८.८ – अभ्यासयोगयुक्तेन

श्री: श्रीमते शठकोपाय नमः श्रीमते रामानुजाय नमः श्रीमद्वरवरमुनये नमः अध्याय ८ << अध्याय ८ श्लोक ७ श्लोक अभ्यासयोगयुक्तेन चेतसा नान्यगामिना ।परमं पुरुषं दिव्यं याति पार्थानुचिन्तयन् ॥ पद पदार्थ पार्थ – हे अर्जुन !अभ्यास योग युक्तेन – अभ्यास और योग ( भक्ति योग ) के साथनान्य गामिना – और किसी वस्तु में बिना भटकेचेतसा – हृदयपरमं … Read more

८.७ – तस्मात् सर्वेषु कालेषु

श्री: श्रीमते शठकोपाय नमः श्रीमते रामानुजाय नमः श्रीमद्वरवरमुनये नमः अध्याय ८ << अध्याय ८ श्लोक ६ श्लोक तस्मात्सर्वेषु कालेषु मामनुस्मर युध्य च ।मय्यर्पितमनोबुद्धि: मामेवैष्यस्यसंशय: ॥ पद पदार्थ तस्मात् – इस प्रकारसर्वेषु कालेषु – हर समय (मृत्यु तक)माम् अनुस्मर – केवल मेरे बारे में सोचो ;युध्य च – युद्ध में भी व्यस्त रहो ;मय्यर्पित मनो बुद्धि: … Read more

८.६ – यं यं वाऽपि स्मरन्भावम्

श्री: श्रीमते शठकोपाय नमः श्रीमते रामानुजाय नमः श्रीमद्वरवरमुनये नमः अध्याय ८ << अध्याय ८ श्लोक ५ श्लोक यं यं वाऽपि स्मरन्भावं त्यजत्यन्ते कलेबरम् ।तं तमेवैति कौन्तेय सदा तद्भावभावितः ॥ पद पदार्थ कौन्तेय – हे अर्जुन !अन्ते – अंतिम क्षणों मेंयं यं वापि भावं स्मरन् कलेबरं त्यजति – जिस भी अवस्था पर ध्यान करते हुए अपना … Read more

८.५ – अन्तकाले च मामेव

श्री: श्रीमते शठकोपाय नमः श्रीमते रामानुजाय नमः श्रीमद्वरवरमुनये नमः अध्याय ८ << अध्याय ८ श्लोक ४ श्लोक अन्तकाले च मामेव स्मरन्मुक्त्वा कलेबरम् ।यः प्रयाति स मद्भावं याति नास्त्यत्र संशयः ॥ पद पदार्थ अन्त काले च – अंतिम क्षणों में भी ( वांछित परिणाम प्राप्त करते समय)य: – जो कोईमामेव स्मरन् – मुझको ( उसके वांछित … Read more

८.४ – अधिभूतं क्षरो भावः

श्री: श्रीमते शठकोपाय नमः श्रीमते रामानुजाय नमः श्रीमद्वरवरमुनये नमः अध्याय ८ << अध्याय ८ श्लोक ३ श्लोक अधिभूतं क्षरो भावः पुरुषश्चाधिदैवतम् ।अधियज्ञोऽहमेवात्र देहे देहभृतां वर ॥ पद पदार्थ देहभृतां वर – हे देहधारियों में श्रेष्ट !अधिभूतं – ऐश्वर्यार्थी ( जो लोग सांसारिक धन की इच्छा रखते हैं ) के लिए अधिभूतंक्षर: भावः – ( श्रेष्ट … Read more

८.३ – अक्षरं ब्रह्म परमम्

श्री: श्रीमते शठकोपाय नमः श्रीमते रामानुजाय नमः श्रीमद्वरवरमुनये नमः अध्याय ८ << अध्याय ८ श्लोक २ श्लोक श्रीभगवान उवाचअक्षरं ब्रह्म परमं स्वभावोऽध्यात्ममुच्यते।भूतभावोद्भवकरो विसर्गः कर्मसंज्ञित: ॥ पद पदार्थ श्री भगवान उवाच – श्री कृष्ण ने कहाब्रह्म – ब्रह्म हैपरमम् अक्षरं – वो आत्मा जो पदार्थ के किसी भी संबंध से मुक्त हो जाता हैअध्यात्मं – अध्यात्मं … Read more

