२.४१ – व्यवसायात्मिका बुद्धि:
श्री: श्रीमते शठकोपाय नमः श्रीमते रामानुजाय नमः श्रीमद्वरवरमुनये नमः अध्याय २ << अध्याय २ श्लोक ४० श्लोक व्यवसायात्मिका बुद्धिरेकेह कुरु नन्दन ।बहु शाखा हि अनन्ताश्च बुध्दयोSव्यवसायिनाम् ॥ पद पदार्थ कुरु नंदन – हे अर्जुन (कुरु वंश के वंशज)!इह – कर्म योग के इस विषय मेंव्यवसायत्मिका – स्वयं के वास्तविक(आत्म) स्वरूप में दृढ़ विश्वास के साथबुद्धिः – … Read more