैएकभक्ति: – विशेष रूप से मेरे प्रति समर्पित हैज्ञानी – … Read more

७.१६ – चतुर्विधा भजन्ते माम्

श्री: श्रीमते शठकोपाय नमः श्रीमते रामानुजाय नमः श्रीमद्वरवरमुनये नमः अध्याय ७ << अध्याय ७ श्लोक १५ श्लोक चतुर्विधा भजन्ते मां जनाः सुकृतिनोऽर्जुन ।आर्तो जिज्ञासुरर्थार्थी ज्ञानी च भरतर्षभ ॥ पद पदार्थ भरतर्षभ अर्जुन – हे अर्जुन ! जो भरत वंशजों में श्रेष्ठ है !आर्त: – जो दुःखी हो ( धन की हानि से )अर्थार्थी – जो … Read more

७.१५ – न मां दुष्कृतिनो मूढा:

श्री: श्रीमते शठकोपाय नमः श्रीमते रामानुजाय नमः श्रीमद्वरवरमुनये नमः अध्याय ७ << अध्याय ७ श्लोक १४ श्लोक न मां दुष्कृतिनो मूढा: प्रपध्यन्ते नराधमा : |माययाऽपह्रतज्ञाना आसुरं भावमाश्रिता : || पद पदार्थ मूढा: – मूर्खनराधमा: – मनुष्यों में सबसे निम्नमायया अपहृत ज्ञान: – जिनके पास (अतार्किक तर्क आदि) माया द्वारा नष्ट किया गया ज्ञानआसुरं भावं आश्रिता: … Read more

७.१४ – मामेव ये प्रपध्यन्ते

श्री: श्रीमते शठकोपाय नमः श्रीमते रामानुजाय नमः श्रीमद्वरवरमुनये नमः अध्याय ७ << अध्याय ७ श्लोक १३ श्लोक मामेव ये प्रपध्यन्ते मायामेतां तरन्ति ते ||  पद पदार्थ ये – वोमां एव – केवल मेरे प्रपध्यन्ते – समर्पणते – वेएतां मायां – यह भौतिक प्रकृति/क्षेत्रतरन्ति – पार करना सरल अनुवाद जो लोग केवल मेरे प्रति समर्पण करते … Read more

७.१३.५ – दैवी ह्येषा गुणमयी

श्री: श्रीमते शठकोपाय नमः श्रीमते रामानुजाय नमः श्रीमद्वरवरमुनये नमः अध्याय ७ << अध्याय ७ श्लोक १३ श्लोक दैवी ह्येषा गुणमयी मम माया दुरत्यया | पद पदार्थ मम – मेराएषा – यहगुणमयि – तीन गुणों से भरपूरमाया – भौतिक प्रकृति/क्षेत्रदैवी – क्योंकि मेरे द्वारा बनाया गया है जो देव (भगवान) हैदुरत्यया – पार करना कठिन है … Read more

७.१३ – त्रिभि: गुणमयै: भावै:

श्री: श्रीमते शठकोपाय नमः श्रीमते रामानुजाय नमः श्रीमद्वरवरमुनये नमः अध्याय ७ << अध्याय ७ श्लोक १२ श्लोक त्रिभिर्गुणमयैर्भावैरेभिः सर्वमिदं जगत् |मोहितं नाभिजानाती मामेभ्य : परमव्ययम्  || पद पदार्थ सर्वं इदं जगत् – इस संसार में सभी जीवात्माएँएभि: त्रिभि: गुणमयै: भावै: – इन तीन गुणों (सत्व, रज, तम) से युक्त वस्तुओं द्वारामोहितं – भ्रमितएभ्य: परं – … Read more