८.२ – अधियज्ञः कथं कोऽत्र

श्री: श्रीमते शठकोपाय नमः श्रीमते रामानुजाय नमः श्रीमद्वरवरमुनये नमः अध्याय ८ << अध्याय ८ श्लोक १ श्लोक अधियज्ञः कथं कोऽत्र देहेऽस्मिन्मधुसूदन ।प्रयाणकाले च कथं ज्ञेयोऽसि नियतात्मभिः ॥ पद पदार्थ मधुसूदन – जिसने मधु नाम राक्षस को मारा !अत्र अस्मिन् देहे – इंद्र इत्यादि में , जो शास्त्र में आपके शरीर के रूप में जाने जाते … Read more

८.१ – किं तद् ब्रह्म किम् अध्यात्मम्

श्री: श्रीमते शठकोपाय नमः श्रीमते रामानुजाय नमः श्रीमद्वरवरमुनये नमः अध्याय ८ << अध्याय ७ श्लोक ३० श्लोक अर्जुन उवाचकिं तद्ब्रह्म किमध्यात्मं किं कर्म पुरुषोत्तम ।अधिभूतं च किं प्रोक्तमधिदैवं किमुच्यते ॥ पद पदार्थ अर्जुन उवाच – अर्जुन ने कहापुरुषोत्तम – हे पुरुषोत्तम !तद् ब्रह्म किं – ब्रह्म किसे कहते हैं ?अध्यात्मं किं – अध्यात्मं किसे कहते … Read more

अध्याय ८ – अक्षर परब्रह्म योग (या) परिवर्तनहीन् परब्रह्म का मार्ग

श्री: श्रीमते शठकोपाय नमः श्रीमते रामानुजाय नमः श्रीमद्वरवरमुनये नमः << अध्याय ७ भगवद् रामानुज आळवार् तिरुनगरी में , श्रीपेरुम्बुदूर् में , श्रीरंगम् में और तिरुनारायणपुरम् में >> अध्याय ९ आधार – http://githa.koyil.org/index.php/8/ संगृहीत – http://githa.koyil.org प्रमेय (लक्ष्य) – http://koyil.orgप्रमाण (शास्त्र) – http://granthams.koyil.orgप्रमाता (आचार्य) – http://acharyas.koyil.orgश्रीवैष्णव शिक्षा/बालकों का पोर्टल – http://pillai.koyil.org

ஸ்ரீ பகவத் கீதை ஸாரம் – அத்யாயம் 8 (அக்ஷர பரப்ரஹ்ம யோகம்)

ஸ்ரீ:  ஸ்ரீமதே சடகோபாய நம:  ஸ்ரீமதே ராமாநுஜாய நம:  ஸ்ரீமத் வரவரமுநயே நம: ஸ்ரீ பகவத் கீதை ஸாரம் << அத்யாயம் 7 கீதார்த்த ஸங்க்ரஹம் பன்னிரண்டாம் ச்லோகத்தில், ஆளவந்தார் எட்டாம் அத்யாயத்தின் கருத்தை, “எட்டாவது அத்தியாயத்தில், இவ்வுலகச் செல்வத்தை விரும்பும் ஐச்வர்யார்த்தி, இங்கிருக்கும் சரீரத்திலிருந்து முற்றிலும் விடுபட்ட பிறகு தன் ஆத்மாவையே அனுபவிக்க விரும்பும் கைவல்யார்த்தி மற்றும் பகவானின் திருவடித் தாமரைகளை அடைய விரும்பும் ஞானி என்று மூன்று விதமான பக்தர்களால் அறிந்து கொண்டு அனுஷ்டானத்தில் … Read more